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उत्तराखंड

तो अब किसके नसीब में होगी राज्यसभा सीट?

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उत्‍तराखण्‍ड की राज्‍यसभा सीट, कांग्रेस और भाजपा में घमासान, जुलाई में समाप्त हो रहा तरुण विजय का कार्यकाल, अधर में लटकी है उत्‍तराखण्‍ड विधानसभा

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उत्‍तराखण्‍ड की राज्‍यसभा सीट, कांग्रेस और भाजपा में घमासान, जुलाई में समाप्त हो रहा तरुण विजय का कार्यकाल, अधर में लटकी है उत्‍तराखण्‍ड विधानसभा

जुलाई में समाप्त हो रहा तरुण विजय का कार्यकाल

कोई भी दल हथिया सकता है यह सीट

देहरादून। प्रदेश में तमाम राजनीतिक उठक-पटक के बीच राज्यसभा की सीट को लेकर भाजपा और कांग्रेस के बीच में घमासान होने के आसार हैं। इस सीट को हथियाने के लिए भी दोनों दलों में संघर्ष तय होने माना जा रहा है। अब तक माना जा रहा था कि अगला राज्यसभा सदस्य कांग्रेस का ही होगा, लेकिन बदले राजनीतिक हालात में अब अनुमान लगाना कठिन साबित हो रहा है कि यह बाजी कौन जीतेगा?प्रदेश में मौजूदा समय में राज्यसभा में तीन सांसद हैं। राजब्बर, तरुण विजय और महेंद्र सिंह माहरा। फिल्म अभिनेता व सांसद राजब्बर का कार्यकाल आगामी 2020 तक है जबकि महेंद्र सिंह माहरा का कार्यकाल 2018 तक है। महरा और राजब्बर दोनों ही कांग्रेस के टिकट पर राज्यसभा पहुंचे हैं जबकि तरुण विजय वर्ष 2010 में भाजपा कोटे से राज्यसभा पहुंचे थे। अब तरुण विजय का कार्यकाल चार जुलाई को समाप्त हो रहा है। इसके बाद उत्तराखंड से राज्यसभा में यह सीट खाली हो जाएगी।

अधर में लटकी है विधानसभा

इस वर्ष 18 मार्च तक यह तय माना जा रहा था कि कांग्रेस ही अपने किसी वरिष्ठ नेता को राज्यसभा भेजेगी। सदस्य संख्या के आधार पर भी यह तय था। लेकिन कांग्रेस के नौ सदस्यों के बागी होने के बाद अब राज्यसभा की सीट को लेकर संशय की स्थिति बन गई है। राज्यसभा में अब किस दल का नेता पहुंचेगा, इसके लिए अब जोड़-तोड़ हो सकती है। मौजूदा समय में भाजपा के 28 सदस्य हैं, जबकि कांग्रेस के 27 व पीडीएफ के छह सदस्य हैं। कांग्रेस के नौ सदस्य बागी हैं, इस आधार पर यदि अब राज्यसभा सांसद के लिए चुनाव की स्थिति आती है तो उंट किस करवट बैठेगा, इसका अंदाजा लगाना मुश्किल है। हालांकि अब भी मामला अदालत में चल रहा है और राष्ट्रपति शासन चल रहा है। ऐसे में राज्यसभा सदस्य को लेकर अभी से सुगबुगहाट जल्दबाजी मानी जा रही है। इसके बावजूद दोनों दलों की नजरें प्राथमिकता के आधार पर राज्यसभा की सीट हथियाने पर टिकी हुई हैं।

बहुगुणा को राज्यसभा भेजते तो नहीं होता पंगा

कांग्रेस सूत्रों का कहना है कि टिहरी लोकसभा चुनाव में पहली बार बेटे की हार और फिर सीएम की कुर्सी छिनने के बाद विजय बहुगुणा को राज्यसभा में भेजा जाना चाहिए था, लेकिन सीएम हरीश रावत ने ऐसा नहीं किया। इसके दोहरा लाभ होना था, एक विजय बहुगुणा विधायकों से दूरी पर रहते और दूसरे उनका हरीश के प्रति राग-द्वैष भी नहीं रहता जो कि उनकी कुर्सी छिनने से हुआ था। राजनीतिक जानकारों की मानें तो रावत ने बहुगुणा को हाशिये पर रखने में पूरा दम-खम लगा दिया था। ऐसे में बहुगुणा ने वजूद की लड़ाई लड़ी और हरक के साथ मिलकर अचानक हमला कर रावत सरकार का तख्ता पलट दिया।

 

 

उत्तराखंड

शीतकाल की शुरू होते ही केदारनाथ धाम के कपाट बंद

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उत्तराखंड। केदारनाथ धाम में भाई दूज के अवसर पर श्रद्धालुओं के लिए शीतकाल का आगमन हो चुका है। बाबा केदार के कपाट रविवार सुबह 8.30 बजे विधि-विधान के साथ बंद कर दिए गए। इसके साथ ही इस साल चार धाम यात्रा ठहर जाएगी। ठंड के इस मौसम में श्रद्धालु अब अगले वर्ष की प्रतीक्षा करेंगे, जब कपाट फिर से खोलेंगे। मंदिर के पट बंद होने के बाद बाबा की डोली शीतकालीन गद्दीस्थल की ओर रवाना हो गई है।इसके तहत बाबा केदार के ज्योतिर्लिंग को समाधिरूप देकर शीतकाल के लिए कपाट बंद किए गए। कपाट बंद होते ही बाबा केदार की चल उत्सव विग्रह डोली ने अपने शीतकालीन गद्दीस्थल, ओंकारेश्वर मंदिर, उखीमठ के लिए प्रस्थान किया।

बता दें कि हर साल शीतकाल की शुरू होते ही केदारनाथ धाम के कपाट बंद कर दिया जाते हैं. इसके बाद बाबा केदारनाथ की डोली शीतकालीन गद्दीस्थल ओंकारेश्वर मंदिर ऊखीमठ के लिए रवाना होती है. अगले 6 महीने तक बाबा केदार की पूजा-अर्चना शीतकालीन गद्दीस्थल ओंकारेश्वर मंदिर ऊखीमठ में ही होती है.

उत्तरकाशी ज़िले में स्थिति उत्तराखंड के चार धामों में से एक गंगोत्री में मां गंगा की पूजा होती है। यहीं से आगे गोमुख है, जहां से गंगा का उदगम है। सबसे पहले गंगोत्री के कपाट बंद हुए हैं। अब आज केदारनाथ के साथ-साथ यमुनोत्री के कपाट बंद होंगे। उसके बाद आखिर में बदरीनाथ धाम के कपाट बंद किए जाएंगे।

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