हेल्थ
अब उंगलियों पर इशारे पर फिटनेस!
नई दिल्ली। अगर आप फिटनेस के लिए भरसक प्रयास कर रहे हैं, लेकिन उसका कोई फायदा नहीं हो रहा तो फिटनेस एप्स, रिस्ट बैंड्स और ऑनलाइन सेवाओं की दुनिया में आपका स्वागत है। यानी ऐसी सेवाएं जो घर बैठे ही लोगों को फिटनेस का लक्ष्य हासिल करने में मदद कर रही हैं।
स्वास्थ्य और फिटनेस मार्केट में अग्रणी ‘फिटबिट इंक’ के प्रमुख राजस्व अधिकारी वूडी स्कल के मुताबिक, उपभोक्ताओं ने अनुमानत: 2014 में स्वास्थ्य और फिटनेस सेवाओं पर 20 अरब डॉलर खर्च किए। भारत में भी फिटनेस का जुनून तेजी से बढ़ रहा है। स्कल ने पत्रकार को ईमेल के माध्यम से बताया, “लोग अपने स्वास्थ्य और फिटनेस में सुधार करना चाहते हैं। साथ ही भारत में मोटापा, डायबिटीज और कैंसर जैसी स्वास्थ्य समस्याएं लोगों को फिट शरीर के लिए नए तरीके खोजने को प्रेरित कर रही हैं।”
लेकिन सवाल यह है कि देशभर में खुलते जिम और फिटनेस सेंटर के होते हुए क्या फिटनेस के लिए ऑनलाइन सेवाओं की जरूरत है? एक ऑनलाइन वेबसाइट और मोबाइल एप हेल्थिफाइ मी के कोच श्री लक्ष्मी के मुताबिक, “दुर्भाग्य से इन जिम में से 20 प्रतिशत में भी सर्टिफाइड ट्रेनर्स नहीं होते।”
फिटबिट और जॉबोन के भारत में प्रवेश को देखते हुए फिटनेस क्षेत्र के अधिकांश वैश्विक खिलाड़ी स्वास्थ्य क्षेत्र में प्रवेश करने के लिए कतार में खड़े हैं। स्कल ने भारत को इस वर्ग के बड़े बाजार के रूप में उभरने के बारे में बताते हुए कहा, “एक्सेंचर के हालिया डिजिटल कंज्यूमर टेक सर्वे में पाया गया कि भारतीय उपभोक्ता फिटनेस मॉनिटर और स्मार्ट वॉच खरीदने के इच्छुक हैं, इसलिए हम मानते हैं कि यह इस वर्ग का एक बड़ा बाजार बनेगा।”
स्मार्ट वॉच के एक अग्रणी ब्रांड टाइमएक्स ने भी भारत में स्वास्थ्य वर्ग में कदम रख दिए हैं। टाइमएक्स ग्रुप इंडिया के प्रमुख अनुपम माथुर ने कहा, “हालांकि भारतीय बाजार अपनी प्रारंभिक अवस्था में है, लेकिन पहनने योग्य प्रोद्यौगिकी के साथ कई ब्रांड्स के प्रवेश से इस वर्ग में काफी संभावनाएं बढ़ी हैं।”
डिजिटल प्रोद्यौगिकी के साथ स्वास्थ्य उपकरणों का समन्वय कई भारतीय फिटनेस एप्स और ऑनलाइन स्टार्ट अप्स को प्रवेश का मौका दे रहा है। माथुर ने कहा, “डिजिटल और स्वास्थ्य देखभाल के समन्वय से पहनने योग्य उपकरण निर्मित हो रहे हैं। ये सेंसर्स के माध्यम से दिल की धड़कन और गति जैसे मानकों पर नजर रखते हैं, जो पहनने वाले के स्वास्थ्य के बारे में जानकारी देते हैं।”
उपकरण के आधार पर गति, व्यायाम, दूरी, दिल की धड़कन, रक्तचाप, तापमान और अन्य चीजों पर नजर रखी जा सकती है। हेल्थिफाइ मी के वर्तमान में भारत में 1,80,000 से भी अधिक उपभोक्ता हैं। माथुर के मुताबिक, “हमारे उपभोक्ता फिटनेस के शौकीन और एथलीट हैं जो स्टाइल और प्रोद्यौगिकी का मेल चाहते हैं। 18-34 की उम्र वर्ग के ये उपभोक्ता ऐसे एक ही गजट में सब कुछ चाहते हैं जो कि एक विश्वसनीय प्रोद्यौगिकी हो।” लक्ष्मी ने कहा, “जीत तभी होगी जब स्मार्टफोन आपके निजी कोच, निजी न्यूट्रिशनिस्ट और निजी चिकित्सक के रूप में काम करना शुरू कर दें।”
लाइफ स्टाइल
साइलेंट किलर है हाई कोलेस्ट्रॉल की बीमारी, इन लक्षणों से होती है पहचान
नई दिल्ली। हाई कोलेस्ट्रॉल की बीमारी एक ऐसी समस्या है, जो धीरे-धीरे शरीर को नुकसान पहुंचाती है इसीलिए इसे एक साइलेंट किलर कहा जाता है। ये बीमारी शरीर पर कुछ संकेत देती है, जिसे अगर नजरअंदाज किया गया, तो स्थिति हाथ से निकल भी सकती है।
हालांकि, पिछले कुछ सालों में कोलेस्ट्रॉल को लेकर लोगों के बीच जागरुकता बढ़ी है और सावधानियां भी बरती जाने लगी हैं। ऐसा नहीं है कि कोलेस्ट्रॉल शरीर के लिए पूरी तरह से नुकसानदायक है। अगर यह सही मात्रा में हो, तो शरीर को फंक्शन करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। चलिए जानते हैं इसी से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण बातें।
कोलेस्ट्रॉल बढ़ जाए तो क्या होगा?
