प्रादेशिक
ओवैसी की दस्तक से बिहार चुनाव में बदलेंगे समीकरण!
मनोज पाठक
पटना। ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी के बिहार में चुनाव लड़ने की घोषणा के बाद यह तय माना जाने लगा है कि आगामी राज्य विधानसभा चुनाव में सत्ताधारी गठबंधन और राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) के बीच लड़ाई सीधी नहीं, बल्कि चुनाव में लड़ाई अब रोचक और कांटे की होगी।
ओवैसी के बिहार की राजनीति में प्रवेश को भले ही राजनीतिक दल खुले तौर पर परेशानी का सबब नहीं बता रहे हैं, परंतु यह तय माना जा रहा है कि ओवैसी के प्रवेश ने सत्ताधारी गठबंधन के लिए इस लड़ाई को मुश्किल जरूर बना दिया है। बिहार में सत्ताधारी जनता दल (युनाइटेड), कांग्रेस और राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के गठबंधन को ‘महागठबंधन’ नाम दिया गया है।
ओवैसी ने विधानसभा चुनाव में उतरने की घोषणा करते हुए सीमांचल इलाके में प्रत्याशी खड़े करने की बात कही है, परंतु सीटों की संख्या अभी तय नहीं है। कोसी और पूर्णिया का इलाका मिलाकर बनने वाले सीमांचल में 37 सीटें आती हैं, जिसमें पूर्णिया मंडल में 24 व कोसी मंडल में 13 सीटें हैं। सीमांचल की 25 सीटों पर मुसलमान मतदाता जहां निर्णायक होते हैं, वहीं शेष सीटें ऐसी हैं जहां मुस्लिम मतदाता परिणाम को प्रभावित करते हैं। संभावना व्यक्त की जा रही है कि ओवैसी इन क्षेत्रों की 25 सीटों पर उम्मीदवार खड़े कर सकते हैं, जहां मुस्लिम मतदाताओं की संख्या अधिक है। किशनगंज में 68 प्रतिशत, कटिहार में 45, अररिया में 35 और पूर्णिया में 35 प्रतिशत मुस्लिम मतदाता हैं।
ओवैसी ने संभावना तलाशने के लिए सीमांचल के किशनगंज में 16 अगस्त को रैली की थी। इसमें उमड़ी भीड़ के बाद ही उनके मैदान में उतरने की चर्चा तेज हो गई थी। राजनीति के जानकार और किशनगंज के वरिष्ठ पत्रकार रत्नेश्वर झा कहते हैं कि ओवैसी भले ही 24 से 25 सीटों पर चुनाव लड़ रहे हों, लेकिन उनके निशाने पर जो मतदाता हैं, वह महागठबंधन का पक्का वोट माना जा रहा है। इसलिए ओवैसी की पार्टी जितना भी वोट पाएगी, वह महागठबंधन को ही नुकसान पहुंचाएगी।
उनका कहना है कि ओवैसी की प्रचार शैली आक्रामक और ध्रुवीकरण पैदा करने वाली रही है, ऐसे में ओवैसी का प्रभाव बिहार के अन्य क्षेत्रों में भी पड़े तो कोई आश्चर्य की बात नहीं होगी। इसका अप्रत्यक्ष लाभ भाजपा को मिलना तय है। जद (यू) के प्रवक्ता अजय आलोक इस मामले पर बहुत खुलकर तो कुछ नहीं बोलते, लेकिन इतना जरूर कहते हैं कि ओवैसी के चुनाव लड़ने से बिहार में कुछ खास प्रभाव नहीं पड़ेगा। उन्होंने कहा कि बिहार अब विकास की ओर बढ़ चला है।
जद (यू) और राजद भले ही ओवैसी को खारिज कर रहे हों, लेकिन उनके मुस्लिम वोट बैंक में कुछ सेंध लगना तय है। जदयू भले ही बिहार में लड़ाई महागठबंधन और राजग के बीच बताए, पर ओवैसी के उम्मीदवारों को मिले मत महागठबंधन को नुकसान पहुंचाएंगे। ओवैसी के मुस्लिम बहुल इलाकों में उम्मीदवार उतारने का कुछ हद तक फायदा भाजपा को मिलेगा। यह तय है कि सभी मुसलमान ओवैसी को वोट नहीं देंगे, लेकिन जो भी वोट मिलेंगे, वे जद (यू) और राजद के खाते के ही होंगे।
