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एनएलयू-डी ने प्रवेश परीक्षा के बाद बढ़ाई सीटें, छात्रों में निराशा

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नई दिल्ली, 2 सितंबर (आईएएनएस)| नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी-दिल्ली (एनएलयू-डी) ने अपने मास्टर ऑफ लॉ (एलएलएम) पाठ्यक्रम में सीटों को दोगुना करने का फैसला किया है, जबकि प्रवेश परीक्षा पहले ही आयोजित की जा चुकी है और नतीजे आने में कुछ ही दिन बाकी रह गए हैं।

इस फैसले से परीक्षार्थियों में नाराजगी है और छात्रों को पीछे के रास्ते से दाखिला देने का संदेह उठने लगा है।

आरटीआई दाखिल करने वाले वकील मोहित गुप्ता ने उस बैठक के ब्यौरे की मांग की है, जिसमें सीटों को बढ़ाने का फैसला लिया गया। इस फैसले से केवल कुछ ही छात्रों का फायदा होगा।

उन्होंने कहा, अगले शैक्षिक वर्ष में बड़ी संख्या में छात्रों के बढ़ने की बात कही जा रही है, तो इनका (विश्वविद्यालय) अगला कदम क्या होगा?

एनएलयू-डी ने 2018 पाठ्यक्रम के लिए पांच विदेशी छात्रों समेत 40 सीटों की घोषणा की थी, लेकिन प्रवेश परीक्षा के एक महीने बाद उन्होंने इसे बढ़ाकर 80 सीटों की अधिसूचना जर कर दी।

दिल्ली विश्वविद्यालय की लॉ फैकल्टी से स्नातक एक छात्र ने नाम जाहिर न करने की शर्त पर आईएएनएस को बताया, मैंने यह सोचकर प्रवेश परीक्षा में आवेदन नहीं किया कि शीर्ष 40 में नाम आना काफी मुश्किल रहेगा। अगर उन्होंने सीटों में वृद्धि की घोषणा की है तो मैं जरूर आवेदन करूंगा, क्योंकि एनएलयू-डी मेरी पहली पसंद होगी। आईपी विश्वविद्यालय और जिंदल स्कूल ऑफ लॉ बहुत महंगे हैं।

अन्य कानून स्नातकों ने कहा कि विश्वविद्यालय द्वारा प्रवेश परीक्षा के बाद सीटों की संख्या बढ़ाना अनुचित है।

इस कदम के पीछे की मंशा जानने के लिए आईएएनएस ने जब विश्वविद्यालय से संपर्क किया तो कहा गया कि यह कदम समाज को कानूनी शिक्षा में व्यापक पहुंच प्रदान करने के लिए उठाया गया है और यह निर्णय प्रवेश घोषणा के अनुरूप था, जिसमें कहा गया था कि सीटों की संख्या में कमी या बढ़ोतरी हो सकती है।

एनएलयू-डी के रजिस्ट्रार जी.एस. बाजपेयी ने कहा, ऐसा कहा जा सकता है कि सीटों में वृद्धि विश्वविद्यालय के हिस्से पर बिल्कुल अनुचित नहीं है। बल्कि यह कानून के अध्ययन को प्रोत्साहित करने का एक कदम है, ताकि इस क्षेत्र में अधिक शिक्षक और शोधकर्ता उपलब्ध हों।

उन्होंने कहा, इसके अलावा, सीटों की संख्या बढ़ाने के लिए विश्वविद्यालय द्वारा की गई कार्रवाई को अकादमिक परिषद और कार्यकारी परिषद द्वारा भी मंजूरी मिल गई थी।

हालांकि, वह इस सवाल का जवाब नहीं दे पाए कि एनएलयू-डी पिछले दो सालों में पूरी सीटों को भरने में क्यों विफल रहा, जिसका खुलासा आरटीआई के एक सवाल में हुआ है।

आरटीआई के इस सवाल के जवाब में कहा गया है कि एनएलयू-डी ने वर्ष 2016 में 50 सीटों की तुलना में 40 छात्रों को दाखिला दिया था, जबकि 2017 में 40 सीटों में से केवल 23 ही भर सकी थीं।

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नेशनल

क्या रद्द होगी राहुल गांधी की भारतीय नागरिकता ?

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नई दिल्ली। राहुल गांधी के पास ब्रिटेन की भी नागरिकता है और इसलिए उनकी भारतीय नागरिकता रद्द कर दी जानी चाहिए.’ एस विग्नेश शिशिर ने यह दावा करते हुए एक जनहित याचिका दायर की है, जिस पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने केंद्रीय गृह मंत्रालय को फैसला करने का निर्देश दिया. इस दौरान केंद्र सरकार की तरफ से पेश डिप्टी सॉलिसिटर जनरल ने कहा, ‘याचिकाकर्ता की तरफ से कुछ दस्तावेज गृह मंत्रालय को मिले हैं और वह इस पर विचार कर रहा है कि राहुल गांधी की नागरिकता रद्द की जानी चाहिए या नहीं.’

जस्टिस एआर मसूदी और सुभाष विद्यार्थी की डिविजन बेंच ने अपर सॉलिसिटर जनरल एसबी पांडेय को निर्देश दिया कि वो तीन हफ्ते के अंदर इस बारे में गृह मंत्रालय से निर्देश प्राप्त करें और अगली तारीख पर इसका जवाब पेश करें. इस मामले की सुनवाई अब 19 दिसबंर को रखी गई है.

मामले की पूरी जानकारी

राहुल गांधी की नागरिकता से जुड़ा विवाद तब शुरू हुआ जब लखनऊ हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की गई, जिसमें आरोप लगाया गया कि राहुल गांधी के पास ब्रिटिश नागरिकता है। याचिकाकर्ता एस विग्नेश शिशिर ने दावा किया कि उन्होंने गहन जांच के बाद यह निष्कर्ष निकाला है कि राहुल गांधी के पास यूके की नागरिकता है। शिशिर ने यह भी कहा कि उनके पास कुछ गोपनीय जानकारी है, जिससे यह साबित होता है कि राहुल गांधी का विदेशी नागरिकता प्राप्त करना कानून के तहत भारतीय नागरिकता को रद्द करने का कारण हो सकता है।

पहले इस मामले में शिशिर की याचिका को जुलाई 2024 में खारिज कर दिया गया था, लेकिन इसके बाद शिशिर ने केंद्रीय गृह मंत्रालय के पास शिकायत की थी, जिसमें कोई एक्शन नहीं लिया गया। फिर से इस मामले को अदालत में लाया गया और अब गृह मंत्रालय से राहुल गांधी की नागरिकता पर स्पष्टीकरण मांगा गया है।

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