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तीसरे मोर्चे को मतदाताओं ने नकारा
पटना। बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर यह पहले से ही तय माना जा रहा था कि असली मुकाबला राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) और सत्ताधरी महागठबंधन के बीच है, लेकिन इस चुनाव के लिए समाजवादी पार्टी के नेतृत्व में तीसरे मोर्चे का भी गठन हुआ और वामपंथी दलों का एक अन्य गठबंधन भी तैयार हुआ। हालांकि रविवार को जारी मतगणना के रूझानों से स्पष्ट है कि मतदाताओं ने इस मोर्चे व गठबंधन को पूरी तरह नकार दिया।
चुनाव के दौरान भी हालांकि वाम दलों वाले गठबंधन और सपा के नेतृत्व वाले तीसरे मोर्चे की चर्चा कम ही रही। हालांकि तीसरे मोर्चे के नेता यह दावा जरूर करते रहे कि बिहार में सरकार गठन में उनकी भूमिका अहम होगी। जद (यू) के प्रदेश अध्यक्ष वशिष्ठ नारायण सिंह ने कहा, “सपा के नेतृत्व वाले तीसरे मोर्चे के बारे में बिहार की जनता जानती थी। बिहार के मतदाता राजनीति में परिपक्व रहे हैं। ऐसे में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने इन्हें बरगलाने की कोशिश की, जिसे जनता ने नकार दिया। इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है।”
इस चुनाव में वामपंथी दल एक अन्य गठबंधन के तहत चुनाव मैदान में उतरे, लेकिन इसका कोई लाभ उन्हें नहीं मिला। इस चुनाव में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा), भाकपा-माले, मार्क्सतवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा), सोशलिस्ट यूनिटी सेंटर ऑफ इंडिया (एसयूसीआई), फॉरबर्ड ब्लॉक और आरएसपी ने मिलकर किला फतह करने की कोशिश की थी।
इधर, समाजवादी पार्टी के नेतृत्व में सांसद पप्पू यादव की जन अधिकार पार्टी, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा), नेशनल पीपुल्स पार्टी, समरस समाज पार्टी और समाजवादी जनता दल राष्ट्रीय गठबंधन के तहत चुनाव मैदान में उतरी थी।
राकांपा और समरस समाज पार्टी हालांकि चुनाव के दौरान ही मोर्चे से बाहर हो गई, लेकिन पप्पू यादव ने दावा किया था कि बिहार में कोई भी सरकार तीसरे मोर्चे के बिना नहीं बना पाएगी। हालांकि मतगणना के रूझानों में यह मोर्चा कहीं नजर नहीं आया। राजनीति के जानकार सुरेन्द्र किशोर के अनुसार, “इस चुनाव में लड़ाई आमने-सामने की थी, ऐसे में कोई भी मतदाता ‘गोईठा में घी सुखाना’ नहीं चाहता था। वैसे भी छह दलों के मोर्चे को लोग ‘खंड-खंड पाखंड’ समझ चुके थे। मोर्चा में शामिल पार्टियां चुनाव के दौरान ही बंट गई थीं।”
वामपंथी दलों के बारे में किशोर ने कहा वामपंथी दलों का आधार बिहार में लगातार कमजोर रहा है और मतदाताओं ने इस बार भी उसे नकार दिया। माकपा के वरिष्ठ नेता अरुण मिश्रा के अनुसार, “सच्चाई है कि पिछले दिनों वामपंथी जनाधार में कमी आई है और इसकी कई वजहें रही हैं।” उन्होंने कहा, “यहां क्षेत्रीय शक्तियों के उभार में हमारी जो भूमिका रही, उससे हमारी संघर्षशील छवि और वर्ग संघर्ष को तेज करने का कार्यक्रम कहीं न कहीं कमजोर हुआ है।”
नेशनल
ऑनलाइन फूड ऑर्डरिंग ऐप को मनमानी करने पर 103 के बदले देने पड़ेंगे 35,453 रु, जानें क्या है पूरा मामला
हैदराबाद। ऑनलाइन फूड ऑर्डरिंग ऐप स्विगी को ग्राहक के साथ मनमानी करना भारी पड़ गया। कंपनी की इस मनमानी पर एक कोर्ट ने स्विगी पर तगड़ा जुर्माना ठोक दिया। हैदराबाद के निवासी एम्माडी सुरेश बाबू की शिकायत पर उपभोक्ता आयोग ने बड़ा फैसला सुनाया है। बाबू ने आरोप लगाया था कि स्विगी ने उनके स्विगी वन मेंबरशिप के लाभों का उल्लंघन किया और डिलीवरी Food Delivery की दूरी को जानबूझकर बढ़ाकर उनसे अतिरिक्त शुल्क वसूला
क्या है पूरा मामला ?
सुरेश बाबू ने 1 नवंबर, 2023 को स्विगी से खाना ऑर्डर किया था। सुरेश के लोकेशन और रेस्टॉरेंट की दूरी 9.7 किमी थी, जिसे स्विगी ने बढ़ाकर 14 किमी कर दिया था। दूरी में बढ़ोतरी की वजह से सुरेश को स्विगी का मेंबरशिप होने के बावजूद 103 रुपये का डिलीवरी चार्ज देना पड़ा। सुरेश ने आयोग में शिकायत दर्ज कराते हुए कहा कि स्विगी वन मेंबरशिप के तहत कंपनी 10 किमी तक की रेंज में फ्री डिलीवरी करने का वादा किया था।कोर्ट ने बाबू द्वारा दिए गए गूगल मैप के स्क्रीनशॉट्स और बाकी सबूतों की समीक्षा की और पाया कि दूरी में काफी बढ़ोतरी की गई है।
कोर्ट ने स्विगी को अनुचित व्यापार व्यवहार का दोषी पाया और कंपनी को आदेश दिया कि वे सुरेश बाबू को 9 प्रतिशत ब्याज के साथ 350.48 रुपये के खाने का रिफंड, डिलीवरी के 103 रुपये, मानसिक परेशानी और असुविधा के लिए 5000 रुपये, मुकदमे की लागत के लिए 5000 रुपए समेत कुल 35,453 रुपये का भुगतान करे।
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