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हेल्थ

प्रोस्टेट कैंसर के इलाज का दुष्प्रभाव घटाता है योग

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न्यूयार्क। एक नए अध्ययन में सामने आया है कि प्रोस्टेट कैंसर से पीड़ित पुरुष जो रेडिएशन थेरेपी से गुजर रहा हो, वह अगर नियमित तौर पर योग करे तो उनकी सेहत में सुधार की संभावना बढ़ सकती है। यह अध्ययन अमेरिका की पेंसिल्वेनिया यूनिवर्सिटी में किया गया, जिसमें भारतीय मूल की एक वैज्ञानिक भी शामिल थे।

शोधार्थियों ने पाया कि प्रोस्टेट कैंसर के रोगियों में थेरेपी के समय सामान्य तरह के दुष्प्रभाव (साइड इफेक्ट्स) देखने को मिलते हैं। इन साइड इफेक्ट्स में थकान होना, यौन स्वास्थ्य प्रभावित होना और पेशाब का असंयमित हो जाना शामिल है। ऐसे में रेडिएशन थेरेपी से गुजर रहे पुरुष अगर योग कार्यक्रमों में नियमित तौर पर हिस्सा लेते हैं तो इससे दुष्प्रभाव में कमी आती है।

पेंसिल्वेनिया यूनिवर्सिटी के अब्रामसन कैंसर संस्थान की एसोसिएट प्रोफेसर नेहा वापीवाला ने बताया कि शोध के आंकड़ों से साबित हुआ है कि कैंसर थेरेपी लेते वक्त योग करने से उपचार से होने वाले दुष्प्रभाव में कमी आती है। यह हमारे योग कार्यक्रमों के लिए काफी अच्छी खबर है। इस अध्ययन में योग के संभावित लाभों को विस्तार से बताते हुए कहा गया है कि साइकोलॉजिक डेटा के अनुसार, योग कैंसर संबंधित थकान को कम करने और पेल्विक फ्लोर मांसपेशियों को मजबूती प्रदान कर रक्त स्राव को बढ़ाने की क्षमता रखता है।

वापीवाला ने बताया कि मई 2013 से जून 2014 के बीच ट्रेंड प्रशिक्षकों द्वारा हफ्ते में दो बार 75 मिनट की ईकेन्स योगा क्लासेस ली गई। इस सफलता के बाद हम उम्मीद करते हैं कि योग द्वारा इरेक्टाइल डिस्फंक्शन (लिंग उत्तेजित न होना) और पेशाब के असंतुलन में भी सुधार लाया जा सकता है। अब्रामसन योगा सेंटर के प्रशिक्षिक ने बताया कि ईकेन्स योगा में काइनिसियोलॉजी के सिद्धांतों को शामिल किया गया है जो सभी बॉडी टाइप और लेवल्स के लिए अच्छा है। ज्यादातर योग प्रतिभागियों में इसके सकारात्मक लक्षण देखने को मिले हैं। यह रिपोर्ट बोस्टन के 12वें इंटरनेशनल कान्फ्रेंस में इंटीग्रेटिव ओन्कोलॉजी सोसाइटी की ओर से प्रस्तुत किया गया।

लाइफ स्टाइल

साइलेंट किलर है हाई कोलेस्ट्रॉल की बीमारी, इन लक्षणों से होती है पहचान  

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नई दिल्ली। हाई कोलेस्ट्रॉल की बीमारी एक ऐसी समस्या है, जो धीरे-धीरे शरीर को नुकसान पहुंचाती है इसीलिए इसे एक साइलेंट किलर कहा जाता है। ये बीमारी शरीर पर कुछ संकेत देती है, जिसे अगर नजरअंदाज किया गया, तो स्थिति हाथ से निकल भी सकती है।

हालांकि, पिछले कुछ सालों में कोलेस्ट्रॉल को लेकर लोगों के बीच जागरुकता बढ़ी है और सावधानियां भी बरती जाने लगी हैं। ऐसा नहीं है कि कोलेस्ट्रॉल शरीर के लिए पूरी तरह से नुकसानदायक है। अगर यह सही मात्रा में हो, तो शरीर को फंक्शन करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। चलिए जानते हैं इसी से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण बातें।

कोलेस्ट्रॉल बढ़ जाए तो क्या होगा?

