हेल्थ
टेक्नोलॉजी के ज्यादा इस्तेमाल से हो सकता है सिरदर्द, एलर्जी!
सहाना घोष
कोलकाता। इलेक्ट्रोमैगनेटिक हाइपरसेंसेटिविटी (ईएचएस) जिसे वायरलेस एलर्जी या गैजेट एलर्जी भी कहा जाता है, एक बहस का मुद्दा है, जिस पर अभी शोध जारी है। वायरलेस उपकरणों के अत्यधिक इस्तेमाल के कारण ईएचएस की शिकायत की जाती है, जिसमें सिरदर्द, थकान, जैसे कई लक्षण शामिल हैं।
माना जाता है कि ये खासतौर पर ऐसे उपकरणों के उपयोग से होते हैं जो इलेक्ट्रोमैगनेटिक रेडिएशन छोड़ते हैं जैसे कि मोबाइल फोन सिग्नल, वाईफाई हॉटस्पॉट्स, टैबलेट्स, सेलफोन, लैपटॉप जैसे वाई फाई उपकरण और ऐसे ही कई अन्य उपकरण। यह विवादास्पद मामला खासतौर पर तब चर्चा में आया जब फ्रांस की एक अदालत ने एक 39 वर्षीय महिला को ईएचइस से पीड़ित होने की शिकायत के कारण विकलांगता भत्ता दिए जाने का आदेश दिया। उसे वाइफाई और इंटरनेट से दूर ग्रामीण इलाके में रहने का आदेश भी दिया गया।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के मुताबिक ईएचएस के निदान का कोई स्पष्ट तरीका फिलहाल नहीं है और इसके कारण होने वाली शिकायतों के लक्षणों का ईएमएफ (इलेक्ट्रोमैगेटिक फील्ड) से संबंध होने का कोई वैज्ञानिक आधार भी नहीं है। लेकिन साथ ही डब्ल्यूएचओ ने कहा, “इसके लक्षण वास्तविक हैं और इनकी गंभीरता भिन्न हो सकती है। कारण भले ही कुछ भी हो ईएचएस से प्रभावित व्यक्ति के लिए यह कष्टकारी हो सकता है। ”
ईएचएस और सेलफोन उपयोग के संबंध के बारे में अध्ययन करने वाले भारतीय विशेषज्ञों का मानना है कि वायरलेस तकनीकों के प्रसार के साथ इनसे जुड़ी समस्याओं की शिकायतों में भी बढ़ोतरी हुई है। एसआरएम विश्वविद्यालय लखनऊ के कंप्यूटर साइंस एंड इंजीनियरिंग विभाग के सह प्रध्यापक नीरज तिवारी ने एक ईमेल इंटरव्यू में कहा, “मोबाइल फोन और अन्य उपकरणों के अत्यधिक उपयोग के कारण रेडियो फ्रिक्वेंसी इलेक्ट्रोमैगनेटिक रेडिएशन के जोखिम का स्तर कई गुना बढ़ गया है, जिसके आम लक्षण सिरदर्द, बेचैनी, नींद में अनियमितता, थकान और तनाव के रूप में देखे जा सकते हैं।”
बतौर वैज्ञानिक इस मुद्दे पर काफी काम कर चुके बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय लखनऊ के स्कूल ऑफ बायो साइंसेज एंड बायोटेक्न नोलोजी के डीन और बायोटेक्नोलोजी विभाग के प्रमुख एम.वाई.खान ने बताया, “मोबाइल से इलेक्ट्रोमैगनेटिक रेडिएशन अनुवांशिक स्तर पर भी काफी नुकसान पहुंचा सकता है, अगर इनके संपर्क में रहने का समय और इनका उत्सर्जन स्तर ज्यादा हो।”
भारत में स्थिति और भी गंभीर है, क्योंकि यहां रेडिएशन सुरक्षा नियमों का पालन न करने वाली कंपनियों द्वारा बने सस्ते मोबाइल उपकरणों का ज्यादा इस्तेमाल किया जाता है। तिवारी के मुताबिक, “विकसित होते मस्तिष्क, मस्तिष्क में अधिक ऊर्जा के अवशोषण और पूरे जीवनकाल में ज्यादा संपर्क में रहने के कारण वयस्कों की तुलना में बच्चे इससे ज्यादा प्रभावित हो सकते हैं।” तमाम बहस के बावजूद सच्चाई यह भी है कि ये तकनीकें आज की जरूरत बन चुकी हैं। भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (ट्राई) द्वारा जारी नवीनतम आंकड़ों के अनुसार] भारत की कुल 125 करोड़ आबादी के पास 98 करोड़ मोबाइल कनेक्शन हैं।
सेल्यूलर ‘ऑपरेटर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (सीओएआई) का कहना है कि भारत में इससे जुड़े सुरक्षा नियमों का पूरा ध्यान रखा जाता है। सीओएआई के निदेशक राजन एस.मैथ्यूज ने बताया, “भारत सरकार ईएमएफ के लिए वैश्विक सुरक्षा नियमों का कठोरता से पालन करती है। डबल्यूएचओ द्वारा निर्देशित उत्सर्जन स्तर के अनुसार अन्य देशों से भारत में यह 1/10वां है। ईएमएफ उत्सर्जन से जुड़ी आशंकाओं को दूर करने और सरकार के डिजिटल इंडिया कार्यक्रम के स्वप्न को पूरा करने के लिए सरकार का सहयोग और दिशा-निर्देश बेहद महत्वपूर्ण है।”
ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हाइजीन एंड पब्लिक हेल्थ की मधुबिता दोब भारत में ईएचएस पर अधिक शोध करने पर जोर देती हैं। ईएचएस का नकारात्मक प्रभाव होता है या नहीं, इस विवाद और किशोरों के उपकरणों से हर समय संपर्क में रहने को देखते हुए तिवारी और खान ‘ग्रीन कम्युनिकेशन’ यानी वायरलेस संचार से जुड़े खतरों और खराबियों को कम करने पर बल देते हैं। फिलहाल बातचीत के स्थान पर टेक्स्ट करके, वाई फाई उपकरणों से थोड़ी दूरी बनाकर, जरूरी होने पर ही इस्तेमाल करने और सोते समय सिराहने के नीचे न रखकर इनसे संभावित खतरों से बचने का प्रयास किया जा सकता है।
लाइफ स्टाइल
साइलेंट किलर है हाई कोलेस्ट्रॉल की बीमारी, इन लक्षणों से होती है पहचान
नई दिल्ली। हाई कोलेस्ट्रॉल की बीमारी एक ऐसी समस्या है, जो धीरे-धीरे शरीर को नुकसान पहुंचाती है इसीलिए इसे एक साइलेंट किलर कहा जाता है। ये बीमारी शरीर पर कुछ संकेत देती है, जिसे अगर नजरअंदाज किया गया, तो स्थिति हाथ से निकल भी सकती है।
हालांकि, पिछले कुछ सालों में कोलेस्ट्रॉल को लेकर लोगों के बीच जागरुकता बढ़ी है और सावधानियां भी बरती जाने लगी हैं। ऐसा नहीं है कि कोलेस्ट्रॉल शरीर के लिए पूरी तरह से नुकसानदायक है। अगर यह सही मात्रा में हो, तो शरीर को फंक्शन करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। चलिए जानते हैं इसी से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण बातें।
कोलेस्ट्रॉल बढ़ जाए तो क्या होगा?
जब शरीर में कोलेस्ट्रॉल की मात्रा 200 mg/dL से अधिक हो जाती है, तो इसे हाई कोलेस्ट्रॉल की श्रेणी में गिना जाता है और डॉक्टर इसे कंट्रोल करने के लिए डाइट से लेकर जीवन शैली तक में कई बदलाव करने की सलाह देते हैं। अगर लंबे समय तक खून में कोलेस्ट्रॉल की मात्रा बनी रहे, तो यह हार्ट डिजीज और हार्ट स्ट्रोक के जोखिम को बढ़ा सकता है।
हाई कोलेस्ट्रॉल को “साइलेंट किलर” क्यों कहते हैं?
हाई कोलेस्ट्रॉल को साइलेंट किलर इसलिए कहते हैं क्योंकि व्यक्ति के स्वास्थ्य पर इसका काफी खतरनाक असर पड़ता है, जिसकी पहचान काफी देर से होती है। इसके शुरुआती लक्षण बहुत छोटे और हल्के होते हैं, जिसे अक्सर लोग नजरअंदाज कर जाते हैं और यहीं से यह बढ़ना शुरू हो जाते हैं। आखिर में इसकी पहचान तब होती है जब शरीर में इसके उलटे परिणाम नजर आने लगते हैं या फिर कोई डैमेज होने लगता है।
शरीर पर दिखने वाले कोलेस्ट्रॉल के लक्षणों को कैसे पहचानें?
हाई कोलेस्ट्रॉल के दौरान पैरों में कुछ महत्वपूर्ण लक्षण नजर आने लगते हैं, जिसे क्लाउडिकेशन कहते हैं। इस दौरान पैरों की मांसपेशियों में दर्द, ऐंठन और थकान महसूस होता है। ऐसा अक्सर कुछ दूर चलने के बाद होता है और आराम करने के साथ ही ठीक हो जाता है।
क्लाउडिकेशन का दर्द ज्यादातर पिंडिलियों, जांघों, कूल्हे और पैरों में महसूस होता है। वहीं समय के साथ यह दर्द गंभीर होता चला जाता है। इसके अलावा पैरों का ठंडा पड़ना भी इसके लक्षणों में से एक है।
गर्मी के मौसम में जब तापमान काफी ज्यादा हो, ऐसे समय में ठंड लगना एक संकेत है कि व्यक्ति पेरिफेरल आर्टरी डिजीज से जूझ रहा है। ऐसा भी हो सकता है कि यह स्थिति शुरुआत में परेशान न करे, लेकिन अगर लंबे समय तक यह स्थिती बनी रहती है तो इलाज में देरी न करें और समय रहते डॉक्टर से इसकी जांच करवाएं।
हाई कोलेस्ट्रॉल के अन्य लक्षणों में से एक पैरों की त्वचा के रंग और बनावट में बदलाव आना भी शामिल है। इस दौरान ब्लड वेसेल्स में प्लाक जमा होने लगते हैं, जिसके कारण ब्लड सर्कुलेशन प्रभावित होता है।
ऐसे में जब शरीर के कुछ हिस्सों में कम मात्रा में खून का दौड़ा होता है, तो वहां कि त्वचा की रंगत और बनावट के अलावा शरीर के उस हिस्से का फंक्शन भी प्रभावित होता है।
इसलिए, अगर आपको अपने पैरों की त्वचा के रंग और बनावट में बिना कारण कोई बदलाव नजर आए, तो हाई कोलेस्ट्रॉल इसका कारण हो सकता है।
डिस्क्लेमर: उक्त लेख सिर्फ सामान्य सूचना के उद्देश्य के लिए हैं और इन्हें पेशेवर चिकित्सा सलाह के रूप में नहीं लिया जाना चाहिए। कोई भी सवाल या परेशानी हो तो हमेशा अपने डॉक्टर से सलाह लें।
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