मुख्य समाचार
डीडीसीए विवादः हुड़दंग या हकीकत
डीडीसीए विवाद को लेकर घमासान जारी है। किसी भी बड़े आदमी पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाकर सनसनी फैलाना और फिर साबित न कर पाने पर माफी मांगने वाली बचकानी पार्टी आप के अगुआ अरविंद केजरीवाल ने वित्त मंत्री अरूण जेटली पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाकर एक बार फिर यह साबित कर दिया है कि भ्रष्टाचार से उनकी लड़ाई तो केवल दिखावा है। कारण कि उन्हीं के द्वारा बनाई गई जांच कमेटी में अरूण जेटली का जिक्र तक नहीं है। अब बात आती है इस पूरे विवाद को चर्चा में लाने वाले भाजपा से निलंबित सांसद कीर्ति आजाद की। कीर्ति आजाद ने जो मुद्दे उठाए वह कुछ हद तक सही हो सकते हैं लेकिन सवाल उनके तरीके को लेकर उठता है। एक सत्ताधारी दल के जिम्मेदार सांसद होने के बावजूद अपने ही वित्तमंत्री के खिलाफ विपक्षी पाटिर्यों का हथियार बन जाना ही मेरी समझ से कीर्ति आजाद की सबसे बड़ी गलती है।
कीर्ति आजाद की बहुप्रचारित प्रेस कांफ्रेंस जिसमें वो आम आदमी पार्टी के 15 प्रतिशत खुलासे के सापेक्ष 85 प्रतिशत खुलासा करने वाले थे वो भी गीला पटाखा ही साबित हुई थी। उसमें विकीलीक्स और एक नामालूम से हिंदी दैनिक के सौजन्य से किए गए ‘सनसनीखेज’ खुलासे में भी कुछ ऐसा खास नहीं निकला जिसे भ्रष्टाचार की संज्ञा दी जा सके, हां वित्तीय अनियमितता जरूर कही जा सकती है और इसी शब्द का इस्तेमाल सीरियस फ्राड जांच एजेंसी ने भी किया था।
अब रही बात अरूण जेटली द्वारा मानहानि का केस आप नेताओं पर दायर करने की और कीर्ति आजाद पर न दायर करने की, तो इसकी वजह यह हो सकती है कि कीर्ति आजाद ने कभी भी खुलकर अरूण जेटली को भ्रष्टाचारी या चोर नहीं कहा जबकि केजरीवाल और उनकी बचकानी टीम ने साफ तौर पर जेटली को भ्रष्ट बताया था। जहां तक कीर्ति आजाद पर हुई पार्टी की कार्यवाही का है तो वह बिल्कुल सही है क्योंकि जब वो पिछले दस सालों से आरोप पर आरोप लगा रहे थे और उन आरोपों के बाद यूपीए सरकार में हुई जांच में भी अरूण जेटली के खिलाफ कुछ नहीं मिला तो संसद में कांग्रेस का हथियार बनकर अपने एक वरिष्ठ नेता को चुनौती देना ठीक नहीं था वो भी तब जब पार्टी अध्यक्ष ने उनको अब इस मामले पर आगे न बोलने का निर्देश दिया था।
हर पार्टी का काम करने का एक तरीका होता है जहां तक भारतीय जनता पार्टी का सवाल है तो वह एक कॉडर बेस पार्टी है जहां आंतरिक तौर पर पूर्ण लोकतंत्र है। कीर्ति आजाद को एक सत्ताधारी दल के सांसद की तरह व्यवहार करना चाहिए था न कि विपक्ष की तरह। केंद्रीय वित्त मंत्री एक बहुत महत्तवपूर्ण पद होता है। नीति निर्धारण में उसकी महती भूमिका होती है और यदि किसी देश के वित्तमंत्री पर उसके ही दल का सांसद भले अपरोक्ष रूप से ही, भ्रष्टाचार के आरोप लगाए तो देश की बदनामी विदेशों में होती है, विदेशी निवेश तक प्रभावित हो सकता है। सबसे बड़ी बात कीर्ति आजाद खिलौना किसका बने। कांग्रेस जैसी पार्टी का, जिसे भ्रष्टाचार पर बोलने का नैतिक हक ही नहीं है या आम आदमी पार्टी जो भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ने से ज्यादा लड़ने का दिखावा करती है और जिसकी राजनैतिक सूझबूझ पर हमेशा से एक सवालिया निशान लगता रहा है।
जहां तक बात डीडीसीए में भ्रष्टाचार की है तो जो मुझे समझ में आता है कि जिस 114 करोड़ के स्टेडियम की बात हो रही है उसे बनाने का ठेका इंजीनियर्स प्राइवेट इंडिया लिमिटेड नामक कंपनी को दिया गया जो एक सरकारी कंपनी है अब यदि उसने कोई उप ठेका दिया है और उसमें कोई भ्रष्टाचार है तो उसकी पूछताछ कंपनी से होनी चाहिए। अरूण जेटली ने संसद में साफ कर दिया कि उनके कार्यकाल में तो पूरा स्टेडियम 114 करोड़ में बना जबकि कांग्रेस ने जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम के रेनोवशन में ही नौ सौ करोड़ खर्च कर दिए थे। यहां मैं एक बात से पूरी तरह सहमत हूं कि खेल प्रशासक कोई खिलाड़ी ही होना चाहिए न कि राजनीतिज्ञ, हां देखरेख व पैनी नजर जरूर किसी सरकारी तंत्र के हाथ में होना चाहिए। कीर्ति आजाद का व्यक्तिगत रूप से मैं बड़ा प्रशंसक रहा हूं लेकिन जिस पार्टी ने उन्हें लगातार आरोप लगाने के बाद भी सांसद बनाकर सम्मानित किया उसके इतने वरिष्ठ नेता को बदनाम करने के लिए विपक्षियों का हथियार बनना निंदनीय है।
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बदल गई उपचुनावों की तारीख! यूपी, केरल और पंजाब में बदलाव पर ये बोला चुनाव आयोग
नई दिल्ली। विभिन्न उत्सवों के कारण केरल, पंजाब और उत्तर प्रदेश में विधानसभा क्षेत्रों में उपचुनाव 13 नवंबर की जगह 20 नवंबर को होंगे। कांग्रेस, भाजपा, बसपा, रालोद और अन्य राष्ट्रीय और राज्य दलों के अनुरोध पर चुनाव आयोग ने ये फैसला लिया है।
विभिन्न उत्सवों की वजह से कम मतदान की किसी भी संभावना को खारिज करने के लिए, चुनाव आयोग ने ये फैसला लिया है। ऐसे में ये साफ है कि अब यूपी, पंजाब और केरल में उपचुनाव 13 नवंबर की जगह 20 नवंबर को होंगे।
चुनाव आयोग के मुताबिक राष्ट्रीय और राज्य स्तर की पार्टियों की ओर से उनसे मांग की गई थी कि 13 नवंबर को होने वाले विधानसभा उपचुनाव की तारीख में बदलाव किया जाए, क्योंकि उस दिन धार्मिक, सामाजिक कार्यक्रम हैं। जिसके चलते चुनाव संपन्न करवाने में दिक्कत आएगी और उसका असर मतदान प्रतिशत पर भी पड़ेगा।
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