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एक थप्पड़ में ही तोते की तरह बोलने लगा था पुलवामा हमले का असली गुनहगार, पैंट हो गई थी गीली!

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नई दिल्ली। 14 फरवरी को जम्मू कश्मीर के पुलवामा में हुए आतंकी हमले में 40 जवान शहीद हो गए। हमले के कुछ ही घंटे बाद जैश-ए-मोहम्मद नाम के आतंकी संगठन ने इस हमले की जिम्मेदारी ली।

इस आतंकी संगठन का सरगना मसूद अजहर कभी भारत के शिकंजे में हुआ करता था। जैश-ए मोहम्मद के सरगना मसूद अजहर को 1994 में भारत ने दक्षिण कश्मीर के अनंतनाग से गिरफ्तार किया गया था।

मसूद अजहर के बारे में पुलिस के एक पूर्व अधिकारी ने कई सनसनीखेज खुलासा किए हैं। अधिकारी के मुताबिक अजहर पुर्तगाल के पासपोर्ट पर बांग्लादेश के रास्ते भारत में घुसा था और फिर वह कश्मीर पहुंचा।

उसे दक्षिण कश्मीर के अनंतनाग में फरवरी 1994 में गिरफ्तार किया गया था। अधिकारी ने बताया कि कस्टडी के दौरान खुफिया एजेंसी को अजहर से पूछताछ करने के दौरान कोई महनत नहीं करनी पड़ी।

उसने सेना के एक अधिकारी के एक थप्पड़ के बाद ही बोलना शुरू कर दिया और पाकिस्तान से संचालित आतंकवादी समूहों के कामकाज के बारे में उसने विस्तार से जानकारी दी।

उन्होंने न्यूज एजेंसी पीटीआई से बातचीत में कहा, “उसे संभालना ज्यादा मुश्किल नहीं था और आर्मी अफसर के एक थप्पड़ ने उसे हिलाकर रख दिया था।” अविनाश मोहनाने सिक्किम पुलिस में पूर्व डायरेक्टर जनरल थे। खुफिया एजेंसी में दो दशक के अपने कार्यकाल में उन्होंने अजहर से कई बार पूछताछ की थी।

इंडियन एयरलाइंस के आईसी-814 विमान के हाईजैक होने के बाद यात्रियों के बदले भाजपा सरकार को अजहर को रिहा करना पड़ा था। इसके बाद उसने साल 2000 में पाकिस्तान में जैश-ए-मोहम्मद का गठन किया। इसके बाद उसने भारत में कई बड़े हमलों को अंजाम दिया था।

मोहनाने 1985 बैच के आईपीएस अधिकारी हैं जिन्होंने उस वक्त एजेंसी में कश्मीर डेस्क का नेतृत्व किया था। उन्होंने बताया, “कई मौके आए जब मैंने उससे कोट बलवाल जेल में मुलाकात की और कई घंटे तक उससे पूछताछ की। हमें उस पर बल प्रयोग नहीं करना पड़ा क्योंकि वह खुद ही सारी सूचनाएं बताता चला गया।”

उन्होंने कहा कि उसने अफगानी आतंकवादियों के कश्मीर घाटी में भेजे जाने की जानकारी दी। साथ ही हरकत उल मुजाहिद्दीन (एचयूएम) और हरकत उल जेहाद ए इस्लामी (हूजी) के हरकत उल अंसार में विलय की भी जानकारी दी। वह हरकत उल अंसार का सरगना था।

मोहनाने ने बताया कि बांग्लादेश से 1994 में भारत पहुंचने के बाद अजहर कश्मीर जाने से पहले सहारनपुर गया था जहां उसने साझा नीति बनाने के लिए एचयूएम और हूजी के अलग-अलग धड़ों के साथ बैठक की थी।

पुलिस अधिकारी ने बताया कि अजहर ने उनसे कहा था, “मैं पुर्तगाल के फर्जी पासपोर्ट पर यहां आया ताकि सुनिश्चित कर सकूं कि एचयूएम और हूजी घाटी में एक साथ आएं। नियंत्रण रेखा पार कर पाना संभव नहीं था।” उन्होंने बताया कि पूछताछ के दौरान अजहर हर सवाल का विस्तार से जवाब देता था।

उन्होंने कहा कि कराची से प्रकाशित टैबलॉयड ‘सदा ए मुजाहिद’ में पत्रकार के तौर पर जैश प्रमुख ने पाकिस्तान के कुछ पत्रकारों के साथ 1993 में कुछ देशों की यात्रा की थी जहां उसने ‘कश्मीर हित’ के लिए समर्थन मांगा था।

