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बिजनेस

वैश्विक तेल कीमतों में 75 फीसदी गिरावट का लाभ किसे?

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वैश्विक तेल कीमतों, 75 फीसदी गिरावट का लाभ, यूरोजोन से तेल की कम मांग, अमेरिका में कच्चे तेल का रिकार्ड उत्पादन, भारत के लिए कच्चे तेल की कीमत काफी कम

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अभिषेक वाघमारे  

अमेरिका में कच्चे तेल का रिकार्ड उत्पादन, यूरोजोन से तेल की कम मांग और चीन, ब्राजील, ईरान जैसी उभरती अर्थव्यवस्थाओं के अंतर्राष्ट्रीय बाजार में प्रवेश के कारण भारत के लिए कच्चे तेल की कीमत काफी कम हो गई है। कच्चे तेल की कीमत जुलाई 2014 में 106 डॉलर प्रति बैरल थी। जनवरी 2016 में यानी 15 महीनों में इसमें 75 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई है। लेकिन तेल कीमतों में इस गिरावट का असर स्थानीय स्तर पर दिखाई नहीं दे रहा है, आखिर क्यों? दअसल, वैश्विक कच्चे तेल की कीमतों के 11 वर्षो के निचले स्तर पर पहुंचने के साथ ही केंद्र और राज्य सरकारें उत्पाद कर और मूल्यवर्धित कर लगातार बढ़ाती रहीं, अपनी आमदनी बढ़ाती रहीं और खुदरा उपभोक्ताओं के लिए ईंधन कीमतें ऊंचाई पर बनी रहीं। चूंकि भारत अपनी ईंधन जरूरतों का 80 प्रतिशत से अधिक हिस्सा आयात करता है, लिहाजा वैश्विक तेल कीमतों में गिरावट का अर्थ यह होता है कि पेट्रोल और डीजल की खुदरा कीमतों में काफी कमी आनी चाहिए। लेकिन भारतीय उपभोक्ता पेट्रोल और डीजल के लिए फिलहाल वैश्विक दर के लगभग दोगुने का भुगतान कर रहे हैं। उपभोक्ताओं से कई सारे कर, तेल कंपनियों के मुनाफे और अन्य कमीशन वसूले जा रहे हैं।

इंडियास्पेंड के विश्लेषण के अनुसार, असम, उत्तर प्रदेश और गुजरात में पेट्रोल और डीजल की खुदरा कीमतों में मौजूदा वित्त वर्ष (2015-16) के दौरान 10 प्रतिशत से कम की गिरावट देखी गई। उदाहरण के तौर पर जब वैश्विक तेल मूल्य इस अवधि में आधा घट गया, उसी अवधि में उत्तर प्रदेश में पेट्रोल की कीमत दो रुपये प्रति लीटर बढ़ गई। भारत में तेल कीमतें ऊंची इसलिए बनी हुई हैं, क्योंकि तेल विपणन कंपनियां, जैसे कि इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन लिमिटेड, हिंदुस्तान पेट्रोलियम कॉरपोरेशन लिमिटेड और रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड अपना मुनाफा जोड़ती हैं, केंद्र सरकार उत्पाद शुल्क जोड़ती है, राज्य सरकारें अपने-अपने मूल्यवर्धित कर जोड़ती हैं, और पेट्रोल पंप वाले अपने कमीशन जोड़ते हैं। यानी इन सब को जोड़ने के बाद जो दर बनती है, तेल के लिए वह कीमत हमें चुकानी पड़ती है।

पेट्रोल और डीजल पर उत्पाद शुल्क पिछले तीन महीनों के दौरान पांच गुना बढ़ा है। पेट्रोल पर 34 प्रतिशत और डीजल पर 140 प्रतिशत उत्पाद शुल्क बढ़ा है। तेल विपणन कंपनियां जिस दर पर डीलरों (पेट्रोल पंप) को पेट्रोल बेचती हैं, वह दो वर्षो में घटकर आधी हो गई है। लेकिन इसी अवधि के दौरान पेट्रोल की खुदरा कीमतों में मात्र 15 प्रतिशत की कमी हुई है। राज्यों की तरफ से लगाया जाने वाला मूल्यवर्धित कर में तो कोई खास बदलाव नहीं हुआ है, लेकिन केंद्र द्वारा लगाया जाने वाला उत्पाद कर 2014 और 2016 के बीच बढ़कर दोगुना हो गया है। यानी आप डीजल और पेट्रोल की कीमतों से ज्यादा उस पर कर का भुगतान करते हैं। डीजल पर केंद्रीय कर पेट्रोल से बहुत ज्यादा है। अप्रैल 2014 में प्रति लीटर डीजल पर केंद्रीय कर उसकी कीमत से चार गुना बढ़ गया। यह 4.52 रुपये प्रति लीटर से बढ़कर फरवरी 2016 में 17.33 रुपये प्रति लीटर हो गया।

