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उत्तराखंड

कूड़े में तब्दील हो रही हैं महंगी मशीनें

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कूड़े में तब्दील हो रही हैं महंगी सीटी स्कैन मशीनें, भ्रष्ट अधिकारियों की पौ बारह, मोटा कमीशन खाकर मंगाई गयी थी मशीनें

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कूड़े में तब्दील हो रही हैं महंगी सीटी स्कैन मशीनें, भ्रष्ट अधिकारियों की पौ बारह, मोटा कमीशन खाकर मंगाई गयी थी मशीनें

भ्रष्ट अधिकारियों की पौ बारह

देहरादून। जनता के पैसे का किस तरह से दुरुपयोग किया जाता है, इसकी एक ताजा मिसाल उत्तराखंड स्वास्थ्य विभाग में देखने को मिली। उत्तराखंड स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों द्वारा तीन सीटी स्कैन मशीनें खरीदी गयीं। लेकिन ये मशीनें लोगों की सुविधा के लिए नहीं बल्कि मोटे कमीशन के लालच में खरीदी थीं। यही कारण है कि ना तो मशीन खरीदने से पहले और ना ही खरीदने के बाद इनको चलाने को लेकर कोई फैसला लिया गया। कमीशन वसूलने के बाद अधिकारियों ने इन मशीनों की तरफ देखने की जहमत तक नहीं उठाई। यही कारण है कि तीन साल बीतने के बाद भी इन मशीनों से काम शुरू नहीं किया जा सका।

मोटा कमीशन खाकर मंगाई गयी थी मशीनें

करीब तीन वर्ष पहले स्वास्थ्य विभाग ने हल्द्वानी, पौड़ी और रुड़की के लिए सीटी स्कैन मशीनें खरीदी थी। करीब 12 करोड़ रुपये की लागत से खरीदी गई इन मशीनों का तीन साल में एक बार भी उपयोग नहीं हो सका है। इसके बाद जो तस्वीर उभरकर सामने आई है, उसमें विभागीय अधिकारियों के भ्रष्टाचार का खुलासा होता है। अधिकारियों ने तीनों मशीनों को खरीदने से पहले इन्हें चलाने के लिए रेडियोलॉजिस्ट तैनात करने जैसी संभावनाओं पर विचार तक नहीं किया। हद तो तब हो गयी जब मशीनें खरीदने के तीन साल बाद भी कभी इनकी तैनाती को लेकर गंभीरता से काम नहीं हुआ। सूत्रों के अनुसार इन मशीनों की खरीद के पीछे मोटे कमीशन के खेल को मुख्य कारण माना जा रहा है। करोड़ों रुपये की खरीद में अधिकारियों ने जमकर बंदरबांट की। इस मामले में कई अधिकारियों की भूमिका सवालों के घेरे में हैं।

पिछले कुछ वर्षों से स्वास्थ्य विभाग कोटद्वार पर कुछ ज्यादा ही मेहरबान है। हालांकि यह मेहरबानी लोगों को बेहतर चिकित्सा सुविधा उपलब्ध कराने के बजाय केवल मशीनों की खरीदारी तक सीमित रही। इसके पीछे कोटद्वार को तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री का विधानसभा क्षेत्र होना कारण माना जा रहा है। पिछले कुछ समय में कोटद्वार के लिए एक एमआरआई मशीन और एक सीटी स्कैन मशीन खरीदने की प्रक्रिया चल रही है। स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों की दिलचस्पी पुरानी मशीनों को ठीक कराने में नहीं होती है, बल्कि नई मशीन खरीदने में ये ज्यादा दिलचस्पी होती है। आलम यह है कि नई मशीन खरीद की फाइल जहां सरपट दौड़ रही है वहीं खराब मशीन की मरम्मत की फाइल धूल फांक रही है। यही कारण है कि करीब छह माह बीतने के बावजूद मशीन की मरम्मत के लिए करीब 22 लाख रुपए का वार्षिक करार तक नहीं हो पाया है।

