हेल्थ
50 की उम्र के बाद सिर्फ उच्च रक्तचाप पर दें ध्यान
नई दिल्ली| 50 साल से ज्यादा उम्र के मरीजों को केवल अपने उच्च रक्तचाप पर ध्यान देना चाहिए और निम्न ब्लड प्रेशर को नजरअंदाज कर देना चाहिए। 50 साल से ज्यादा उम्र के लोगों के लिए सिस्टॉलिक प्रेशर अगर 140 एएएचजी या ज्यादा हो तो इसे हाई माना जाता है। यह जानकारी हार्ट केयर फाउंडेशन (एचसीएफआई) के अध्यक्ष डॉ. के.के. अग्रवाल ने दी।
उन्होंने बताया कि सिस्टॉलिक ब्लड प्रेशर-ब्लड प्रेशर की रीडिंग में ऊपरी रीडिंग-दिल के पपिंग साइकल की शुरुआत में नोट किए जाने वाला नंबर होता है, जबकि डायस्टिोलिक प्रेशर रेस्टिंग साइकल के दौरान निम्नतम प्रेशर रिकार्ड करता है। ब्लड प्रेशर मापते वक्त दोनों को देखा जाता है।
जर्नल ऑफ लांसेट में प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक, डायस्टोलिक प्रेशर पर जोर दिया गया है, जबकि मरीज सिस्टॉलिक प्रेशर पर उचित नियंत्रण नहीं रख पा रहे हैं। सच्चाई यह है कि 50 साल से ज्यादा उम्र के लोगों को तो डायस्टोलिक माप की जरूरत भी नहीं है, केवल उन्हें सिस्टॉलिक ब्लड प्रेशर पर ध्यान देने की जरूरत है।
आम तौर पर सिस्टॉलिक ब्लड प्रेशर उम्र के साथ बढ़ता रहता है, जबकि डायस्टिॉलिक प्रेशर 50 की उम्र के बाद कम होने लगता है। यह वही वक्त होता है जब दिल के रोगों का समय शुरू होता है। इसलिए 50 के बाद सिस्टॉलिक हाइपरटेंशन बढ़ जाती है, जबकि डॉयटॉलिक हाइपरटेंशन होती ही नहीं। बढ़ता सिस्टॉलिक प्रेशर स्ट्रोक और दिल के रोगों के लिए बेहद अहम है।
डॉ. अग्रवाल के मुताबिक, 50 से कम उम्र के लोगों में यह अलग होता है। 40 साल से कम के 40 प्रतिशत बालिगों में डायस्टोलिक हाइपरटेंशन होता है। उनमें एक 40 से 50 के एक तिहाई में यह समस्या होती है।
उन्होंने कहा कि ऐसे मरीजों के लिए सिस्टॉलिक और डॉयस्टिॉलिक ब्लड प्रेशर दोनों पर गौर करने की जरूरत होती है। लेकिन ऐसे मरीजों में भी सिस्टॉलिक ब्लड प्रेशर पर नियंत्रण रखने से डायस्टिॉलिक ब्लड प्रेशर के मामले में भी आवश्यक परिणाम आ जाते हैं।
लाइफ स्टाइल
साइलेंट किलर है हाई कोलेस्ट्रॉल की बीमारी, इन लक्षणों से होती है पहचान
नई दिल्ली। हाई कोलेस्ट्रॉल की बीमारी एक ऐसी समस्या है, जो धीरे-धीरे शरीर को नुकसान पहुंचाती है इसीलिए इसे एक साइलेंट किलर कहा जाता है। ये बीमारी शरीर पर कुछ संकेत देती है, जिसे अगर नजरअंदाज किया गया, तो स्थिति हाथ से निकल भी सकती है।
हालांकि, पिछले कुछ सालों में कोलेस्ट्रॉल को लेकर लोगों के बीच जागरुकता बढ़ी है और सावधानियां भी बरती जाने लगी हैं। ऐसा नहीं है कि कोलेस्ट्रॉल शरीर के लिए पूरी तरह से नुकसानदायक है। अगर यह सही मात्रा में हो, तो शरीर को फंक्शन करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। चलिए जानते हैं इसी से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण बातें।
कोलेस्ट्रॉल बढ़ जाए तो क्या होगा?
