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साइंस

कैंसर का तुरंत पता लगाने वाला स्मार्टफोन डिवाइस

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वाशिंगटन| स्मार्टफोन के जरिए चलने वाले एक नव आविष्कृत उपकरण की मदद से चिकित्सक कैंसर का पता बेहद तेजी से लगा सकेंगे। इस उपकरण को मैसाचुसेट्स जनरल हॉस्पिटल (एमजीएच) के अनुसंधानकर्ताओं ने विकसित किया है। इस उपकरण को डी3 (डिजिटल डीफ्रैक्शन डायग्नोसिस) नाम दिया गया है। बैटरी चालित एलईडी लाइट से युक्त इस इमेजिंग उपकरण को किसी भी स्मार्टफोन से जोड़ा जा सकता है और स्मार्टफोन के कैमरे की मदद से काफी उच्च आवृत्ति वाले इमेजिंग डाटा को रिकॉर्ड किया जा सकता है। पारंपरिक जांच प्रक्रिया माइक्रोस्कोपी की जगह इस नई डी3 प्रणाली से एक बार में रक्त या ऊतक में एक लाख से भी अधिक कोशिकाओं की जांच की जा सकती है।

इस तरह दर्ज रिकॉर्ड को सुदूर स्थित ग्राफिक प्रोसेसिंग सर्वर विश्लेषण के लिए सुरक्षित तरीके से भेजा जा सकता है और विश्लेषण के नतीजे भी जल्द ही प्राप्त किए जा सकते हैं। शोध के सहायक लेखक सेसार कास्त्रो के अनुसार, “हमें विश्वास है कि हमने जो प्लेटफॉर्म विकसित किया है, वह बेहद कम कीमत पर बहुत ही अच्छी सुविधा प्रदान करने वाला है।” प्रायोगिक परीक्षण के दौरान इस उपकरण ने मौजूदा पारंपरिक प्रणाली जितनी सटीकता से ही कैंसरग्रस्त कोशिकाओं का पता लगाया और एक लाख कोशिकाओं का रिकॉर्ड एक बार में ले सकने की क्षमता के कारण अन्य जांच भी किए जा सकते हैं। यह शोध-पत्र ‘पीएनएएस अली एडिशन’ के ताजा अंक में प्रकाशित हुआ है।

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फेमस न्यूक्लियर फिजिस्ट होमी जहांगीर भाभा का आज जन्मदिन, जानें कुछ उनके बारे में

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नई दिल्ली। इंडियन न्यूक्लियर प्रोग्राम के जनक और फेमस न्यूक्लियर फिजिस्ट होमी जहांगीर भाभा का आज जन्मदिन है। जे. भाभा, टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च (TIFR) के फाउंडिंग डायरेक्टर और फिजिक्स के प्रोफेसर भी थे। होमी जहांगीर भाभा का जन्म 30 अक्टूबर 1909 में एक अमीर पारसी परिवार में हुआ था। होमी जहांगीर भाभा के पिता का नाम जहांगीर होर्मुस्जी भाभा और माता का नाम मेहरबाई भाभा था, इनके पिता एक जाने-माने वकील थे जबकि माँ एक गृहिणी थीं।

होमी भाभा ने 16 साल की आयु में ही सीनियर कैम्ब्रिज परीक्षा पास कर ली थी। फिर वे गोनविले और कैयस कॉलेज में मैकेनिकल इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल करने के लिए कैम्ब्रिज गए। इसके बाद उन्होंने कैम्ब्रिज में कैवेंडिश लैब में रिसर्च करना शुरू किया और उनका पहला रिसर्च पेपर 1933 में प्रकाशित हुआ। दो साल बाद, उन्होंने अपनी पीएचडी हासिल की और 1939 तक कैम्ब्रिज में रहे।होमी भाभा ने छात्र के रूप में कोपेनहेगन में नोबेल पुरस्कार विजेता नील्स बोहर के साथ काम किया और क्वांटम सिद्धांत के विकास में प्रमुख भूमिका निभाई।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

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