बिहार की राजनीति को नजदीक से जानने वाले सुरेंद्र किशोर जद (यू) की बात से इत्तेफाक नहीं रखते। वह कहते हैं, “बिहार के चुनाव में राजग और महागठबंधन में कांटे की टक्कर मानी जा रही है, ऐसे में सभी मुस्लिम मतदाता न सही, परंतु अधिकांश मुस्लिम मतदाता ओवैसी के साथ जरूर होगा। ऐसे में महागठबंधन को नुकसान होना तय है।” वे कहते हैं कि ओवैसी की किशनगंज की रैली इसका प्रमाण है कि उस रैली में बहुत भीड़ जुटी थी।
किशोर दूसरे शब्दों में कहते हैं कि ओवैसी के बिहार में प्रवेश से राजग को उसी तरह फायदा पहुंचेगा, जैसे महाराष्ट्र चुनाव में हुआ था। वे कहते हैं, “महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव में ओवैसी फैक्टर अपना रंग दिखा चुका है। कांटे के इन मुकाबलों में औवैसी की पार्टी ने दो सीटें ही जीतीं, लेकिन नुकसान किसे पहुंचाया, यह हर कोई जानता है।”
जद (यू) के अध्यक्ष वशिष्ठ नारायण सिंह ओवैसी के बिहार में चुनाव लड़ने के पीछे भाजपा की रणनीति के सवाल पर तो कुछ नहीं बोलते हैं, लेकिन राजद के कई नेता इसके तार दिल्ली से जुड़े होने की बात कहते हैं। वहीं, भाजपा के प्रवक्ता शाहनवाज हुसैन कहते हैं कि बिहार के अल्पसंख्यक मतदाता राजग के साथ हैं। पहले भी भाजपा के प्रत्याशी सीमांचल क्षेत्रों में विजयी होते रहे हैं और इस चुनाव में भी होंगे।
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उपमा ने धूमधाम से मनाया अपना 7वां वार्षिक अधिवेशन
लखनऊ। माइक्रो फाइनैन्स एसोसिएशन ऑफ उत्तर प्रदेश (उपमा ) द्वारा लखनऊ के स्थानीय होटल ताज महल मे माइक्रो फाइनैन्स संस्थाओं का भव्य 7वां वार्षिक अधिवेशन आयोजित किया गया। देश के कोने कोने से पधारे वित्तीय विशेषज्ञों ने प्रदेश की अर्थ व्यस्था को बढ़ावा देने हेतु परिचर्चा में भाग लिया । अधिवेशन का मुख्य उद्देश्य था *एक ट्रिलियन डॉलर इकॉनमी को बढ़ावा देने हेतु माइक्रोफाइनेंस कंपनियों के योगदान पर आधारित अध्ययन रिपोर्ट जारी करना और एक सतत एवं विश्वसनीय माइक्रो फाइनेंस मॉडल विकसित करना।*
आज के अधिवेशन के मुख्य अतिथि श्री असीम अरुण माननीय राज्यमंत्री स्वतंत्र प्रभार समाज कल्याण, उत्तर प्रदेश सरकार तथा मुख्य वक्ता के रूप में श्री दिनेश खारा पूर्व चेयरमैन स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया और माइक्रोफाइनेंस के भीष्मपितामह कहे जाने वाले श्री विजय महाजन थे ।
मुख्य अतिथि श्री असीम अरुण ने अधिवेशन का उद्घाटन किया तथा माइक्रो फाइनैन्स संस्थाओं द्वारा अर्थ व्यवस्था को बढ़ावा देने हेतु दिए जा रहे सहयोग और उनके योगदान द्वारा महिलाओं के जीवन स्तर मे हो रहे सुधार पर प्रसन्नता जताते हुए कहा कि उपमा संस्था ने एक ऐसे महत्वपूर्ण विषय पर सम्मलेन आयोजित किया है जो कि राज्य सरकार की पहली प्राथमिकता है।
कार्यक्रम के मुख्य वक्ता श्री दिनेश खारा पूर्व चेयरमैन स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया ने उपमा के 11 वें स्थापना दिवस पर बधाई देते हुए कहा कि सम्मलेन में परिचर्चा के उपरांत एक ऐसी कार्य योजना बनेगी जो राज्य के विकास मे सहयोगी होगी तथा एक खरब डॉलर अर्थ व्यवस्था के लक्ष्य को पूर्ण करने में एक अहम् भूमिका निभायेगी।
