उत्तराखंड
गाड़ियों का धुआं नही, जेनरेटर फैला रहे दून में ज़हरः अवधेश कौशल
जल विद्युत परियोजनाओं द्वारा ऊर्जा उत्पादन ही सर्वथा उचित कदम है
देहरादून। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार देहरादून दुनिया का 31वां सर्वाधिक प्रदूषित शहर है। यह सुन्दर घाटी जहाँ बासमती के लहलहाते खेत व लीची के बगीचे थे, उसमें प्रदूषण का इतना बढ़ा हुआ स्तर यहाँ के नागरिकों के लिए अत्यंत गंभीर चिन्ता का विषय है। ऐसा माना जाता है कि वाहनों का धुँआ व बेतरतीबी से बन रहे मकानों आदि की धूल इस प्रदूषण के लिए जिम्मेदार हैं, परन्तु वायु प्रदूषण का मुख्य कारण पूरे शहर में मकानों, दुकानों व्यापारिक स्थानों आदि में चल रहे जेनरेटर हैं। शहर में बिजली की भारी कमी के कारण ये जेनरेटर भारी संख्या में उपयोग में लाए जा रहे हैं और इसका जहरीला धुँआ वातावरण को भारी नुकसान पहुँचा रहा है।
रूलक के अध्यक्ष, पदमश्री अवधेश कौशल का कहना है कि ‘‘ऊर्जा प्रदेश’’ के नाम से जाना जाने वाला उत्तराखण्ड बिजली की भारी कमी से जूझ रहा है, क्योंकि जल विद्युत परियोजनाओं पर अभी भी सरकार अपनी प्रतिबद्धता नहीं दिखा रही है। 80 प्रतिशत से अधिक पूरी हो चुकी केन्द्र सरकार की लोहारी नागपाला (600 मेगावाट) और राज्य सरकार की भैरों घाटी (381 मेगावाट ) और पालामनेरी (480 मेगावाट) को तुरन्त शुरू करना चाहिए, पर्यावरण की सुरक्षा की आड़ में पर्यावरण को और अधिक क्षति पहुँचाई जा रही है।
उन्होंने कहा कि राज्य सरकार को तुरन्त ही केन्द्र सरकार से अनुरोध करना चाहिए की उत्तरकाशी में जो इको सेन्सटिव जोन बनाया है उसे तुरन्त निरस्त करना चाहिए। इससे प्रदेश में होने वाला विकास कार्य बाधित हो रहा है। बंद पड़ी जल विद्युत परियोजनाओं को तुरन्त शुरू करना चाहिए। टिहरी और अन्य जल विद्युत परियोजनाओं के बांधो की ऊँचाई बढ़ा देनी चाहिए, इससे उनकी जल संग्रहण की क्षमता में वृद्धि होगी, जिससे जल आपूर्ति की समस्या सुलझेगी, भूजल के स्तर में सुधार आएगा एवं बाढ़ प्रबंधन में सहायक होगा, और बाँध के आस-पास का क्षेत्र हरा-भरा होगा और जैव विविधता में वृद्धि होगी। इसका उदाहरण केरल का मुला-पेरियार बाँध है जिसके आस-पास का क्षेत्र काफी हरा-भरा हो गया।
कौशल ने आगे कहा कि जल विद्युत परियोजनाएँ सभ्यता की रीढ़ की हडड्ी होती है क्योंकि वे सिंचाई, जल आपूर्ति, उद्योगों एवं ऊर्जा उत्पादन के लिए जल उपलब्ध कराती हैं, बाढ़ प्रबंधन में सहायक होती है, मनोरंजक, मत्स्य उत्पादन आदि में सहायक होती है। सबसे महत्वपूर्ण बात वे लोगों को रोज़गार उपलब्ध कराती है। सबसे दुखद स्थिति तब उत्पन्न होगी जब राज्य को अपने ग्रामीण एवं शहरी आपूर्ति के लिए बिजली पड़ोसी राज्यों से खरीदनी पड़ेगी और राज्य के खजाने पर अनावश्यक बोझ बढ़ेगा। इसीलिए बंद पड़ी जल विद्युत परियोजनाओं