जब शरीर में कोलेस्ट्रॉल की मात्रा 200 mg/dL से अधिक हो जाती है, तो इसे हाई कोलेस्ट्रॉल की श्रेणी में गिना जाता है और डॉक्टर इसे कंट्रोल करने के लिए डाइट से लेकर जीवन शैली तक में कई बदलाव करने की सलाह देते हैं। अगर लंबे समय तक खून में कोलेस्ट्रॉल की मात्रा बनी रहे, तो यह हार्ट डिजीज और हार्ट स्ट्रोक के जोखिम को बढ़ा सकता है।
हाई कोलेस्ट्रॉल को “साइलेंट किलर” क्यों कहते हैं?
हाई कोलेस्ट्रॉल को साइलेंट किलर इसलिए कहते हैं क्योंकि व्यक्ति के स्वास्थ्य पर इसका काफी खतरनाक असर पड़ता है, जिसकी पहचान काफी देर से होती है। इसके शुरुआती लक्षण बहुत छोटे और हल्के होते हैं, जिसे अक्सर लोग नजरअंदाज कर जाते हैं और यहीं से यह बढ़ना शुरू हो जाते हैं। आखिर में इसकी पहचान तब होती है जब शरीर में इसके उलटे परिणाम नजर आने लगते हैं या फिर कोई डैमेज होने लगता है।
शरीर पर दिखने वाले कोलेस्ट्रॉल के लक्षणों को कैसे पहचानें?
हाई कोलेस्ट्रॉल के दौरान पैरों में कुछ महत्वपूर्ण लक्षण नजर आने लगते हैं, जिसे क्लाउडिकेशन कहते हैं। इस दौरान पैरों की मांसपेशियों में दर्द, ऐंठन और थकान महसूस होता है। ऐसा अक्सर कुछ दूर चलने के बाद होता है और आराम करने के साथ ही ठीक हो जाता है।
क्लाउडिकेशन का दर्द ज्यादातर पिंडिलियों, जांघों, कूल्हे और पैरों में महसूस होता है। वहीं समय के साथ यह दर्द गंभीर होता चला जाता है। इसके अलावा पैरों का ठंडा पड़ना भी इसके लक्षणों में से एक है।
गर्मी के मौसम में जब तापमान काफी ज्यादा हो, ऐसे समय में ठंड लगना एक संकेत है कि व्यक्ति पेरिफेरल आर्टरी डिजीज से जूझ रहा है। ऐसा भी हो सकता है कि यह स्थिति शुरुआत में परेशान न करे, लेकिन अगर लंबे समय तक यह स्थिती बनी रहती है तो इलाज में देरी न करें और समय रहते डॉक्टर से इसकी जांच करवाएं।
हाई कोलेस्ट्रॉल के अन्य लक्षणों में से एक पैरों की त्वचा के रंग और बनावट में बदलाव आना भी शामिल है। इस दौरान ब्लड वेसेल्स में प्लाक जमा होने लगते हैं, जिसके कारण ब्लड सर्कुलेशन प्रभावित होता है।
ऐसे में जब शरीर के कुछ हिस्सों में कम मात्रा में खून का दौड़ा होता है, तो वहां कि त्वचा की रंगत और बनावट के अलावा शरीर के उस हिस्से का फंक्शन भी प्रभावित होता है।
इसलिए, अगर आपको अपने पैरों की त्वचा के रंग और बनावट में बिना कारण कोई बदलाव नजर आए, तो हाई कोलेस्ट्रॉल इसका कारण हो सकता है।
डिस्क्लेमर: उक्त लेख सिर्फ सामान्य सूचना के उद्देश्य के लिए हैं और इन्हें पेशेवर चिकित्सा सलाह के रूप में नहीं लिया जाना चाहिए। कोई भी सवाल या परेशानी हो तो हमेशा अपने डॉक्टर से सलाह लें।
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