समारोह के दूसरे मुख्य वक्ता तथा माइक्रो फाइनेंस के विशेषज्ञ श्री विजय महाजन ने बताया कि माइक्रो फाइनैन्स के जरिये समाज के कमजोर वर्ग विशेषकर महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने हेतु उन्हें रोज़गार परक ऋण उपलब्ध कराया जाता है
उन्होंने आगे कहा कि किस तरह से माइक्रोफाइनांस राज्य की अर्थ व्यवस्था में तथा ग्रामीण क्षेत्र मे रोजगार सृजन कर बेरोजगारी की समस्या को दूर करने मे सहयोग प्रदान कर सकता है।
उत्कर्ष बैंक के एमडी श्री गोविंद सिंह ने माइक्रो फाइनेंस द्वारा रोजगार सृजन और कमजोर वर्ग की आय में वृद्धि पर प्रकाश डालते हुए कहा कि उत्कर्ष स्मॉल फाइनेंस बैंक भारत का लघु वित्तीय बैंक है हमारे ऋण ग्रामीण या अविकसित इलाकों की महिलाओं या छोटे कारोबारियों के लिए होते हैं. वहां हम अपनी विभिन्न वित्तीय सेवाओं द्वारा इस वर्ग को वित्तीय समृद्धि से आत्मनिर्भर बनाने का प्रयास कर रहे हैं ।
इस अवसर पर माइक्रो फाइनेंस के स्वतः नियामक संस्था साधन के प्रमुख श्री जी जी मेमन सहित इस कॉन्फ्रेंस में शैक्षिक संस्थाओं के रिसर्च स्कॉलर, अनेक वित्तीय विशेषज्ञ, माइक्रो फाइनांस कंपनी के सीईओ के साथ साथ नाबार्ड, आरबीआई तथा सिडबी के वरिष्ठ अधिकारियों ने अपने अपने विचार रखे । सिड़बी के तहत नाबार्ड माइक्रो फाइनैन्स संस्थाओं को समाज के कमजोर वर्ग के लिए रोज़गार परक ऋण उपलब्ध करने मे आर्थिक मदद करता है।
उपमा के मुख्य कार्यकारी अधिकारी सुधीर सिन्हा ने बताया कि माइक्रोफाइनेंस जिसे माइक्रो क्रेडिट भी कहा जाता है, एक प्रकार की बैंकिंग सेवा है जो कम आय वाले व्यक्तियों या समूहों को प्रदान की जाती है माइक्रो फाइनैन्स एसोसिएशन ऑफ उत्तर प्रदेश (उपमा) प्रदेश मे माइक्रो फाइनेंस के क्षेत्र में कार्यरत लगभग 30 संस्थाओं का एक संगठन है जो माइक्रो फाइनैन्स संस्थाओं को क्षमता संवर्धन प्रशिक्षण तथा पॉलिसी एडवोकेसी मे मदद करता है। संस्था प्रति वर्ष अपना वार्षिक सम्मेलन आयोजित करती है संस्था इस वर्ष अपनी स्थापना के 11 वर्ष पूरे कर रही है जब कि यह इसका 7वां अधिवेशन है।
समारोह में पांच सत्रों के दौरान विभिन्न विषयों जैसे व्यक्तिगत डाटा प्रोटेक्शन ऐक्ट के तहत माइक्रो फाइनैन्स संस्थाओं की तैयारी तथा माइक्रो फाइनैन्स एक सामाजिक उपयोगिता पर परिचर्चा हुई। परिचर्चा मे मुंबई से आए जना बैंक के सलाहकार, प्रख्यात लेखक श्री तमाल बंद्योपाध्याय, उत्कर्ष बैंक के एमडी श्री गोविंद सिंह, क्रेडिट एक्सेस के एमडी श्री उदय कुमार, वीएफएस कैपिटल के एमडी श्री कुलदीप मैती, कैशपोर के एमडी मुकुल जयसवाल, सोनाटा फाइनैन्स के एमडी श्री अनूप सिंह, सत्या माइक्रोकैपिटल के एमडी श्री विवेक तिवारी, तथा पहल फाइनैन्स की एमडी सुश्री पूर्वी भवसार ने भाग लिया। इस अवसर पर विभिन्न कंपनियों से आए हुए लगभग 250 प्रतिनिधि मौजूद रहे।
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प्रमिल द्विवेदी मो 9839172462
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