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लोकसभा चुनावः ‘M’ पर भारी पड़ता जा रहा है ‘Y’ फैक्टर, दिलचस्प हैं आंकड़े

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रिपोर्ट: मोहम्मद कामरान

नई दिल्ली। राजनीति है तो तिकड़म होगी, तिकड़म करनी है तो तीन तेरह का गुणा भाग भी करना होगा और बात हिंदुस्तान की चुनावी सरगर्मियों की होगी तो तेरह नंबर का फैक्टर ही चुनाव पर भारी होगा। अंग्रेज़ी वर्णमाला के 13 वें पायदान पर आता है M और हिंदुस्तान की राजनीति में पहले पायदान पर काम करता है ये M फैक्टर। चुनाव में अगर चर्चा होती है तो इसी M की, न विकास की, न गुजरात मॉडल की, न राफेल की, न नोटबन्दी कि, न 15 लाख की, न रोज़गार की, 13 अंक का ऐसा जादू है जो चुनाव आते ही सियासतदाताओं के सर चढ़ कर बोलता है, वैसे तो 13 नंबर का अर्थ है कर्म, लेकिन पांच साल के किये गए कर्मों को छुपाने के काम भी आता है ये M फैक्टर, एक बार चुनाव की सुगबुगाहट हुई नही की सब कुछ M फैक्टर पर ही निर्भर करता है, M फैक्टर अंग्रेजी वर्णमाला का एक वर्ण ही नहीं हिंदुस्तान की चुनावी सियासत में पूरी वर्णमाला है।

प्रधानमंत्री की दावेदारी करने वाले बड़े बड़े सियासी अखाड़ों के कद्दावर नेताओं के नाम भी इसी तेरहवीं पायदान के वर्ण से शुरू होते हैं। मोदी से लेकर मनमोहन, ममता से लेकर मायावती और मुलायम सिंह यादव तक सब के नाम M से शुरू होते हैं। ये पहला मौका होगा जब इस M फैक्टर पर Y फैक्टर भारी पड़ रहा है, एंग्री यंग मैन की भूमिका में गोरखपुर में अपने बयानों और अपनी तेज़ तर्रार कार्यशैली से युवाओं के बीच योगी जी की लोकप्रियता का ग्राफ तेज़ी से बढ़ा और पूरे प्रदेश में योगी जी को हिंदुत्व का असली चेहरा माना जाने लगा है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने प्रदेश की सत्ता संभाली तो शायद इसका मुख्य कारण भी यही M फैक्टर था और आज देश की अधिकांश जनता की निगाहें अगर उन्हें मोदी के समतुल्य देख पाती हैं तो इसका कारण भी कहीं ना कहीं यहीं M फैक्टर है। मोदी अगर विकास की बात करते है, गुजरात मॉडल की बात करते है, तो योगी आदित्यनाथ हिंदुत्व की बात करते है, मंदिर निर्माण की बात करते है, गौ रक्षा की बात करते है।

गोरखनाथ मठ के महंत और उग्र हिंदू संगठन हिंदू युवा वाहिनी के संस्थापक फायर ब्रांड योगी आदित्यनाथ जिस दिन प्रदेश के मुख्यमंत्री बने थे उसी दिन से हिंदुस्तान ही नही सम्पूर्ण विश्व मे हिंदुत्व के एक ब्रांड आइकॉन के रूप में उनकी प्रसिद्धि हो गयी थी जिसके चलते आज प्रदेश का युवा, Y (युवा) फैक्टर जिसकी चुनाव में अहम भूमिका होती है योगी जी को दिल मे बसा चुका है और इस बार के लोकसभा चुनाव में योगी जी, मोदी से कही आगे निकल गए है, देश की सेना को मोदी की सेना बता कर युवाओं में एक नया जोश भर दिया है, और पूरे चुनावी माहौल को हिंदुत्व से भर दिया है, विकास की बाते पुरानी हो गयी, गुजरात मॉडल का अब कोई मतलब नही है, कानून व्यवास्था की कोई बात नही करता, चूल्हा उज्ज्वला से जले या उपला से, रोटी मिले या न मिले, बेटियां बढ़े या बचे इसकी कोई फिक्र नही अब तो सबकी आंखों में योगीजी बसे है और दिल मे उम्मीद ही नहीं पूर्ण विश्वास है।

