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उत्तराखंड

कैंसर को भी चुटकी में ठीक कर सकता है ‘ब्रह्मकमल’ जानिए इस फूल की खासियत

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ब्रह्मकमल का नाम वैसे तो इस ऋष्टि के रचयिता ब्रह्मा जी के नाम पर पड़ा है। लेकिन इस फूल के कई पौराणिक पहलू भी है। ब्रह्मकमल भगवान शिव का पसंदीदा फूल है। यह उत्तराखंड का राजकीय पुष्प भी है। पर्वती क्षेत्रों के लोगों का मानना है कि यह फूल लोगों के इलाज के लिए बेहद कारगर औषधी है। इस फूल को सूखाकर इसे कैंसर जैसी बीमारी से लड़ने की दवाओं में प्रयोग किया जाता है।

 

यह फूल अधिकतर चीन व कैलाश घाटी के पास देखने को मिलता है। भारत में लोग इसे हिमाचल में दूधाफूल के नाम से जानते हैं, तो उत्तराखंड में ब्रह्मकमल के नाम से इस फूल को पुकारा जाता है।

उत्तराखंड में यह पुष्प फूलों की घाटी, बुग्याल, तुंगनाथ, चोपटा, रूपकुंड, बदरीनाथ और केदारनाथ जैसे क्षेत्रों में पाया जाता है। वनस्पति शास्त्र के मुताबिक ब्रह्मकमल की 30 से अधिक प्रजातियां इस पृथ्वी पर पाई जाती हैं। यह फूल जुलाई से अक्टूबर के बीच खिलता है और इसी समय केदारनाथ, हेमकुंड साहिब और बद्रीनाथ के कपाट भी भक्तों के लिए खोले जाते हैं। यह फूल आधी रात में खिलता है और सुबह होते ही इसका मुख्यभाग बंद हो जाता है।

उत्तराखंड

शीतकाल की शुरू होते ही केदारनाथ धाम के कपाट बंद

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उत्तराखंड। केदारनाथ धाम में भाई दूज के अवसर पर श्रद्धालुओं के लिए शीतकाल का आगमन हो चुका है। बाबा केदार के कपाट रविवार सुबह 8.30 बजे विधि-विधान के साथ बंद कर दिए गए। इसके साथ ही इस साल चार धाम यात्रा ठहर जाएगी। ठंड के इस मौसम में श्रद्धालु अब अगले वर्ष की प्रतीक्षा करेंगे, जब कपाट फिर से खोलेंगे। मंदिर के पट बंद होने के बाद बाबा की डोली शीतकालीन गद्दीस्थल की ओर रवाना हो गई है।इसके तहत बाबा केदार के ज्योतिर्लिंग को समाधिरूप देकर शीतकाल के लिए कपाट बंद किए गए। कपाट बंद होते ही बाबा केदार की चल उत्सव विग्रह डोली ने अपने शीतकालीन गद्दीस्थल, ओंकारेश्वर मंदिर, उखीमठ के लिए प्रस्थान किया।

बता दें कि हर साल शीतकाल की शुरू होते ही केदारनाथ धाम के कपाट बंद कर दिया जाते हैं. इसके बाद बाबा केदारनाथ की डोली शीतकालीन गद्दीस्थल ओंकारेश्वर मंदिर ऊखीमठ के लिए रवाना होती है. अगले 6 महीने तक बाबा केदार की पूजा-अर्चना शीतकालीन गद्दीस्थल ओंकारेश्वर मंदिर ऊखीमठ में ही होती है.

उत्तरकाशी ज़िले में स्थिति उत्तराखंड के चार धामों में से एक गंगोत्री में मां गंगा की पूजा होती है। यहीं से आगे गोमुख है, जहां से गंगा का उदगम है। सबसे पहले गंगोत्री के कपाट बंद हुए हैं। अब आज केदारनाथ के साथ-साथ यमुनोत्री के कपाट बंद होंगे। उसके बाद आखिर में बदरीनाथ धाम के कपाट बंद किए जाएंगे।

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