Connect with us
https://aajkikhabar.com/wp-content/uploads/2020/12/Digital-Strip-Ad-1.jpg

लाइफ स्टाइल

सच्ची यौन आजादी का मतलब खुला विकल्प : राचेल

Published

on

Loading

नई दिल्ली| विख्यात लेखिका राचेल हिल्स का कहना है कि यौन आजादी का मतलब इस सोच से छुटकारा हासिल करना है कि सेक्सुअल होने का कोई तरीका किन्हीं अन्य तरीकों की तुलना में अधिक नैतिक है।

हिल्स की नई और बहुत अधिक बिकने वाली किताब ‘द सेक्स मिथ : द गैप बिटवीन आवर फैंटेसी एंड रिएलिटी’ में कहा गया है कि यौन आजादी का अर्थ किसी खास बने बनाए सांचे के हिसाब से सोचने के बजाय कई विकल्पों में से किसी एक को चुनने की आजादी है।

हिल्स ने आईएएनएस को न्यूयार्क से भेजे अपने ई-मेल साक्षात्कार में (किसी भारतीय प्रकाशन को दिया गया पहला साक्षात्कार) कहा, “मुझे लगता है कि महिलाओं की इच्छा को मान्यता देने की संस्कृति बढ़ रही है। इससे महिलाओं को पोर्नोग्राफी जैसी चीजें देखने के लिए पहले से अधिक सामाजिक अनुमति मिल रही है।”

उन्होंने इस बात को खारिज किया कि यौन आजादी बढ़ने के साथ ही सभी लोगों का यौन व्यवहार भी एक जैसा हो जाएगा। भले ही इसका अर्थ हफ्ते में छह बार सेक्स करना, पोर्न देखना या ऐसी ही कोई और बात हो।

हिल्स ने कहा, “कुछ लोग ऐसे होते हैं जो रोज सेक्स करना चाहते हैं लेकिन ऐसे भी लोग हैं जो महीने में एक बार या इससे भी कम करना चाहें। इसमें कोई भी किसी से अच्छा या बुरा नहीं है। सच यह है कि इंसानों में सेक्स की इच्छा अलग-अलग होती है।”

हिल्स ने कहा कि एक अच्छी बात यह हुई है कि अब महिलाओं की सेक्स की इच्छा, इसमें उन्हें मिलने वाली खुशी-संतुष्टि पर ध्यान दिया जा रहा है। हिल्स ने कहा, “ऐसे यौन संबंध सही नहीं हैं जिसमें बस एक ही इंसान आनंद हासिल करे।”

हिल्स के मुताबिक यौन व्यवहार हर युग में एक तरह के ‘मिथ’ से बंधा रहा है। इस मामले में हमें बताया जाता रहा है कि सेक्स है क्या और इसे कैसा होना चाहिए।

वह अफसोस के साथ कहती हैं कि ये बातें सेक्स के बारे में दो तरह की बेचैनी पैदा करती हैं। एक तो हमें बताया जाता रहा है कि हम गंदे हो जाएंगे अगर हम इसे करेंगे और दूसरी यह कि अगर हम इसे पर्याप्त बार नहीं करेंगे तो असफल व्यक्ति साबित होंगे।

उन्होंने कहा कि ‘बेहतर सेक्स’ और कुछ नहीं बस यह है कि दोनों साथी कितना आनंद हासिल कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि सेक्स की अवधि की कोई तयशुदा सीमा नहीं है। यह तो हमें जबरन बेचा जाता है कि अमुक फार्मूला सेक्स के लिए अच्छा है।

किताब ‘द सेक्स मिथ..’ उत्तरी अमेरिका, आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड और इंग्लैंड में अगस्त 2015 में प्रकाशित हुई।

 

Continue Reading

लाइफ स्टाइल

साइलेंट किलर है हाई कोलेस्ट्रॉल की बीमारी, इन लक्षणों से होती है पहचान  

Published

on

By

high cholesterol symptoms

Loading

नई दिल्ली। हाई कोलेस्ट्रॉल की बीमारी एक ऐसी समस्या है, जो धीरे-धीरे शरीर को नुकसान पहुंचाती है इसीलिए इसे एक साइलेंट किलर कहा जाता है। ये बीमारी शरीर पर कुछ संकेत देती है, जिसे अगर नजरअंदाज किया गया, तो स्थिति हाथ से निकल भी सकती है।

हालांकि, पिछले कुछ सालों में कोलेस्ट्रॉल को लेकर लोगों के बीच जागरुकता बढ़ी है और सावधानियां भी बरती जाने लगी हैं। ऐसा नहीं है कि कोलेस्ट्रॉल शरीर के लिए पूरी तरह से नुकसानदायक है। अगर यह सही मात्रा में हो, तो शरीर को फंक्शन करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। चलिए जानते हैं इसी से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण बातें।

कोलेस्ट्रॉल बढ़ जाए तो क्या होगा?

