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केंद्र ने आरटीआई कानून में प्रस्तावित संशोधन की पुष्टि की : याचिकाकर्ता

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नई दिल्ली, 16 जून (आईएएनएस)| सरकार सूचना का अधिकार (आरटीआई) कानून में संशोधन करने पर विचार कर रही है। यह जानकारी कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) ने एक आरटीआई के जवाब में दी है। हालांकि विभाग ने प्रस्तावित संशोधन के बारे में विस्तृत जानकारी देने से मना कर दिया।

आरटीआई कार्यकर्ता अंजली भारद्वाज को इसी महीने डीओपीटी से मिली जानकारी में कहा गया है कि आरटीआई काननू 2005 में संशोधन पर विचार किया जा रहा है, मगर इसे अंतिम रूप नहीं दिया गया है। विभाग ने कहा कि आरटीआई कानून 2005 की धारा 8(1)(आई) के अनुसार, आपके द्वारा मांगी गई सूचना इस स्तर पर नहीं दी जा सकती है।

आरटीआई आवेदन में डीओपीटी द्वारा आरटीआई कानून 2005 में संशोधन का प्रस्ताव तैयार करने की तिथि, प्रस्ताव को मंत्रिमंडल को भेजने की तिथि और प्रस्ताव पर मंत्रिमंडल द्वारा फैसला लिए जाने की तिथि की जानकारी मांगी गई थी।

आरटीआई कार्यकर्ता ने डीओपीटी द्वारा तैयार किए गए संशोधन के प्रस्ताव की प्रति और प्रस्ताव पर मंत्रिमंडल के फैसले की प्रति भी मांगी थी।

भारद्वाज ने कहा कि पूर्व विधायी परामर्श नीति (पीएलसीपी)-2014 के तहत सरकार द्वारा विचार किए जाने वाले सभी विधेयक व नीतियों पर परामर्श के लिए उसे एक महीने के लिए सार्वजनिक किया जाना चाहिए।

भारद्वाज ने आईएएनएस से बातचीत में कहा, सरकार संशोधन के प्रस्ताव को सार्वजनिक बिल्कुल नहीं करना चाहती है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि संशोधन या कानून जो सरकार लाना चाहती है, उसपर पूर्व विधायी परामर्श नहीं किया जा रहा है।

उन्होंने कहा, व्हिसलब्लोअर सुरक्षा संशोधन विधेयक में भी उन्होंने कुछ भी सार्वजनिक नहीं किया। हमने आरटीआई आवेदन दाखिल की, लेकिन उन्होंने हमें कोई सूचना नहीं दी।

भारद्वाज ने कहा, मीडिया से प्राप्त रपट से हमें मालूम हुआ कि आरटीआई कानून में संशोधन पर विचार किया जा रहा है और इसके लिए आरटीआई संशोधन विधयेक लाने का विचार किया जा रहा है। इसलिए हमने इस आरटीआई के माध्यम से विधेयक की विषय-वस्तु की जानकारी मांगी। मगर, उन्होंने सूचना देने से मना कर दिया है।

भारद्वाज ने कहा कि आरटीआई कानून की धारा 8(1)(आई) में एक उपबंध है, जिसमें यह कहा गया है कि मंत्रिमंडल के दस्तावेज आरटीआई के तहत नहीं दिए जा सकते हैं।

उन्होंने कहा, लेकिन हमने मंत्रिमंडल के दस्तावेजों की मांग नहीं की थी। हमने डीओपीटी द्वारा संशोधन का प्रस्ताव तैयार करने की तिथि और प्रस्ताव को मंत्रिमंडल को भेजने की तिथि की जानकारी मांगी है। तारीख बताने में क्या गोपनीयता है। उन्होंने संशोधन से संबंधित कोई भी सूचना देने से मना कर दिया है।

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नेशनल

क्या रद्द होगी राहुल गांधी की भारतीय नागरिकता ?

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नई दिल्ली। राहुल गांधी के पास ब्रिटेन की भी नागरिकता है और इसलिए उनकी भारतीय नागरिकता रद्द कर दी जानी चाहिए.’ एस विग्नेश शिशिर ने यह दावा करते हुए एक जनहित याचिका दायर की है, जिस पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने केंद्रीय गृह मंत्रालय को फैसला करने का निर्देश दिया. इस दौरान केंद्र सरकार की तरफ से पेश डिप्टी सॉलिसिटर जनरल ने कहा, ‘याचिकाकर्ता की तरफ से कुछ दस्तावेज गृह मंत्रालय को मिले हैं और वह इस पर विचार कर रहा है कि राहुल गांधी की नागरिकता रद्द की जानी चाहिए या नहीं.’

जस्टिस एआर मसूदी और सुभाष विद्यार्थी की डिविजन बेंच ने अपर सॉलिसिटर जनरल एसबी पांडेय को निर्देश दिया कि वो तीन हफ्ते के अंदर इस बारे में गृह मंत्रालय से निर्देश प्राप्त करें और अगली तारीख पर इसका जवाब पेश करें. इस मामले की सुनवाई अब 19 दिसबंर को रखी गई है.

मामले की पूरी जानकारी

राहुल गांधी की नागरिकता से जुड़ा विवाद तब शुरू हुआ जब लखनऊ हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की गई, जिसमें आरोप लगाया गया कि राहुल गांधी के पास ब्रिटिश नागरिकता है। याचिकाकर्ता एस विग्नेश शिशिर ने दावा किया कि उन्होंने गहन जांच के बाद यह निष्कर्ष निकाला है कि राहुल गांधी के पास यूके की नागरिकता है। शिशिर ने यह भी कहा कि उनके पास कुछ गोपनीय जानकारी है, जिससे यह साबित होता है कि राहुल गांधी का विदेशी नागरिकता प्राप्त करना कानून के तहत भारतीय नागरिकता को रद्द करने का कारण हो सकता है।

पहले इस मामले में शिशिर की याचिका को जुलाई 2024 में खारिज कर दिया गया था, लेकिन इसके बाद शिशिर ने केंद्रीय गृह मंत्रालय के पास शिकायत की थी, जिसमें कोई एक्शन नहीं लिया गया। फिर से इस मामले को अदालत में लाया गया और अब गृह मंत्रालय से राहुल गांधी की नागरिकता पर स्पष्टीकरण मांगा गया है।

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