अल्मोड़ा के पंडित गोवर्धन तिवारी बेस चिकित्सालय में कुमाऊं के पहाड़ी जिलों की एकमात्र सीटी स्कैन मशीन लगी हुई है। अस्पताल के प्रमुख अधीक्षक पिछले कई माह से महानिदेशालय को पत्र भेजकर सीएएमसी करने का अनुरोध कर रहे हैं ताकि मशीन खराब होने की स्थिति में उसे ठीक करवाया जा सके। इसके लिए अस्पताल के प्रमुख अधीक्षक पिछले वर्ष जून से लगातार पत्राचार कर रहे हैं। उन्होंने पिछले वर्ष दो जून, एक अगस्त, नौ दिसंबर और इस वर्ष तीन मार्च को पत्र भेजकर सीएएमसी करने का अनुरोध किया लेकिन निदेशालय अधिकारियों के कान पर जूं तक नहीं रेंगी।

अब करार ना होने के कारण मशीन की मरम्मत नहीं हो पा रही है, जिसके कारण मरीजों को टेस्ट के लिए हल्द्वानी के चक्कर काटने पड़ रहे हैं। बुधवार को मशीन ठीक होने का दावा कर रहे संयुक्त निदेशक डा. मनु जैन ने बृहस्पतिवार को इस मामले में कुछ भी कहने से इंकार कर दिया। वहीं इस मामले में स्वास्थ्य महानिदेशक का पक्ष जानने के लिए उन्हें कई बार फोन किया गया, लेकिन उनकी ओर से फोन रिसीव नहीं किया गया। स्वास्थ्य विभाग अपनी मशीनों की मरम्मत के लिए वार्षिक करार करता है। इसे ही कंप्रिहेंसिव एनुअल मेंटेनेंस कांट्रेक्ट (सीएएमसी) कहा जाता है। इसके तहत करार में चुनी गई कंपनी सालभर तक सभी मशीनों की मरम्मत करती है। करार के बाद कंपनी को मशीनों की मरम्मत के लिए अतिरिक्त खर्च नहीं करना पड़ता है।

 

 

उत्तराखंड

शीतकाल की शुरू होते ही केदारनाथ धाम के कपाट बंद

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उत्तराखंड। केदारनाथ धाम में भाई दूज के अवसर पर श्रद्धालुओं के लिए शीतकाल का आगमन हो चुका है। बाबा केदार के कपाट रविवार सुबह 8.30 बजे विधि-विधान के साथ बंद कर दिए गए। इसके साथ ही इस साल चार धाम यात्रा ठहर जाएगी। ठंड के इस मौसम में श्रद्धालु अब अगले वर्ष की प्रतीक्षा करेंगे, जब कपाट फिर से खोलेंगे। मंदिर के पट बंद होने के बाद बाबा की डोली शीतकालीन गद्दीस्थल की ओर रवाना हो गई है।इसके तहत बाबा केदार के ज्योतिर्लिंग को समाधिरूप देकर शीतकाल के लिए कपाट बंद किए गए। कपाट बंद होते ही बाबा केदार की चल उत्सव विग्रह डोली ने अपने शीतकालीन गद्दीस्थल, ओंकारेश्वर मंदिर, उखीमठ के लिए प्रस्थान किया।

बता दें कि हर साल शीतकाल की शुरू होते ही केदारनाथ धाम के कपाट बंद कर दिया जाते हैं. इसके बाद बाबा केदारनाथ की डोली शीतकालीन गद्दीस्थल ओंकारेश्वर मंदिर ऊखीमठ के लिए रवाना होती है. अगले 6 महीने तक बाबा केदार की पूजा-अर्चना शीतकालीन गद्दीस्थल ओंकारेश्वर मंदिर ऊखीमठ में ही होती है.

उत्तरकाशी ज़िले में स्थिति उत्तराखंड के चार धामों में से एक गंगोत्री में मां गंगा की पूजा होती है। यहीं से आगे गोमुख है, जहां से गंगा का उदगम है। सबसे पहले गंगोत्री के कपाट बंद हुए हैं। अब आज केदारनाथ के साथ-साथ यमुनोत्री के कपाट बंद होंगे। उसके बाद आखिर में बदरीनाथ धाम के कपाट बंद किए जाएंगे।

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