जब शरीर में कोलेस्ट्रॉल की मात्रा 200 mg/dL से अधिक हो जाती है, तो इसे हाई कोलेस्ट्रॉल की श्रेणी में गिना जाता है और डॉक्टर इसे कंट्रोल करने के लिए डाइट से लेकर जीवन शैली तक में कई बदलाव करने की सलाह देते हैं। अगर लंबे समय तक खून में कोलेस्ट्रॉल की मात्रा बनी रहे, तो यह हार्ट डिजीज और हार्ट स्ट्रोक के जोखिम को बढ़ा सकता है।

हाई कोलेस्ट्रॉल को “साइलेंट किलर” क्यों कहते हैं?

हाई कोलेस्ट्रॉल को साइलेंट किलर इसलिए कहते हैं क्योंकि व्यक्ति के स्वास्थ्य पर इसका काफी खतरनाक असर पड़ता है, जिसकी पहचान काफी देर से होती है। इसके शुरुआती लक्षण बहुत छोटे और हल्के होते हैं, जिसे अक्सर लोग नजरअंदाज कर जाते हैं और यहीं से यह बढ़ना शुरू हो जाते हैं। आखिर में इसकी पहचान तब होती है जब शरीर में इसके उलटे परिणाम नजर आने लगते हैं या फिर कोई डैमेज होने लगता है।

शरीर पर दिखने वाले कोलेस्ट्रॉल के लक्षणों को कैसे पहचानें?

हाई कोलेस्ट्रॉल के दौरान पैरों में कुछ महत्वपूर्ण लक्षण नजर आने लगते हैं, जिसे क्लाउडिकेशन कहते हैं। इस दौरान पैरों की मांसपेशियों में दर्द, ऐंठन और थकान महसूस होता है। ऐसा अक्सर कुछ दूर चलने के बाद होता है और आराम करने के साथ ही ठीक हो जाता है।

क्लाउडिकेशन का दर्द ज्यादातर पिंडिलियों, जांघों, कूल्हे और पैरों में महसूस होता है। वहीं समय के साथ यह दर्द गंभीर होता चला जाता है। इसके अलावा पैरों का ठंडा पड़ना भी इसके लक्षणों में से एक है।

गर्मी के मौसम में जब तापमान काफी ज्यादा हो, ऐसे समय में ठंड लगना एक संकेत है कि व्यक्ति पेरिफेरल आर्टरी डिजीज से जूझ रहा है। ऐसा भी हो सकता है कि यह स्थिति शुरुआत में परेशान न करे, लेकिन अगर लंबे समय तक यह स्थिती बनी रहती है तो इलाज में देरी न करें और समय रहते डॉक्टर से इसकी जांच करवाएं।

हाई कोलेस्ट्रॉल के अन्य लक्षणों में से एक पैरों की त्वचा के रंग और बनावट में बदलाव आना भी शामिल है। इस दौरान ब्लड वेसेल्स में प्लाक जमा होने लगते हैं, जिसके कारण ब्लड सर्कुलेशन प्रभावित होता है।

ऐसे में जब शरीर के कुछ हिस्सों में कम मात्रा में खून का दौड़ा होता है, तो वहां कि त्वचा की रंगत और बनावट के अलावा शरीर के उस हिस्से का फंक्शन भी प्रभावित होता है।

इसलिए, अगर आपको अपने पैरों की त्वचा के रंग और बनावट में बिना कारण कोई बदलाव नजर आए, तो हाई कोलेस्ट्रॉल इसका कारण हो सकता है।

डिस्क्लेमर: उक्त लेख सिर्फ सामान्य सूचना के उद्देश्य के लिए हैं और इन्हें पेशेवर चिकित्सा सलाह के रूप में नहीं लिया जाना चाहिए। कोई भी सवाल या परेशानी हो तो हमेशा अपने डॉक्टर से सलाह लें।

Continue Reading

Trending