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हेल्थ

कॉल-ईमेल को छोड़ें, अवसाद भगाएं

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न्यूयॉर्क | पुराने जमाने के अपेक्षाकृत आरामदायक और शांत जीवन जीने वालों के लिए यह खबर हवा के एक ताजे झोंके के समान है। शोध करने वालों ने आखिरकार माना है कि अवसाद से बचने के लिए फोन कॉल करने और ईमेल भेजने से कहीं बेहतर है कि दोस्तों या परिवार के साथ आमने-सामने की मुलाकात की जाए। ओरेगन हेल्थ एंड साइंस यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं की एक टीम ने पाया कि जो लोग अपने परिवार और दोस्तों से नियमित रूप से मिलते रहते हैं उनमें उन लोगों के मुकाबले अवसाद के लक्षण कम पाए गए जो लोगों से फोन या ई-मेल के जरिए बात करते हैं।

अध्ययन में यह भी पता चला कि लोगों से आमने-सामने मिलने से होने वाले फायदे काफी बाद तक अपना असर दिखाते हैं। मनोविज्ञान के असिस्टेंट प्रोफेसर एलन टिओ ने कहा, “यह लोगों को अवसाद से बचाने के लिए अपने खास रिश्तेदारों और दोस्तों से संवाद के तौर तरीके के बारे में मिली जानकारी का पहला रूप है।” टीम ने शोध में पाया कि सामाजिक रूप से मिलने जुलने के सभी तरीके एक समान असर नहीं छोड़ते। टिओ ने कहा, परिवार या दोस्तों के साथ फोन काल या डिजिटल संवाद का अवसाद से बचाने में उतना असर नहीं है जितना प्रत्यक्ष मिलने-जुलने में है।

युनिवर्सिटी ऑफ मिशिगन के लांगीट्यूडनल हेल्थ एंड रिटायरमेंट स्टडी में टिओ और उनके सहयोगियों ने 50 और इससे अधिक उम्र के 11000 व्यस्कों का अध्ययन और परीक्षण किया। अध्ययन करने वालों ने फोन और ई-मेल से लोगों से संपर्क रखने वालों पर ध्यान केंद्रित किया। दो साल तक देखा कि ये कितने अंतराल पर इन जरियों से संवाद करते हैं। उन्होंने पाया कि लोगों से आमने-सामने न मिलने वाले इन लोगों के दो साल बाद अवसादग्रस्त होने की संभावना दोगुनी हो गई है।  अध्ययन में पाया गया कि हफ्ते में कम से कम तीन बार परिवार और दोस्तों से प्रत्यक्ष मिलने वालों में दो साल बाद अवसाद का शिकार होने की संभावना न्यूनतम स्तर पर होती है। जो लोग प्रत्यक्ष तो मिलते हैं लेकिन कम मिलते हैं उनमें इसकी संभावना बढ़ जाती है। यह अध्ययन अमेरिकन जेरिएट्रिक्स सोसाइटी के आनलाइन जरनल में प्रकाशित हुआ है।

 

लाइफ स्टाइल

साइलेंट किलर है हाई कोलेस्ट्रॉल की बीमारी, इन लक्षणों से होती है पहचान  

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नई दिल्ली। हाई कोलेस्ट्रॉल की बीमारी एक ऐसी समस्या है, जो धीरे-धीरे शरीर को नुकसान पहुंचाती है इसीलिए इसे एक साइलेंट किलर कहा जाता है। ये बीमारी शरीर पर कुछ संकेत देती है, जिसे अगर नजरअंदाज किया गया, तो स्थिति हाथ से निकल भी सकती है।

हालांकि, पिछले कुछ सालों में कोलेस्ट्रॉल को लेकर लोगों के बीच जागरुकता बढ़ी है और सावधानियां भी बरती जाने लगी हैं। ऐसा नहीं है कि कोलेस्ट्रॉल शरीर के लिए पूरी तरह से नुकसानदायक है। अगर यह सही मात्रा में हो, तो शरीर को फंक्शन करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। चलिए जानते हैं इसी से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण बातें।

कोलेस्ट्रॉल बढ़ जाए तो क्या होगा?

