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कश्मीर सरकार को मसरत पर नजर रखनी चाहिए थी : कांग्रेस

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नई दिल्ली | कांग्रेस ने शुक्रवार को इस बात पर जोर दिया कि राष्ट्रीय महत्व के मुद्दों पर कोई राजनीति नहीं होनी चाहिए। इसके साथ ही कांग्रेस ने कहा कहा कि जम्मू एवं कश्मीर सरकार को मसरत आलम के मुद्दे पर नजर रखना चाहिए था। कांग्रेस महासचिव शकील अहमद ने आईएएनएस से कहा, “भाजपा-पीडीपी गठबंधन सरकार ने मीडिया के हंगामे के बाद मसरत आलम के खिलाफ कार्रवाई की, जिसने भारत विरोधी रैली में हिस्सा लिया था।”

उन्होंने यह भी कहा कि राष्ट्रीय महत्व के मुद्दों पर कोई राजनीति नहीं होनी चाहिए। अहमद ने कहा, “अलगाववादियों की गतिविधियां पूरी तरह अस्वीकार्य हैं और राज्य सरकार को इस तरह के मुद्दों पर नजर रखना चाहिए था।” उन्होंने सवाल किया कि आखिर उन्हें रैली करने की मंजूरी क्यों दी गई? अलगाववादी नेता मसरत आलम को गुरुवार रात नजरबंद कर दिया गया था। लेकिन आज (शुक्रवार) जम्मू एवं कश्मीर के बडगाम जिले में पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया। बडगाम जिले में ही 15 अप्रैल को पाकिस्तान के समर्थन में नारे लगाने और पाकिस्तानी झंडे फहराने के लिए उसके खिलाफ पुलिस में शिकायत भी दर्ज कराई गई है।

अन्य अलगाववादी नेता सैयद अली गिलानी को भी नजरबंद कर दिया गया है। पुलिस ने 15 अप्रैल को मसरत आलम के खिलाफ प्राथमिकी (एफआईआर) दर्ज की थी। इसी दिन आलम ने गिलानी के लिए अलगाववादियों की रैली का नेतृत्व किया था। रैली के दौरान लोगों ने पाकिस्तानी झंडे लहराए थे और पाकिस्तान के समर्थन में नारेबाजी की थी।

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हरियाणा में बीजेपी की हैट्रिक, कांग्रेस को भारी पड़ी गुटबाजी

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सुबह 8 बजे जब EVM खुलीं तो काँग्रेस कार्यकर्ताओं का जोश हाई था .. जैसे जैसे घड़ी की सुई आगे बढ़ती गई कार्यकर्ताओं का जोश नाच गाने और लड्डू बांटने में तब्दील हो गया.. लेकिन ये क्या अचानक से वक्त बदल गया हालात बदल गए और देखते देखते जज़्बात ठंडे पड़ गए .. हरियाणा में जो काँग्रेस रुझानों में पूर्ण बहुमत में दिख रही थी वो अर्श से फर्श पर आ गई और जो बीजेपी फर्श पर पड़ी थी वो अर्श पर पहुँच गई. अब जोश वही था लेकिन हालात और जज़्बात अपनी जगह बदल चुके थे.. अब ढोल की गूंज बीजेपी ऑफिस पहुँच चुकी थी और लड्डू बीजेपी कार्यकर्ताओं का मुंह मीठा कर रहे थे .लोकसभा चुनाव की तरह हरियाणा के नतीजों ने भी चुनावी पंडितों को मुंह छिपाने के लिए मजबूर कर दिया.. सारे  पोल धाराशाई हो गए.. बीजेपी का कमल पूरे बहुमत के साथ खिल गया.. काँग्रेस के मुख्यालय 24 अकबर रोड के जिस कमरे में कौन बनेगा हरियाणा का मुख्यमंत्री पर चर्चा हो रही थी वहाँ का माहौल गमगीन हो गया और इस बात पर चर्चा होने लगी इस हार का बलि का बकरा कौन बनेगा.. 10 साल की एंटी इनकंबेंसी को बीजेपी की रणनीति ने प्रो इनकंबेंसी में बदल कर तीसरी बार सत्ता में वापसी कर ली. जान लेते हैं वो कौन सी वजहें थीं जिसने हरियाणा में कांग्रेस की नैया डुबाने का काम किया है.

गुटबाजी कांग्रेस को भारी पड़ी

हरियाणा चुनाव प्रचार के दौरान सबसे ज्यादा चर्चा कांग्रेस के अंदर चल रही गुटबाजी की होती रही. कुमारी शैलजा और हुड्डा के साथ एक खेमा रणदीप सिंह सुरजेवाला का भी था. ऊपर के नेताओं के बीच की इस खींचतान ने संगठन को नुकसान पहुंचाने का काम किया और कार्यकर्ताओं के अंदर भी असमंजस की स्थिति बनी रही. तमाम कोशिशों के बाद भी कांग्रेस आलाकमान प्रदेश में खेमेबाजी पर लगाम लगाने में नाकामयाब रहा और पार्टी जीती हुई लड़ाई हार गई।

एंटी इनकंबेंसी को भुनाने में रही नाकामयाब

काँग्रेस अपनी अंदरूनी खींचतान से ही नहीं उबर पाई जिससे चुनाव प्रचार के दौरान काँग्रेस बीजेपी की गलतियों को भुनाने में नाकामयाब रही . हालांकि कांग्रेस के पास 10 साल की एंटी इनकंबेंसी,  मुख्यमंत्री बदलने जैसे मुद्दे थे. पहलवानों का प्रदर्शन और अग्निवीर योजना से लेकर किसान आंदोलन जैसे बड़े मुद्दों को प्रचार के दौरान ठीक से हवा नहीं दी जा सकी. लिहाजा पार्टी का पूरा ध्यान खेमेबाजी पर लगाम लगाने में ही रहा और इसका बीजेपी ने पूरा फायदा उठाया.

केजरीवाल की बेल ने बिगाड़ा खेल

चुनाव से ठीक पहले आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविन्द केजरीवाल जेल से बाहर आए तो गठबंधन के लिहाज से काफी देर हो चुकी थी .. केजरीवाल खुलकर हरियाणा के चुनावी मैदान में उतार चुके थे लेकिन आम आदमी पार्टी के साथ अगर काँग्रेस का गठबंधन होता तो शायद तस्वीर अलग होती.

टिकट बंटवारे में दिखी गुटबाजी

टिकट बंटवारे में गुटबाजी और भाई भतीजाबाद को अलग रखकर सिर्फ विनिंग उम्मीदवारों को ही प्राथमिकता दी जाती, तो भी नतीजे उलट सकते थे. आम आदमी पार्टी को भले ही किसी सीट पर जीत न मिली हो, लेकिन करीबी मुकाबले वाली सीटों पर उसने कांग्रेस को ही नुकसान पहुंचाने का काम किया है…

एस एन द्विवेदी के साथ शिखा मेहरोत्रा की रिपोर्ट

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