एक लीटर पेट्रोल के लिए जो कीमत हम चुकाते हैं, उसमें से 57 प्रतिशत कर के रूप में सरकार के खाते में जाता है। एक लीटर डीजल की कीमत 44 रुपये है, और इसमें 55 प्रतिशत कर का हिस्सा शामिल है। यदि इन दो वर्षो के दौरान उत्पाद शुल्क न बढ़ा होता, तो डीजल की कीमत आज 32 रुपये प्रति लीटर होती। पत्रकार और अर्थशास्त्री स्वामीनाथन अंकलेसरिया अय्यर ने जैसा कि अपने ब्लॉग में लिखा है, वस्तुओं के परिवहन लागत पर तेल कीमतों का सीधा असर पड़ता है और इसके कारण उपभोक्ता महंगाई बढ़ी है। तुर्की और श्रीलंका में महंगाई पर हुए शोध में महंगाई पर ईंधन कीमतों के प्रभाव को रेखांकित किया गया है। बिजनेस स्टैंडर्ड की एक रपट के अनुसार, ईंधन की कम कीमतों से महंगाई को काबू में रखा जा सकता है।

नेशनल

ऑनलाइन फूड ऑर्डरिंग ऐप को मनमानी करने पर 103 के बदले देने पड़ेंगे 35,453 रु, जानें क्या है पूरा मामला

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हैदराबाद। ऑनलाइन फूड ऑर्डरिंग ऐप स्विगी को ग्राहक के साथ मनमानी करना भारी पड़ गया। कंपनी की इस मनमानी पर एक कोर्ट ने स्विगी पर तगड़ा जुर्माना ठोक दिया। हैदराबाद के निवासी एम्माडी सुरेश बाबू की शिकायत पर उपभोक्ता आयोग ने बड़ा फैसला सुनाया है। बाबू ने आरोप लगाया था कि स्विगी ने उनके स्विगी वन मेंबरशिप के लाभों का उल्लंघन किया और डिलीवरी Food Delivery की दूरी को जानबूझकर बढ़ाकर उनसे अतिरिक्त शुल्क वसूला

क्या है पूरा मामला ?

सुरेश बाबू ने 1 नवंबर, 2023 को स्विगी से खाना ऑर्डर किया था। सुरेश के लोकेशन और रेस्टॉरेंट की दूरी 9.7 किमी थी, जिसे स्विगी ने बढ़ाकर 14 किमी कर दिया था। दूरी में बढ़ोतरी की वजह से सुरेश को स्विगी का मेंबरशिप होने के बावजूद 103 रुपये का डिलीवरी चार्ज देना पड़ा। सुरेश ने आयोग में शिकायत दर्ज कराते हुए कहा कि स्विगी वन मेंबरशिप के तहत कंपनी 10 किमी तक की रेंज में फ्री डिलीवरी करने का वादा किया था।कोर्ट ने बाबू द्वारा दिए गए गूगल मैप के स्क्रीनशॉट्स और बाकी सबूतों की समीक्षा की और पाया कि दूरी में काफी बढ़ोतरी की गई है।

कोर्ट ने स्विगी को अनुचित व्यापार व्यवहार का दोषी पाया और कंपनी को आदेश दिया कि वे सुरेश बाबू को 9 प्रतिशत ब्याज के साथ 350.48 रुपये के खाने का रिफंड, डिलीवरी के 103 रुपये, मानसिक परेशानी और असुविधा के लिए 5000 रुपये, मुकदमे की लागत के लिए 5000 रुपए समेत कुल 35,453 रुपये का भुगतान करे।

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