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आध्यात्म

रामायण के इन रहस्यों से अब भी लोग हैं अनजान, इन 12 बातों को जानकर आपको भी होंगे हैरानी

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रामायण का हिन्दू धर्म में एक विशिष्ठ स्थान हैl मनुष्य जाति के जीवन और उनके कर्मों का विशेष प्रकार से रामायण में विवरण दिया गया हैl इसमें भगवान राम और देवी सीता के जन्म एवं जीवनयात्रा का वर्णन हैl हम में से अधिकांश लोगों को रामायण की कहानी पता है, लेकिन इस महाकाव्य से जुड़े कुछ ऐसे भी रहस्य हैं जिनके बारे में लोगों को जानकारी नहीं हैl आज हम आपके सामने रामायण से जुड़े ऐसे ही 12 रहस्यों को उजागर कर रहे हैं।

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ऐसा माना जाता है कि मूल रामायण की रचना “ऋषि वाल्मीकि” द्वारा की गई थी, लेकिन कई अन्य संतों और वेद पंडितों जैसे- तुलसीदास, संत एकनाथ इत्यादि ने भी इसके अन्य संस्करणों की रचना की हैl हालांकि प्रत्येक संस्करण में अलग-अलग तरीके से कहानी का वर्णन किया गया है, लेकिन मूल रूपरेखा एक ही हैl ऐसा माना जाता है कि रामायण की घटना 4थी और 5वीं शताब्दी ई.पू. की है|

1. रामायण के हर 1000 श्लोक के बाद आने वाले पहले अक्षर से गायत्री मंत्र बनता है

gayatri mantra is beneficial than many mantra its benefits - कई मंत्रों से  ज्यादा शक्तिशाली है गायत्री मंत्र, मिलते हैं कई फायदे

गायत्री मंत्र में 24 अक्षर होते हैं और वाल्मीकि रामायण में 24,000 श्लोक हैंl रामायण के हर 1000 श्लोक के बाद आने वाले पहले अक्षर से गायत्री मंत्र बनता हैl यह मंत्र इस पवित्र महाकाव्य का सार हैl गायत्री मंत्र को सर्वप्रथम ऋग्वेद में उल्लिखित किया गया हैl

2. राम और उनके भाइयों के अलावा राजा दशरथ एक पुत्री के भी पिता थे

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श्रीराम के माता-पिता एवं भाइयों के बारे में तो प्रायः सभी जानते हैं, लेकिन बहुत कम लोगों को यह मालूम है कि राम की एक बहन भी थीं, जिनका नाम “शांता” थाl वे आयु में चारों भाईयों से काफी बड़ी थींl उनकी माता कौशल्या थींl ऐसी मान्यता है कि एक बार अंगदेश के राजा रोमपद और उनकी रानी वर्षिणी अयोध्या आएl उनको कोई संतान नहीं थीl बातचीत के दौरान राजा दशरथ को जब यह बात मालूम हुई तो उन्होंने कहा, मैं अपनी बेटी शांता आपको संतान के रूप में दूंगाl यह सुनकर रोमपद और वर्षिणी बहुत खुश हुएl उन्होंने बहुत स्नेह से उसका पालन-पोषण किया और माता-पिता के सभी कर्तव्य निभाएl

3. राम विष्णु के अवतार हैं लेकिन उनके अन्य भाई किसके अवतार थे

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राम को भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है लेकिन आपको पता है कि उनके अन्य भाई किसके अवतार थे? लक्ष्मण को शेषनाग का अवतार माना जाता है जो क्षीरसागर में भगवान विष्णु का आसन हैl जबकि भरत और शत्रुघ्न को क्रमशः भगवान विष्णु द्वारा हाथों में धारण किए गए सुदर्शन-चक्र और शंख-शैल का अवतार माना जाता हैl

4. सीता स्वयंवर में प्रयुक्त भगवान शिव के धनुष का नाम

शिवधनुष जिसे भगवान श्रीराम ने सीता स्वयंवर में तोड़ा था - धर्मयात्रा  (DharmYaatra)

हम में से अधिकांश लोगों को पता है कि राम का सीता से विवाह एक स्वयंवर के माध्यम से हुआ थाl उस स्वंयवर के लिए भगवान शिव के धनुष का इस्तेमाल किया गया था, जिस पर सभी राजकुमारों को प्रत्यंचा चढ़ाना थाl लेकिन बहुत कम लोगों को पता होगा कि भगवान शिव के उस धनुष का नाम “पिनाक” थाl

