ऑफ़बीट
क्या है ZERO FIR, पुलिस लिखने से करें मना तो फ़ौरन उठाएं ये कदम
नई दिल्ली। क्या आप जानते है कि जीरो एफआईआर सिटीजन को एक जबरदस्त अधिकार देती है। और तो और अगर पुलिस इसे दर्ज करने से मना कर दे तो आप चाहे तो ह्युमन राइट्स कमीशन में भी जा सकते हैं।
लेकिन बहुत से लोग इसके बारे में जानते ही नहीं। तो इसलिए आज हम आपको बताएंगे आखिर Zero FIR होती क्या है। और पुलिस इसे दर्ज करने से मना करे तो आप क्या कर सकते हैं।
दरअसल, हर पुलिस स्टेशन का एक ज्युरिडिक्शन होता है। यदि किसी कारण से आप अपने ज्युरिडिक्शन वाले थाने में नहीं पहुंच पा रहे या आपको इसकी जानकारी नहीं है तो जीरो एफआईआर के तहत आप सबसे नजदीकी पुलिस स्टेशन में एफआईआर दर्ज करवा सकते हैं। जीरो एफआईआर में क्षेत्रीय सीमा नहीं देखी जाती। इसमें क्राइम कहां हुआ है, इससे कोई मतलब नहीं होता। इसमें सबसे पहले रिपोर्ट दर्ज की जाती है। इसके बाद संबंधित थाना जिस क्षेत्र में घटना हुई है, वहां के ज्युरिडिक्शन वाले पुलिस स्टेशन में एफआईआर को फॉरवर्ड कर देते हैं। यह प्रोविजन सभी के लिए किया गया है। इसका मोटिव लोगों को जल्द से जल्द न्याय दिलाना है।
जीरो एफआईआर की अवधारणा दिसंबर 2012 में हुए निर्भया केस के बाद आई। निर्भया केस के बाद देशभर में बड़े लेवल पर प्रोटेस्ट हुआ था। जस्टिस वर्मा कमेटी रिपोर्ट की रिकमंडेशन के आधार पर एक्ट में नए प्रोविजन जोड़े गए थे। दिसंबर 2012 में हुए निर्भया केस के बाद न्यू क्रिमिनल लॉ (अमेडमेंट) एक्ट, 2013 आया।
ये है जीरो एफआईआर के लाभ-
इस प्रोविजन के बाद इन्वेस्टिगेशन प्रोसीजर तुरंत शुरू हो जाता है। टाइम बर्बाद नहीं होता।
इसमें पुलिस 00 सीरियल नंबर से एफआईआर लिखती है। इसके बाद केस को संबंधित थाने में ट्रांसफर कर दिया जाता है। जीरो FIR से अथॉरिटी को इनिशिएल लेवल पर ही एक्शन लेने का टाइम मिलता है।
यदि कोई भी पुलिस स्टेशन जीरो एफआईआर लिखने से मना करे तो पीड़ित सीधे पुलिस अधिक्षक को इसकी शिकायत कर सकता है और अपनी कम्प्लेंड रिकॉर्ड करवा सकता है।
ऑफ़बीट
बिहार का ‘उसैन बोल्ट’, 100 किलोमीटर तक लगातार दौड़ने वाला यह लड़का कौन
चंपारण। बिहार का टार्जन आजकल खूब फेमस हो रहा है. बिहार के पश्चिम चंपारण के रहने वाले राजा यादव को लोगों ने बिहार टार्जन कहना शुरू कर दिया है. कारण है उनका लुक और बॉडी. 30 मार्च 2003 को बिहार के बगहा प्रखंड के पाकड़ गांव में जन्मे राज़ा यादव देश को ओलंपिक में गोल्ड मेडल दिलाना चाहते हैं.
लिहाजा दिन-रात एकक़र फिजिकल फिटनेस के साथ-साथ रेसलिंग में जुटे हैं. राज़ा को कुश्ती विरासत में मिली है. दादा जगन्नाथ यादव पहलवान और पिता लालबाबू यादव से प्रेरित होकर राज़ा यादव ने सेना में भर्ती होने की कोशिश की. सफलता नहीं मिली तो अब इलाके के युवाओं के लिए फिटनेस आइकॉन बन गए हैं.
महज 22 साल की उम्र में राजा यादव ‘उसैन बोल्ट’ बन गए. संसाधनों की कमी राजा की राह में रोड़ा बन रहा है. राजा ने एनडीटीवी से कहा कि अगर उन्हें मौका और उचित प्रशिक्षण मिले तो वे पहलवानी में देश का भी प्रतिनिधित्व कर सकते हैं. राजा ओलंपिक में गोल्ड मेडल लाने के लिए दिन रात मैदान में पसीना बहा रहे हैं. साथ ही अन्य युवाओं को भी पहलवानी के लिए प्रेरित कर रहे हैं.
’10 साल से मेहनत कर रहा हूं. सरकार ध्यान दे’
राजा यादव ने कहा, “मेरा जो टारगेट है ओलंपिक में 100 मीटर का और मेरी जो काबिलियत है उसे परखा जाए. इसके लिए मैं 10 सालों से मेहनत करते आ रहा हूं तो सरकार को भी ध्यान देना चाहिए. मेरे जैसे सैकड़ों लड़के गांव में पड़े हुए हैं. उन लोगों के लिए भी मांग रहा हूं कि उन्हें आगे बढ़ाने के लिए सुविधा मिले तो मेरी तरह और युवक उभर कर आएंगे.”
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