मोहनाने ने बताया कि अजहर हमेशा दावा करता था कि पुलिस उसे ज्यादा दिन तक हिरासत में नहीं रख पाएगी क्योंकि वह पाकिस्तान और आईएसआई के लिए महत्वपूर्ण है। पुलिस अधिकारी ने बताया, “आप मेरी लोकप्रियता को कमतर करके देख रहे हैं। आईएसआई सुनिश्चित करेगी कि मैं पाकिस्तान लौटूं।”

फरवरी 1994 में उसकी गिरफ्तारी के 10 महीने बाद दिल्ली से कुछ विदेशी नागरिकों का अपहरण हो गया और अपहर्ताओं ने उसे रिहा करने की मांग की। उमर शेख की गिरफ्तारी के कारण यह योजना विफल हो गई जिसे 1999 में विमान अपहरण के बदले रिहा किया गया था। शेख वॉल स्ट्रीट जर्नल के संवाददाता डैनियल पर्ल की पाकिस्तान में क्रूरतापूर्ण तरीके से सिर काटने के मामले में शामिल रहा था।

उसे रिहा कराने का दूसरा प्रयास हरकत उल अंसार से जुड़े संगठन अल फरान ने किया था जिसने जुलाई 1995 में कश्मीर में अपहृत पांच विदेशी नागिरकों के बदले उसकी रिहाई की मांग की थी।

अधिकारी ने बताया, “मैं 1997 में फिर उससे मिला जब वह उसी जेल में बंद था। मैंने उसे बताया कि मैं नयी पदस्थापना पर जा रहा हूं तो उसने मुझे शुभकामना दी।”

उन्होंने कहा, “नई पदस्थापना के दौरान मैंने सुना कि 31 दिसम्बर 1999 को उसे आईसी-814 विमान के यात्रियों के बदले रिहा कर दिया गया। वह सही कहता था कि हम उसे ज्यादा समय तक हिरासत में नहीं रख पाएंगे।”

 

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कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने मुस्लिम आरक्षण को लेकर कही बड़ी बात

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कर्नाटक। कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने उन मीडिया रिपोर्टों को खारिज कर दिया जिनमें दावा किया गया था कि राज्य सरकार नौकरियों में मुस्लिम आरक्षण के प्रस्ताव पर विचार कर रही है। उन्होंने रिपोर्टों को एक और नया झूठ बताया। मुख्यमंत्री कार्यालय (सीएमओ) ने एक बयान में स्पष्ट किया कि आरक्षण की मांग की गई है लेकिन इस संबंध में सरकार के समक्ष ऐसा कोई प्रस्ताव नहीं है। यह स्पष्टीकरण कर्नाटक में मुसलमानों के लिए आरक्षण के मुद्दे पर चल रहे विवाद के बीच आया है।

मुख्यमंत्री कार्यालय ने जारी किया बयान

मुख्यमंत्री कार्यालय ने एक बयान में कहा, ‘कुछ मीडिया में रिपोर्ट प्रकाशित हुई है कि नौकरियों में मुसलमानों को आरक्षण देने का प्रस्ताव सरकार के समक्ष है। इसमें कहा गया है कि मुस्लिम आरक्षण की मांग की गई है, हालांकि, यह स्पष्ट किया गया है कि इस संबंध में सरकार के समक्ष कोई प्रस्ताव नहीं है।’

4% कोटा, जो श्रेणी-2बी के अंतर्गत आता, सार्वजनिक निर्माण अनुबंधों के लिए समग्र आरक्षण को 47% तक बढ़ा देता। कर्नाटक का वर्तमान आवंटन विशिष्ट सामाजिक समूहों के लिए सरकारी ठेकों का 43% आरक्षित रखता है: एससी/एसटी ठेकेदारों के लिए 24%, श्रेणी-1 ओबीसी के लिए 4%, और श्रेणी-2ए ओबीसी के लिए 15% है।

राज्य विधानसभा में विपक्ष के नेता आर अशोक ने कहा कि सिद्धारमैया के राजनीतिक सचिव, नसीर अहमद, आवास और वक्फ मंत्री बीजे ज़मीर अहमद खान और अन्य मुस्लिम विधायकों के साथ, 24 अगस्त को एक पत्र प्रस्तुत किया था, जिसमें अनुबंधों में मुसलमानों के लिए 4% आरक्षण का अनुरोध किया गया था। उन्होंने आगे कहा कि सिद्धारमैया ने वित्त विभाग को उसी दिन प्रस्ताव की समीक्षा करने का निर्देश दिया था, कथित तौर पर उन्होंने इस मामले से संबंधित कर्नाटक सार्वजनिक खरीद पारदर्शिता (केटीपीपी) अधिनियम में संशोधन का भी समर्थन किया था।

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