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अन्तर्राष्ट्रीय

इस गांव में मरने के बाद भी जिंदा रहते हैं लोग, हर 3 साल बाद लौट आते हैं सभी

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नई दिल्ली। अपनों के जाने का दुख हर किसी को होता है। किसी भी करीबी या रिश्तेदार के मरने पर लोगों पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ता है लेकिन आज हम आपको जिस गांव के बारे में बताने जा रहे हैं वहां किसी के मरने पर लोग दुखी नहीं बल्कि खुशियां मनाते हैं।

जी हां, आपने बिल्कुल सही सुना इंडोनेशिया में एक ऐसा गांव भी है जहां का समुदाय लोगों की मौत पर जश्न मनाता है। दक्षिण सुलेवासी प्रांत का टोराजा समुदाय अपने परिजनों की मौत के बाद उनसे बिल्कुल जिंदा इंसानों के जैसा व्यवहार किया जाता है।

उनके साथ फोटो सेशन भी किया जाता है। शवों के लिए खासतौर पर समारोह का आयोजन किया जाता है। इस समुदाय के लोगों का मानना है कि हर 3 साल मुर्दे घर लौटकर आते हैं।

यह के लोग मृतक को मार हुआ नहीं बल्कि बीमार मानते है जिसे मकुला कहा जाता है। लोग बकायदा इसके लिए खास समारोह का आयोजन भी करते हैं। जहां ये लोग उनके साथ नाचते-गाते इस धार्मिक कार्यक्रम में शामिल होते हैं।

इस गांव की प्रथा काफी विचित्र है। यहां के लोगों का मानना है कि इंसान कभी मरता नहीं है। इसीलिए ये लोग मरने पर गम के बजाए उत्सव मनाते हैं। तोरजा गांव के लोग अपने परिजनों की लाश सुरक्षित रखने के लिए किसी खास तरह के केमिकल का उपयोग करते है।

भले ही आपको ये परंपरा डरावनी लगे लेकिन अब ये परंपरा टोराजा समुदाय के लोगों की जिंदगी का हिस्सा है। जिसे वो लोग बड़ा प्यार से निभाते चले आ रहे हैं।

अन्तर्राष्ट्रीय

पीएम मोदी को मिलेगा ‘विश्व शांति पुरस्कार’

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नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को विश्व शांति पुरस्कार देने की घोषणा की गई है। यह पुरस्कार उन्हें अमेरिका में प्रदान किया जाएगा। इंडियन अमेरिकन माइनॉरटीज एसोसिएशन (एआइएएम) ने मैरीलैंड के स्लिगो सेवंथ डे एडवेंटिस्ट चर्च ने यह ऐलान किया है। यह एक गैर सरकारी संगठन है। यह कदम उठाने का मकसद अमेरिका में भारतीय अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों के कल्याण को प्रोत्साहित करने के लिए उन्हें एकजुट करना है। पीएम मोदी को यह पुरस्कार विश्व शांति के लिए उनके द्वारा किए जा रहे प्रयासों और समाज को एकजुट करने के लिए दिया जाएगा।

इसी कार्यक्रम के दौरान अल्पसंख्यकों का उत्थान करने के लिए वाशिंगटन में पीएम मोदी को मार्टिन लूथर किंग जूनियर ग्लोबल पीस अवार्ड से सम्मानित किया जाएगा। इस पुरस्कार को वाशिंगटन एडवेंटिस्ट यूनिवर्सिटी और एआइएएम द्वारा संयुक्त रूप से दिया जाएगा। जिसका मकसद अस्पसंख्यकों के कल्याण के साथ उनका समावेशी विकास करना भी है।

जाने माने परोपकारी जसदीप सिंह एआइएम के संस्थापक और चेयरमैन नियुक्त किए गए हैं। इसमें अल्पसंख्यक समुदाय को प्रोत्साहित करने के लिए 7 सदस्यीय बोर्ड डायरेक्टर भी हैं। इसमें बलजिंदर सिंह, डॉ. सुखपाल धनोआ (सिख), पवन बेजवाडा और एलिशा पुलिवार्ती (ईसाई), दीपक ठक्कर (हिंदू), जुनेद काजी (मुस्लिम) और भारतीय जुलाहे निस्सिम रिव्बेन शाल है।

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