उत्तराखंड
उत्तराखंड सरकार ने शुरू किया जल संचय, संरक्षण-संवर्द्धन अभियान
उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने बुधवार को आईआरटीडी सभागार में राज्य में ‘ जल संचय, संरक्षण-संवर्द्धन अभियान’ व विश्व बैंक की मदद से उत्तराखंड अर्द्धनगरीय क्षेत्रों के लिए पेयजल कार्यक्रम का शुभारम्भ किया।
मुख्यमंत्री ने पेयजल योजनाओं के स्रोत संवर्द्धन, वर्षा जल संरक्षण कार्यक्रम एवं नमामि गंगे की बेबसाईट की शुरूआत की। उन्होंने विद्यालयों में विद्यार्थियों के लिए स्वच्छता विषय पर पठन सामग्री का भी जायज़ा लिया। इस मौके पर मुख्यमंत्री ने जल संरक्षण की जागरूकता के लिए ‘जल चेतना रथ’ को हरी झंडी दिखाकर रवाना किया। ‘जल संचय, संरक्षण-संवर्द्धन अभियान ‘ राज्य में नौ मई से 30 जून 2018 तक चलाया जाएगा।
जल चेतना रथ को रवाना करते हुए मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने कहा ,” जल संकट की चुनौती से लड़ने के लिए विशेष प्रयासों की जरूरत है। आने वाले समय में जल संकट विश्व के समक्ष एक गम्भीर समस्या होगी। जल के संरक्षण के लिए हमें अल्पकालिक और दीर्घकालिक सोच के साथ कार्य करना जरूरी है।” उन्होंने आगे कहा कि जल संरक्षण के लिए राज्यों को आपस में मिलकर संयुक्त रूप से विचार करने की जरूरत है। इस संबंध में उत्तराखंड सरकार ने दिल्ली में हिमाचल, हरियाणा, उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्रियों से वार्ता भी की है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि जल संरक्षण राज्य सरकार की शीर्ष प्राथमिकताओं में है। पिछले एक साल में देहरादून में तीन झील बनाने का निर्णय लिया गया, जिसमें सूर्यधार का टेंडर हो गया है, सौंग के लिए बजट का प्रावधान कर लिया गया है,जबकि मलढ़ूंग की डीपीआर तैयार हो रही है। पिथौरागढ़, अल्मोड़ा और पौड़ी में भी झील बनाने का निर्णय लिया है। इन झीलों के माध्यम से जल संरक्षण भी होगा और ईको सिस्टम भी ठीक होगा।
” पिछले वर्ष 25 मई से जल संरक्षण को जो अभियान चलाया गया, उससे 40 करोड़ लीटर पानी का संरक्षण हुआ है। इस वर्ष 70 करोड़ लीटर जल संरक्षण का लक्ष्य रखा गया है। राज्य सरकार ने रिस्पना नदी एवं कुमांऊ की लाइफ लाइन कोसी को पुनर्जीवित करने का लक्ष्य रखा है। इनके पुनर्जीवीकरण का कार्य मिशन मोड पर किया जाएगा।” मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने बताया।
उत्तराखंड में मौजूदा समय में लगभग 200 करोड़ रूपए जल संग्रहण और उससे समंबंधित योजनाओं पर खर्च किए जा रहा हैं।सरकारी आवासों से रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम की शुरूआत की जा रही है।
इस मौके पर उत्तराखंड के पेयजल मंत्री प्रकाश पंत ने कहा, ” पेयजल की समस्या के छुटकारा दिलाने के लिए विश्व बैंक पोषित अर्द्धनगरीय क्षेत्र के रूप में प्रदेश के सात जनपदों में चिंहित किए हए 35 अर्द्धनगरीय क्षेत्रों के लिए मानक के अनुरूप पेयजल उपलब्ध कराने के लिए कार्यक्रम शुरू किया गया है। वर्ष 2022 तक हर घर में शुद्ध पानी पहुंचाने के लिए शहरी व ग्रामीण क्षेत्रों के लिए योजनाए बनाई जा रही हैं।”
उत्तराखंड में जल संरक्षण के लिए इस वर्ष 15 प्रोजेक्ट लिए गए हैं। वर्षा जल संरक्षण व संवर्द्धन का कार्य विभिन्न बड़े सरकारी आवासों से किए जा रहा है। नमामि गंगे योजना के तहत गंगा को गंगोत्री से उतराखंड की अन्तिम सीमा तक स्वच्छ रखने का राज्य सरकार का लक्ष्य है। गंगा किनारे उत्तराखंड में जो 132 गांव आते हैं, उन्हें गंगा गांव की श्रेणी दी गई है।
उत्तराखंड
शीतकाल की शुरू होते ही केदारनाथ धाम के कपाट बंद
उत्तराखंड। केदारनाथ धाम में भाई दूज के अवसर पर श्रद्धालुओं के लिए शीतकाल का आगमन हो चुका है। बाबा केदार के कपाट रविवार सुबह 8.30 बजे विधि-विधान के साथ बंद कर दिए गए। इसके साथ ही इस साल चार धाम यात्रा ठहर जाएगी। ठंड के इस मौसम में श्रद्धालु अब अगले वर्ष की प्रतीक्षा करेंगे, जब कपाट फिर से खोलेंगे। मंदिर के पट बंद होने के बाद बाबा की डोली शीतकालीन गद्दीस्थल की ओर रवाना हो गई है।इसके तहत बाबा केदार के ज्योतिर्लिंग को समाधिरूप देकर शीतकाल के लिए कपाट बंद किए गए। कपाट बंद होते ही बाबा केदार की चल उत्सव विग्रह डोली ने अपने शीतकालीन गद्दीस्थल, ओंकारेश्वर मंदिर, उखीमठ के लिए प्रस्थान किया।
बता दें कि हर साल शीतकाल की शुरू होते ही केदारनाथ धाम के कपाट बंद कर दिया जाते हैं. इसके बाद बाबा केदारनाथ की डोली शीतकालीन गद्दीस्थल ओंकारेश्वर मंदिर ऊखीमठ के लिए रवाना होती है. अगले 6 महीने तक बाबा केदार की पूजा-अर्चना शीतकालीन गद्दीस्थल ओंकारेश्वर मंदिर ऊखीमठ में ही होती है.
उत्तरकाशी ज़िले में स्थिति उत्तराखंड के चार धामों में से एक गंगोत्री में मां गंगा की पूजा होती है। यहीं से आगे गोमुख है, जहां से गंगा का उदगम है। सबसे पहले गंगोत्री के कपाट बंद हुए हैं। अब आज केदारनाथ के साथ-साथ यमुनोत्री के कपाट बंद होंगे। उसके बाद आखिर में बदरीनाथ धाम के कपाट बंद किए जाएंगे।
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