5. लक्ष्मण को “गुदाकेश” के नाम से भी जाना जाता है

Lakshman aka Sunil Lahri asks fans a question on Ramayan. Can you answer  it? | Tv News – India TV

ऐसा माना जाता है कि वनवास के 14 वर्षों के दौरान अपने भाई और भाभी की रक्षा करने के उद्देश्य से लक्ष्मण कभी सोते नहीं थेl इसके कारण उन्हें “गुदाकेश” के नाम से भी जाना जाता हैl वनवास की पहली रात को जब राम और सीता सो रहे थे तो निद्रा देवी लक्ष्मण के सामने प्रकट हुईंl उस समय लक्ष्मण ने निद्रा देवी से अनुरोध किया कि उन्हें ऐसा वरदान दें कि वनवास के 14 वर्षों के दौरान उन्हें नींद ना आए और वह अपने प्रिय भाई और भाभी की रक्षा कर सकेl निद्रा देवी इस बात पर प्रसन्न होकर बोली कि अगर कोई तुम्हारे बदले 14 वर्षों तक सोए तो तुम्हें यह वरदान प्राप्त हो सकता हैl इसके बाद लक्ष्मण की सलाह पर निद्रा देवी लक्ष्मण की पत्नी और सीता की बहन “उर्मिला” के पास पहुंचीl उर्मिला ने लक्ष्मण के बदले सोना स्वीकार कर लिया और पूरे 14 वर्षों तक सोती रहीl

6. उस जंगल का नाम जहाँ राम, लक्ष्मण और सीता वनवास के दौरान रूके थे

इस जंगल में भगवान श्रीराम ने वनवास के बिताए थे 10 साल, जानें इतिहास

रामायण महाकाव्य की कहानी के बारे में हम सभी जानते हैं कि राम और सीता, लक्ष्मण के साथ 14 वर्षों के लिए वनवास गए थे और राक्षसों के राजा रावण को हराकर वापस अपने राज्य लौटे थेl हम में से अधिकांश लोगों को पता है कि राम, लक्ष्मण और सीता ने कई साल वन में बिताए थे, लेकिन कुछ ही लोगों को उस वन के नाम की जानकारी होगीl उस वन का नाम दंडकारण्य था जिसमें राम, सीता और लक्ष्मण ने अपना वनवास बिताया थाl यह वन लगभग 35,600 वर्ग मील में फैला हुआ था जिसमें वर्तमान छत्तीसगढ़, उड़ीसा, महाराष्ट्र और आंध्रप्रदेश के कुछ हिस्से शामिल थेl उस समय यह वन सबसे भयंकर राक्षसों का घर माना जाता थाl इसलिए इसका नाम दंडकारण्य था जहाँ “दंड” का अर्थ “सजा देना” और “अरण्य” का अर्थ “वन” है।

7. रावण एक उत्कृष्ट वीणा वादक था

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रावण सभी राक्षसों का राजा थाl बचपन में वह सभी लोगों से डरता था क्योंकि उसके दस सिर थेl भगवान शिव के प्रति उसकी दृढ़ आस्था थीl इस बात की पुख्ता जानकारी है कि रावण एक बहुत बड़ा विद्वान था और उसने वेदों का अध्ययन किया थाl लेकिन क्या आपको पता है कि रावण के ध्वज में प्रतीक के रूप में वीणा होने का कारण क्या था? चूंकि रावण एक उत्कृष्ट वीणा वादक था जिसके कारण उसके ध्वज में प्रतीक के रूप में वीणा अंकित थाl हालांकि रावण इस कला को ज्यादा तवज्जो नहीं देता था लेकिन उसे यह यंत्र बजाना पसन्द थाl

8. इन्द्र के ईर्ष्यालु होने के कारण “कुम्भकर्ण” को सोने का वरदान प्राप्त हुआ था

Kumbhkaran Wives Ramayan Kumbhkaran Wife बाली की बेटी से हुई कुंभकर्ण की  पहली शादी, रावण के लिए बनाती थीं अस्त्र-शस्त्र Know About Ravan Brother  Kumbkaran Wife Vajramala and sons

रामायण में एक दिलचस्प कहानी हमेशा सोने वाले “कुम्भकर्ण” की हैl कुम्भकर्ण, रावण का छोटा भाई था, जिसका शरीर बहुत ही विकराल थाl इसके अलावा वह पेटू भी थाl रामायण में वर्णित है कि कुम्भकर्ण लगातार छह महीनों तक सोता रहता था और फिर सिर्फ एक दिन खाने के लिए उठता था और पुनः छह महीनों तक सोता रहता थाl

