प्रादेशिक
कांग्रेस का आरोप- मध्यप्रदेश में भ्रष्टों को मिल रहा संरक्षण
भोपाल। मध्यप्रदेश कांग्रेस ने व्यापमं घोटाले और इससे जुड़ी 41 मौतों के लिए चर्चित प्रदेश के लोकायुक्त व आर्थिक अनुसंधान ब्यूरो (ईओडब्ल्यू) पर रविवार को सीधा हमला बोला। विपक्षी पार्टी ने कहा कि ये दोनों भ्रष्टाचार में लिप्त लोगों के संरक्षक बन गए हैं, वरना मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान व उनके मंत्रियों के खिलाफ दर्ज मामलों में ‘क्लीनचिट’ मिलने की कल्पना भी नहीं की जा सकती।
कांग्रेस के मुख्य प्रवक्ता के.के. मिश्रा ने शनिवार को संवाददाता सम्मेलन में सरकार, लोकायुक्त व ईओडब्ल्यू के बीच सांठगांठ का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि यह कड़वा सच है कि प्रदेश में ‘राजनीतिक शुचिता’ की बातें मुख्यमंत्री शिवराज और सभी भाजपा नेता बढ़चढ़ कर करते हैं, लेकिन भ्रष्टाचार जैसे सर्वाधिक आम मुद्दे को लेकर मध्यप्रदेश देश में नंबर एक के पायदान आ गया है। उन्होंने कहा कि पहली बार प्रदेश के मुख्यमंत्री सहित 18 मंत्रियों और एक पूर्व मंत्री, 32 से अधिक आईएएस, आठ आईपीएस और आठ आईएफएस अधिकारियों के खिलाफ लोकायुक्त में आधिकारिक तौर पर प्रकरण दर्ज हुए। इतना ही नहीं, आर्थिक अनुसंधान ब्यूरो (ईओडब्ल्यू) में भी कई मंत्रियों और नौकरशाहों के खिलाफ प्रामाणिक शिकायतें दर्ज हैं, लेकिन लोकायुक्त ने इन सभी को क्लीनचिट देकर कीर्तिमान बनाया है, ईओडब्ल्यू भी लोकायुक्त की तर्ज पर काम कर रहा है।
पार्टी का आरोप है कि ये दोनों ही एजेंसियां राज्य सरकार और भाजपा नेताओं के नियंत्रण में काम करने वाली महज ‘कठपुतलियां’ बनकर रह गई हैं। कठपुतली बने रहने का फायदा देखिए कि लोकायुक्त के रूप में नियुक्ति के साथ ही ‘विवादास्पद’ रहे पी.पी. नावलेकर को शिवराज सरकार एक बार फिर उपकृत करने का मन बना चुकी है। मिश्रा ने सूचना का अधिकार कानून के तहत हासिल की गई जानकारी का हवाला देते हुए कहा कि मुख्यमंत्री शिवराज सहित अन्य वर्तमान व पूर्व (प्रकरण दर्ज किए जाने के समय मंत्री) के विरुद्ध भी प्रामाणिक दस्तावेजों के साथ शिकायतें देने के बाद लोकायुक्त संस्था में प्रकरण दर्ज हुए थे।
कांग्रेस के मुख्य प्रवक्ता ने आगे कहा कि नियमानुसार, लोकायुक्त संस्था हलफनामे के साथ शिकायतकर्ता द्वारा की गई दस्तावेजी शिकायत की प्रारंभिक जांच करती है। जांच में तथ्य साबित होने के बाद ही प्रकरण दर्ज किया जाता है। यानी तथ्य सही पाए गए, तभी प्रकरण दर्ज कर लिया गया। मगर विडंबना देखिए कि मुख्यमंत्री सहित अधिकांश को क्लीनचिट दे दी गई? यह सब कैसे हुआ, प्रदेश की जनता के सामने एक बड़ा सवाल है।
प्रादेशिक
IPS अधिकारी संजय वर्मा बने महाराष्ट्र के नए डीजीपी, रश्मि शुक्ला के ट्रांसफर के बाद मिली जिम्मेदारी
महाराष्ट्र। महाराष्ट्र के नए डीजीपी का कार्यभार IPS संजय वर्मा को सौंपा गया है। आईपीएस संजय वर्मा को केंद्रीय चुनाव आयोग ने महाराष्ट्र के नए पुलिस महानिदेशक के रूप में नियुक्त किया है। कुछ ही दिनों में महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव है। उससे पहले चुनाव आयोग ने राज्य कांग्रेस प्रमुख नाना पटोले की शिकायत मिलने के बाद डीजीपी रश्मि शुक्ला के तबादले का आदेश दिया था।
कौन हैं IPS संजय वर्मा?
IPS संजय वर्मा 1990 बैच के पुलिस अधिकारी हैं। वह महाराष्ट्र में वर्तमान में कानून और तकनीकी के डीजी के रूप में कार्यरत रहे। वह अप्रैल 2028 में सेवानिवृत्त पुलिस सेवा से रिटायर होंगे। दरअसल, डीजीपी रश्मि शुक्ला को लेकर सियासी दलों के बीच पिछले कुछ समय से माहौल गर्म था। कांग्रेस के बाद उद्धव गुट की शिवसेना ने भी चुनाव आयोग को पत्र लिखकर उन्हें हटाने की मांग की थी।
कांग्रेस ने रश्मि शुक्ला की निष्पक्षता पर सवाल उठाते हुए चुनाव आयोग से उन्हें महानिदेशक पद से हटाने की मांग की थी। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष नाना पटोले ने उन पर आरोप लगाया था कि वह बीजेपी के आदेश पर सरकार के लिए काम कर रही हैं।
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