को तत्काल शुरू किया जाना अत्यन्त आवश्यक है। केन्द्र सरकार देहरादून में परमाणु ऊर्जा का संयंत्र लगवाने पर भी विचार कर रही है, यह एक गलत निर्णय होगा क्योंकि देहरादून भूगर्भ शास्त्रियों द्वारा बताए गए भूकंम्प प्रभावित जोन में आता है। ऐसी स्थिति में जरा सी भी लापरवाही मानव जीवन, पर्यावरण आदि के लिए बहुत खतरनाक साबित हो सकती है। उत्तराखण्ड में प्राकृतिक आपदांए भी आती हैं जिससे खतरा कई गुना बढ़ जाता है।
उन्होंने यह भी सपष्ट किया कि यदि इन सभी मुद्दों पर गंभीरता से विचार ना किया गया तो वो दिन दूर नहीं जब देहरादून 10 सर्वाधिक प्रदूषित शहरों में गिना जाएगा। जंगल तेजी से काटे जा रहे हैं और उनका स्थान कंक्रीट के जंगल ले रहे हैं जो बिजली पानी आदि की मांगों को और बढ़ाते हैं। उत्तराखण्ड की अर्थव्यवस्था पर्यटन पर निर्भर करती है, यदि वायु प्रदूषण एवं अन्य पर्यावरण सम्बन्धी समस्याऐं उठती रहीं तो इसका विपरीत प्रभाव राज्य पर पड़ सकता है। हाल ही में राज्य के लगभग सभी जिलों के जंगलों में लगी भीषण आग के कारण पर्यटन विभाग को काफी नुकसान उठाना पड़ा है। सभी जागरूक नागरिकों को सरकार पर दबाव बनाना चाहिए वह तुरन्त एवं प्रभावशाली कदम उठाए और हमारे सुन्दर एवं शान्त राज्य को और अधिक क्षति पहुँचने से बचाए।
उत्तराखंड
शीतकाल की शुरू होते ही केदारनाथ धाम के कपाट बंद
उत्तराखंड। केदारनाथ धाम में भाई दूज के अवसर पर श्रद्धालुओं के लिए शीतकाल का आगमन हो चुका है। बाबा केदार के कपाट रविवार सुबह 8.30 बजे विधि-विधान के साथ बंद कर दिए गए। इसके साथ ही इस साल चार धाम यात्रा ठहर जाएगी। ठंड के इस मौसम में श्रद्धालु अब अगले वर्ष की प्रतीक्षा करेंगे, जब कपाट फिर से खोलेंगे। मंदिर के पट बंद होने के बाद बाबा की डोली शीतकालीन गद्दीस्थल की ओर रवाना हो गई है।इसके तहत बाबा केदार के ज्योतिर्लिंग को समाधिरूप देकर शीतकाल के लिए कपाट बंद किए गए। कपाट बंद होते ही बाबा केदार की चल उत्सव विग्रह डोली ने अपने शीतकालीन गद्दीस्थल, ओंकारेश्वर मंदिर, उखीमठ के लिए प्रस्थान किया।
बता दें कि हर साल शीतकाल की शुरू होते ही केदारनाथ धाम के कपाट बंद कर दिया जाते हैं. इसके बाद बाबा केदारनाथ की डोली शीतकालीन गद्दीस्थल ओंकारेश्वर मंदिर ऊखीमठ के लिए रवाना होती है. अगले 6 महीने तक बाबा केदार की पूजा-अर्चना शीतकालीन गद्दीस्थल ओंकारेश्वर मंदिर ऊखीमठ में ही होती है.
उत्तरकाशी ज़िले में स्थिति उत्तराखंड के चार धामों में से एक गंगोत्री में मां गंगा की पूजा होती है। यहीं से आगे गोमुख है, जहां से गंगा का उदगम है। सबसे पहले गंगोत्री के कपाट बंद हुए हैं। अब आज केदारनाथ के साथ-साथ यमुनोत्री के कपाट बंद होंगे। उसके बाद आखिर में बदरीनाथ धाम के कपाट बंद किए जाएंगे।
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