लेकिन क्या आपको पता है कि कुम्भकर्ण को सोने की आदत कैसे लगी थीl एक बार एक यज्ञ की समाप्ति पर प्रजापति ब्रह्मा कुन्भकर्ण के सामने प्रकट हुए और उन्होंने कुम्भकर्ण से वरदान मांगने को कहाl इन्द्र को इस बात से डर लगा कि कहीं कुम्भकर्ण वरदान में इन्द्रासन न मांग ले, अतः उन्होंने देवी सरस्वती से अनुरोध किया कि वह कुम्भकर्ण की जिह्वा पर बैठ जाएं जिससे वह “इन्द्रासन” के बदले “निद्रासन” मांग लेl इस प्रकार इन्द्र की ईर्ष्या की वजह से कुम्भकर्ण को सोने का वरदान प्राप्त हुआ थाl

9. नासा के अनुसार “रामायण” की कहानी और “आदम का पुल” एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं

Adam's bridge - Ram Setu, Rameshwaram | एडेम्स ब्रिज - राम सेतु, रामेश्वरम  - Dainik Stories

रामायण की कहानी के अंतिम चरण में वर्णित है कि राम और लक्ष्मण ने वानर सेना की मदद से लंका पर विजय प्राप्त करने के लिए एक पुल का निर्माण किया थाl ऐसा माना जाता है कि यह कहानी लगभग 1,750,000 साल पहले की हैl हाल ही में नासा ने पाक जलडमरूमध्य में श्रीलंका और भारत को जोड़ने वाले एक मानव निर्मित प्राचीन पुल की खोज की है और शोधकर्ताओं और पुरातत्वविदों के अनुसार इस पुल के निर्माण की अवधि रामायण महाकाव्य में वर्णित पुल के निर्माणकाल से मिलती हैl नासा के उपग्रहों द्वारा खोजे गए इस पुल को “आदम का पुल” कहा जाता है और इसकी लम्बाई लगभग 30 किलोमीटर हैl

10. रावण को पता था कि वह राम के हाथों मारा जाएगा

rajasthani folklore says laxman killed ravana - राम ने नहीं उनके इस अनुज ने  मारा था रावण को! | religious blog

रामायण की पूरी कहानी पढ़ने के बाद हमें पता चलता है कि रावण एक क्रूर और सबसे विकराल राक्षस था, जिससे सभी लोग घृणा करते थेl जब रावण के भाइयों ने सीता के अपहरण की वजह से राम के हमले के बारे में सुना तो अपने भाई को आत्मसमर्पण करने की सलाह दी थीl यह सुनकर रावण ने आत्मसमर्पण करने से इनकार कर दिया और राम के हाथों मरकर मोक्ष पाने की इच्छा प्रकट कीl उसके कहा कि “अगर राम और लक्ष्मण दो सामान्य इंसान हैं, तो सीता मेरे पास ही रहेगी क्योंकि मैं आसानी से उन दोनों को परास्त कर दूंगा और यदि वे देवता हैं तो मैं उन दोनों के हाथों मरकर मोक्ष प्राप्त करूँगाल

11. आखिर क्यों राम ने लक्ष्मण को मृत्युदंड दिया

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रामायण में वर्णित है कि श्री राम ने न चाहते हुए भी जान से प्यारे अपने छोटे भाई लक्ष्मण को मृत्युदंड दिया थाl आखिर क्यों भगवान राम ने लक्ष्मण को मृत्युदंड दिया था? यह घटना उस वक़्त की है जब श्री राम लंका विजय के बाद अयोध्या लौट आये थे और अयोध्या के राजा बन गए थेl एक दिन यम देवता कोई महत्तवपूर्ण चर्चा करने के लिए श्री राम के पास आते हैंl चर्चा प्रारम्भ करने से पूर्व उन्होंने भगवान राम से कहा की आप मुझे वचन दें कि जब तक मेरे और आपके बीच वार्तालाप होगी हमारे बीच कोई नहीं आएगा और जो आएगा, उसे आप मृत्युदंड देंगेंl इसके बाद राम, लक्ष्मण को यह कहते हुए द्वारपाल नियुक्त कर देते हैं कि जब तक उनकी और यम की बात हो रही है वो किसी को भी अंदर न आने दे, अन्यथा वह उसे मृत्युदंड दे देंगेl