योगीजी है तो मंदिर निर्माण भी संभव है, बस एक मौका और दो, पांच साल और दो, योगी जी होंगे तो देश को हिंदू राष्ट्र बनाने का स्वप्न भी पूरा होगा, जिसके लिए M फैक्टर बहुत कारगर और सिद्ध यंत्र है, इसी M फैक्टर के मंत्र को जपने से हिन्दू समाज को एकजुटता का पैगाम देना है, ये बताना पड़ेगा कि धर्म पर खतरा है, M एकजुट है, चुनाव में दूसरी पार्टी का वोट बैंक बता कर हिंदुओं को एकत्रित करने की राजनीति को कारगर बनाना है जिस तरह मोदी ने कब्रिस्तान-शमशान का मंत्र देकर पांच साल पहले जनता को पटाया था वही काम आज योगी बखूबी अंजाम दे रहे हैं, अपने हर भाषण में हिंदुत्व को जगा रहे है और M फैक्टर को ज़रूर याद कर रहे हैं। M फैक्टर को लेकर एक बात आम जनमानस में फैलाई जा रही कि उनका एकमुश्त वोटबैंक है। यूपी में उनकी आबादी 17 फीसदी है और वे जिधर चले जाएंगे वो जीत जाएगा जबकि इसके विपरीत मुसलमान भी दूसरे जातिगत समूह की तरह ही होते है, ठाकुर हो या ब्राह्मण, दलित हो या पिछड़ा वर्ग, हर वर्ग का व्यक्ति, हर क्षेत्र का व्यक्ति अपने अपने हिसाब से वोट करता है।

किसी भी एक राजनीतिक दल को कोई भी जाति या समूह एकमुश्त वोट नही करता, 2014 के चुनाव के सर्वे में ये बात सामने आई कि 10 फीसदी मुसलमानों ने बीजेपी को वोट किया था, ऐसे में M फैक्टर की बात करके सिर्फ और सिर्फ जनता का ध्यान मुद्दों से हटा कर हिंदुत्व पर केंद्रित करना है जिसमें एंग्री यंग मैन की भूमिका में योगी आदित्यनाथ जिस तरह से कामयाब हो रहे है उससे लगता है कि इस बार प्रधानमंत्री के पद की दावेदारी में 13 अंकों वाले M नही (मोदी, मनमोहन, ममता, मायावती, मुलायम) बल्कि अंग्रेज़ी वर्णमाला के 25वे पायदान के Y की भूमिका महत्वपूर्ण होगी, वैसे भी 13 अंकों को अशुभ मानने वालों के लिए 25 अंक कूटनीति और जिज्ञासा के स्पर्श के साथ साथ ज्ञान को दर्शाने वाला है और अशुभ को शुभ में बदलना तभी संभव है जब योगी है,, इसलिए योगी है तो संभव है और M फैक्टर चलेगा तभी Y फैक्टर बढ़ेगा।

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ऑनलाइन फूड ऑर्डरिंग ऐप को मनमानी करने पर 103 रुपये के बदले देना पड़ेगा 35,453 रुपये, जानें क्या है पूरा मामला

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हैदराबाद। ऑनलाइन फूड ऑर्डरिंग ऐप स्विगी को ग्राहक के साथ मनमानी करना भारी पड़ गया। कंपनी की इस मनमानी पर एक कोर्ट ने स्विगी पर तगड़ा जुर्माना ठोक दिया। हैदराबाद के निवासी एम्माडी सुरेश बाबू की शिकायत पर उपभोक्ता आयोग ने बड़ा फैसला सुनाया है। बाबू ने आरोप लगाया था कि स्विगी ने उनके स्विगी वन मेंबरशिप के लाभों का उल्लंघन किया और डिलीवरी Food Delivery की दूरी को जानबूझकर बढ़ाकर उनसे अतिरिक्त शुल्क वसूला

क्या है पूरा मामला ?

सुरेश बाबू ने 1 नवंबर, 2023 को स्विगी से खाना ऑर्डर किया था। सुरेश के लोकेशन और रेस्टॉरेंट की दूरी 9.7 किमी थी, जिसे स्विगी ने बढ़ाकर 14 किमी कर दिया था। दूरी में बढ़ोतरी की वजह से सुरेश को स्विगी का मेंबरशिप होने के बावजूद 103 रुपये का डिलीवरी चार्ज देना पड़ा। सुरेश ने आयोग में शिकायत दर्ज कराते हुए कहा कि स्विगी वन मेंबरशिप के तहत कंपनी 10 किमी तक की रेंज में फ्री डिलीवरी करने का वादा किया था।कोर्ट ने बाबू द्वारा दिए गए गूगल मैप के स्क्रीनशॉट्स और बाकी सबूतों की समीक्षा की और पाया कि दूरी में काफी बढ़ोतरी की गई है।

कोर्ट ने स्विगी को अनुचित व्यापार व्यवहार का दोषी पाया और कंपनी को आदेश दिया कि वे सुरेश बाबू को 9 प्रतिशत ब्याज के साथ 350.48 रुपये के खाने का रिफंड, डिलीवरी के 103 रुपये, मानसिक परेशानी और असुविधा के लिए 5000 रुपये, मुकदमे की लागत के लिए 5000 रुपए समेत कुल 35,453 रुपये का भुगतान करे।

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