जब शरीर में कोलेस्ट्रॉल की मात्रा 200 mg/dL से अधिक हो जाती है, तो इसे हाई कोलेस्ट्रॉल की श्रेणी में गिना जाता है और डॉक्टर इसे कंट्रोल करने के लिए डाइट से लेकर जीवन शैली तक में कई बदलाव करने की सलाह देते हैं। अगर लंबे समय तक खून में कोलेस्ट्रॉल की मात्रा बनी रहे, तो यह हार्ट डिजीज और हार्ट स्ट्रोक के जोखिम को बढ़ा सकता है।

हाई कोलेस्ट्रॉल को “साइलेंट किलर” क्यों कहते हैं?

हाई कोलेस्ट्रॉल को साइलेंट किलर इसलिए कहते हैं क्योंकि व्यक्ति के स्वास्थ्य पर इसका काफी खतरनाक असर पड़ता है, जिसकी पहचान काफी देर से होती है। इसके शुरुआती लक्षण बहुत छोटे और हल्के होते हैं, जिसे अक्सर लोग नजरअंदाज कर जाते हैं और यहीं से यह बढ़ना शुरू हो जाते हैं। आखिर में इसकी पहचान तब होती है जब शरीर में इसके उलटे परिणाम नजर आने लगते हैं या फिर कोई डैमेज होने लगता है।

शरीर पर दिखने वाले कोलेस्ट्रॉल के लक्षणों को कैसे पहचानें?

हाई कोलेस्ट्रॉल के दौरान पैरों में कुछ महत्वपूर्ण लक्षण नजर आने लगते हैं, जिसे क्लाउडिकेशन कहते हैं। इस दौरान पैरों की मांसपेशियों में दर्द, ऐंठन और थकान महसूस होता है। ऐसा अक्सर कुछ दूर चलने के बाद होता है और आराम करने के साथ ही ठीक हो जाता है।

क्लाउडिकेशन का दर्द ज्यादातर पिंडिलियों, जांघों, कूल्हे और पैरों में महसूस होता है। वहीं समय के साथ यह दर्द गंभीर होता चला जाता है। इसके अलावा पैरों का ठंडा पड़ना भी इसके लक्षणों में से एक है।

गर्मी के मौसम में जब तापमान काफी ज्यादा हो, ऐसे समय में ठंड लगना एक संकेत है कि व्यक्ति पेरिफेरल आर्टरी डिजीज से जूझ रहा है। ऐसा भी हो सकता है कि यह स्थिति शुरुआत में परेशान न करे, लेकिन अगर लंबे समय तक यह स्थिती बनी रहती है तो इलाज में देरी न करें और समय रहते डॉक्टर से इसकी जांच करवाएं।

हाई कोलेस्ट्रॉल के अन्य लक्षणों में से एक पैरों की त्वचा के रंग और बनावट में बदलाव आना भी शामिल है। इस दौरान ब्लड वेसेल्स में प्लाक जमा होने लगते हैं, जिसके कारण ब्लड सर्कुलेशन प्रभावित होता है।

ऐसे में जब शरीर के कुछ हिस्सों में कम मात्रा में खून का दौड़ा होता है, तो वहां कि त्वचा की रंगत और बनावट के अलावा शरीर के उस हिस्से का फंक्शन भी प्रभावित होता है।

इसलिए, अगर आपको अपने पैरों की त्वचा के रंग और बनावट में बिना कारण कोई बदलाव नजर आए, तो हाई कोलेस्ट्रॉल इसका कारण हो सकता है।

डिस्क्लेमर: उक्त लेख सिर्फ सामान्य सूचना के उद्देश्य के लिए हैं और इन्हें पेशेवर चिकित्सा सलाह के रूप में नहीं लिया जाना चाहिए। कोई भी सवाल या परेशानी हो तो हमेशा अपने डॉक्टर से सलाह लें।

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