जब शरीर में कोलेस्ट्रॉल की मात्रा 200 mg/dL से अधिक हो जाती है, तो इसे हाई कोलेस्ट्रॉल की श्रेणी में गिना जाता है और डॉक्टर इसे कंट्रोल करने के लिए डाइट से लेकर जीवन शैली तक में कई बदलाव करने की सलाह देते हैं। अगर लंबे समय तक खून में कोलेस्ट्रॉल की मात्रा बनी रहे, तो यह हार्ट डिजीज और हार्ट स्ट्रोक के जोखिम को बढ़ा सकता है।
हाई कोलेस्ट्रॉल को “साइलेंट किलर” क्यों कहते हैं?
हाई कोलेस्ट्रॉल को साइलेंट किलर इसलिए कहते हैं क्योंकि व्यक्ति के स्वास्थ्य पर इसका काफी खतरनाक असर पड़ता है, जिसकी पहचान काफी देर से होती है। इसके शुरुआती लक्षण बहुत छोटे और हल्के होते हैं, जिसे अक्सर लोग नजरअंदाज कर जाते हैं और यहीं से यह बढ़ना शुरू हो जाते हैं। आखिर में इसकी पहचान तब होती है जब शरीर में इसके उलटे परिणाम नजर आने लगते हैं या फिर कोई डैमेज होने लगता है।
शरीर पर दिखने वाले कोलेस्ट्रॉल के लक्षणों को कैसे पहचानें?
हाई कोलेस्ट्रॉल के दौरान पैरों में कुछ महत्वपूर्ण लक्षण नजर आने लगते हैं, जिसे क्लाउडिकेशन कहते हैं। इस दौरान पैरों की मांसपेशियों में दर्द, ऐंठन और थकान महसूस होता है। ऐसा अक्सर कुछ दूर चलने के बाद होता है और आराम करने के साथ ही ठीक हो जाता है।
क्लाउडिकेशन का दर्द ज्यादातर पिंडिलियों, जांघों, कूल्हे और पैरों में महसूस होता है। वहीं समय के साथ यह दर्द गंभीर होता चला जाता है। इसके अलावा पैरों का ठंडा पड़ना भी इसके लक्षणों में से एक है।
गर्मी के मौसम में जब तापमान काफी ज्यादा हो, ऐसे समय में ठंड लगना एक संकेत है कि व्यक्ति पेरिफेरल आर्टरी डिजीज से जूझ रहा है। ऐसा भी हो सकता है कि यह स्थिति शुरुआत में परेशान न करे, लेकिन अगर लंबे समय तक यह स्थिती बनी रहती है तो इलाज में देरी न करें और समय रहते डॉक्टर से इसकी जांच करवाएं।
हाई कोलेस्ट्रॉल के अन्य लक्षणों में से एक पैरों की त्वचा के रंग और बनावट में बदलाव आना भी शामिल है। इस दौरान ब्लड वेसेल्स में प्लाक जमा होने लगते हैं, जिसके कारण ब्लड सर्कुलेशन प्रभावित होता है।
ऐसे में जब शरीर के कुछ हिस्सों में कम मात्रा में खून का दौड़ा होता है, तो वहां कि त्वचा की रंगत और बनावट के अलावा शरीर के उस हिस्से का फंक्शन भी प्रभावित होता है।
इसलिए, अगर आपको अपने पैरों की त्वचा के रंग और बनावट में बिना कारण कोई बदलाव नजर आए, तो हाई कोलेस्ट्रॉल इसका कारण हो सकता है।
डिस्क्लेमर: उक्त लेख सिर्फ सामान्य सूचना के उद्देश्य के लिए हैं और इन्हें पेशेवर चिकित्सा सलाह के रूप में नहीं लिया जाना चाहिए। कोई भी सवाल या परेशानी हो तो हमेशा अपने डॉक्टर से सलाह लें।
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