लक्ष्मण भाई की आज्ञा मानकर द्वारपाल बनकर खड़े हो जाते हैंl लक्ष्मण को द्वारपाल बने कुछ ही समय बीतने के बाद वहां पर ऋषि दुर्वासा का आगमन होता हैl जब दुर्वासा ने लक्ष्मण से अपने आगमन के बारे में राम को जानकारी देने के लिये कहा तो लक्ष्मण ने विनम्रता के साथ मना कर दियाl इस पर दुर्वासा क्रोधित हो गये तथा उन्होने सम्पूर्ण अयोध्या को श्राप देने की बात कहीl लक्ष्मण ने शीघ्र ही यह निश्चय कर लिया कि उनको स्वयं का बलिदान देना होगा ताकि वो नगरवासियों को ऋषि के श्राप से बचा सकें और उन्होने भीतर जाकर ऋषि दुर्वासा के आगमन की सूचना दीl

अब श्री राम दुविधा में पड़ गए क्योंकि उन्हें अपने वचन के अनुसार लक्ष्मण को मृत्युदंड देना थाl इस दुविधा की स्थिति में श्री राम ने अपने गुरू वशिष्ठ का स्मरण किया और कोई रास्ता दिखाने को कहाl गुरूदेव ने कहा कि अपनी किसी प्रिय वस्तु का त्याग, उसकी मृत्यु के समान ही हैl अतः तुम अपने वचन का पालन करने के लिए लक्ष्मण का त्याग कर दोl लेकिन जैसे ही लक्ष्मण ने यह सुना तो उन्होंने राम से कहा की आप भूल कर भी मेरा त्याग नहीं करना, आप से दूर रहने से तो यह अच्छा है की मैं आपके वचन का पालन करते हुए मृत्यु को गले लगा लूँl ऐसा कहकर लक्ष्मण ने जल समाधि ले लीl

12. राम ने सरयू नदी में डूबकी लगाकर पृथ्वीलोक का परित्याग किया था

Untold story: This is how Lord ram took Samadhi - Ramayan में प्रभु श्री राम  ने क्यों ली थी जल समाधि जानिये कारण

ऐसा माना जाता है कि जब सीता ने पृथ्वी के अन्दर समाहित होकर अपने शरीर का परित्याग कर दिया तो उसके बाद राम ने सरयू नदी में जल समाधि लेकर पृथ्वीलोक का परित्याग किया था|

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आज है गोवर्धन पूजा, जानें पूजन विधि व शुभ मुहूर्त

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हिंदू पंचांग के अनुसार, कार्तिक माह में शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि पर गोवर्धन पूजा (Govardhan Puja) की जाती है। यानी दिवाली अगले दिन ये पर्व मनाया जाता है। इस साल गोवर्धन पूजा 2 नवंबर को मनाई जाएगी। पंचांग के अनुसार, कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि 1 नवंबर की शाम 6 बजकर 16 मिनट पर शुरू हो रही है और यह 2 नवंबर की रात 8 बजकर 21 मिनट पर खत्म होगी। इस तरह से गोवर्धन पूजा का सही दिन 2 नवंबर ही माना गया है। गोवर्धन पूजा को अन्नकूट के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन महिलाएं अपने घर के आंगन में गोबर से गोवर्धन पर्वत की आकृति बनाती हैं और उसकी पूजा करती हैं।

गोवर्धन पूजा मुहूर्त

इस दिन पूजा का शुभ मुहूर्त दोपहर 3 बजकर 23 मिनट से शाम 5 बजकर 35 मिनट तक है। इस समय पूजा करना शुभ माना जाता है। मान्यता है कि इस दिन विधिपूर्वक पूजा करने से भगवान का आशीर्वाद मिलता है।

गोवर्धन पूजा विधि

गोवर्धन पूजा के दिन सुबह काल जल्दी उठकर स्नानादि करें। फिर शुभ मुहूर्त में गाय के गोबर से गिरिराज गोवर्धन पर्वत की आकृति बनाएं और साथ ही पशुधन यानी गाय, बछड़े आदि की आकृति भी बनाएं।

इसके बाद धूप-दीप आदि से विधिवत पूजा करें। भगवान कृष्ण को दुग्ध से स्नान कराने के बाद उनका पूजन करें। इसके बाद अन्नकूट का भोग लगाएं।

गोवर्धन पूजा का महत्व

मान्यताओं के अनुसार, भगवान कृष्ण के द्वारा ही सर्वप्रथम गोवर्धन पूजा आरंभ करवाई गई थी और गोवर्धन पर्वत तो अपनी उंगली पर उठाकर इंद्रदेव के क्रोध से ब्रज वासियों और पशु-पक्षियों की रक्षा की थी। गोवर्धन पूजा में गिरिराज के साथ कृष्ण जी के पूजन का भी विधान है। इस दिन अन्नकूट का विशेष महत्व माना जाता है।

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