जब शरीर में कोलेस्ट्रॉल की मात्रा 200 mg/dL से अधिक हो जाती है, तो इसे हाई कोलेस्ट्रॉल की श्रेणी में गिना जाता है और डॉक्टर इसे कंट्रोल करने के लिए डाइट से लेकर जीवन शैली तक में कई बदलाव करने की सलाह देते हैं। अगर लंबे समय तक खून में कोलेस्ट्रॉल की मात्रा बनी रहे, तो यह हार्ट डिजीज और हार्ट स्ट्रोक के जोखिम को बढ़ा सकता है।

हाई कोलेस्ट्रॉल को “साइलेंट किलर” क्यों कहते हैं?

हाई कोलेस्ट्रॉल को साइलेंट किलर इसलिए कहते हैं क्योंकि व्यक्ति के स्वास्थ्य पर इसका काफी खतरनाक असर पड़ता है, जिसकी पहचान काफी देर से होती है। इसके शुरुआती लक्षण बहुत छोटे और हल्के होते हैं, जिसे अक्सर लोग नजरअंदाज कर जाते हैं और यहीं से यह बढ़ना शुरू हो जाते हैं। आखिर में इसकी पहचान तब होती है जब शरीर में इसके उलटे परिणाम नजर आने लगते हैं या फिर कोई डैमेज होने लगता है।

शरीर पर दिखने वाले कोलेस्ट्रॉल के लक्षणों को कैसे पहचानें?

हाई कोलेस्ट्रॉल के दौरान पैरों में कुछ महत्वपूर्ण लक्षण नजर आने लगते हैं, जिसे क्लाउडिकेशन कहते हैं। इस दौरान पैरों की मांसपेशियों में दर्द, ऐंठन और थकान महसूस होता है। ऐसा अक्सर कुछ दूर चलने के बाद होता है और आराम करने के साथ ही ठीक हो जाता है।

क्लाउडिकेशन का दर्द ज्यादातर पिंडिलियों, जांघों, कूल्हे और पैरों में महसूस होता है। वहीं समय के साथ यह दर्द गंभीर होता चला जाता है। इसके अलावा पैरों का ठंडा पड़ना भी इसके लक्षणों में से एक है।

गर्मी के मौसम में जब तापमान काफी ज्यादा हो, ऐसे समय में ठंड लगना एक संकेत है कि व्यक्ति पेरिफेरल आर्टरी डिजीज से जूझ रहा है। ऐसा भी हो सकता है कि यह स्थिति शुरुआत में परेशान न करे, लेकिन अगर लंबे समय तक यह स्थिती बनी रहती है तो इलाज में देरी न करें और समय रहते डॉक्टर से इसकी जांच करवाएं।

हाई कोलेस्ट्रॉल के अन्य लक्षणों में से एक पैरों की त्वचा के रंग और बनावट में बदलाव आना भी शामिल है। इस दौरान ब्लड वेसेल्स में प्लाक जमा होने लगते हैं, जिसके कारण ब्लड सर्कुलेशन प्रभावित होता है।

ऐसे में जब शरीर के कुछ हिस्सों में कम मात्रा में खून का दौड़ा होता है, तो वहां कि त्वचा की रंगत और बनावट के अलावा शरीर के उस हिस्से का फंक्शन भी प्रभावित होता है।

इसलिए, अगर आपको अपने पैरों की त्वचा के रंग और बनावट में बिना कारण कोई बदलाव नजर आए, तो हाई कोलेस्ट्रॉल इसका कारण हो सकता है।

डिस्क्लेमर: उक्त लेख सिर्फ सामान्य सूचना के उद्देश्य के लिए हैं और इन्हें पेशेवर चिकित्सा सलाह के रूप में नहीं लिया जाना चाहिए। कोई भी सवाल या परेशानी हो तो हमेशा अपने डॉक्टर से सलाह लें।

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