नेशनल
गो-रक्षा के नाम पर 97 फीसदी हमले मोदी राज में
इसी अवधि में देशभर की अंग्रेजी माध्यम की खबरों के विश्लेषण के आधार पर इंडियास्पेंड ने यह खुलासा किया है।
इस तरह की हिंसा के 97 फीसदी मामले मई, 2014 में नरेंद्र मोदी के देश की केंद्रीय सत्ता में आने के बाद दर्ज किए गए हैं। इतना ही नहीं, इस दौरान गो-रक्षा के नाम पर हुई 63 हिंसक वारदातों में से 32 वारदात ऐसे राज्यों में हुए, जहां भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की सत्ता है।
बीते सात वर्षो के दौरान गो-रक्षा के नाम पर मारे गए 28 लोगों में से 24 व्यक्ति मुस्लिम समुदाय के हैं, जबकि इस दौरान 124 लोग इस तरह की हिंसा में घायल हुए।
इंडियास्पेंड का विश्लेषण कहता है कि 52 फीसदी हिंसा के मामले अफवाहों पर आधारित रहे।
गौरतलब है कि हिंसा के मामलों से संबंधित राष्ट्रीय या राज्य के आंकड़ों में गो-रक्षा के नाम पर हुई हिंसा या भीड़ द्वारा की गई हिंसा को अलग से वर्गीकृत नहीं किया जाता। इंडियास्पेंड का विश्लेषण देश में धर्म और गो-रक्षा के नाम पर लगातार बढ़ रही इस तरह की हिंसा के आंकड़ों का एकमात्र सांख्यिकीय दस्तावेज है।
गो-रक्षा के नाम होने वाली हिंसा के मामले में 2017 अब तक का सबसे बुरा वर्ष साबित हुआ है।
मौजूदा वर्ष के शुरुआती छह महीनों में गो-रक्षा के नाम पर हिंसा के 20 मामले दर्ज किए गए हैं, जो बीते वर्ष (2016) से 75 फीसदी अधिक हैं। 2010 के बाद से इस मामले में 2017 सबसे बुरा वर्ष साबित हुआ है।
देश के 29 राज्यों में 19 राज्यों में अब तक गो-रक्षा के नाम पर हिंसा के वारदात दर्ज किए गए हैं। इनमें उत्तर प्रदेश में 10 मामले, हरियाणा में नौ मामले, गुजरात में छह मामले, कर्नाटक में छह मामले, मध्य प्रदेश, दिल्ली और राजस्थान में चार-चार मामले सामने आए हैं।
पूर्वोत्तर के सात राज्यों में सिर्फ असम में 30 अप्रैल, 2017 को गो-रक्षा के नाम पर दो व्यक्तियों की हत्या का मामला सामने आया है।
बीते आठ वर्षो के दौरान गो-रक्षा के नाम पर हुई हिंसा के 63 मामलों में से 32 मामलों में (50.8 फीसदी) में मुस्लिम समुदाय को निशाना बनाया गया, जबकि पांच मामलों (7.9 फीसदी) में दलित समुदाय को निशाना बनाया गया, जबकि तीन मामलों (4.8 फीसदी) में पीड़ित सिख या हिंदू रहे।
इतना ही नहीं इस तरह की हिंसा के आठ फीसदी मामलों में पुलिस अधिकारी और दर्शक पीड़ित रहे, वहीं 27 फीसदी मामलों में महिलाओं को निशाना बनाया गया।
पांच फीसदी मामलों में कोई गिरफ्तारी नहीं हुई, वहीं 13 मामलों (21 फीसदी) में पुलिस ने उल्टे पीड़ितों के खिलाफ ही मामले दर्ज कर दिए।
बीते आठ वर्षो के दौरान इस तरह की हिंसा के 63 में से 23 हमलों में हमलावर या तो भीड़ थी या बजरंग दल, विश्व हिंदू परिषद और स्थानीय गो-रक्षक समितियों जैसे हिंदू संगठनों से जुड़े लोगों का समूह था।
इस अवधि में 10 जून, 2012 को गो-रक्षा के नाम पर हिंसा का पहला मामला पंजाब के मनसा जिले में स्थित जोगा कस्बे में एक कारखाने के पास से 25 पशुओं का कंकाल मिलने के बाद दर्ज किया गया।
विश्लेषित आंकड़ों के मुताबिक, गो-रक्षा के नाम पर हुई हिंसा के 52 फीसदी मामलों के पीछे मात्र अफवाह थी।
(आंकड़ा आधारित, गैर लाभकारी, लोकहित परोपकारी मंच इंडिया स्पेंड के साथ एक करार के तहत)
नेशनल
सोशल मीडिया और ओटीटी प्लेटफार्मों पर अश्लील कंटेंट को रोकने के लिए बनेगा कानून – केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री अश्विनी वैष्णव
नई दिल्ली। लोकसभा में हगामे के बीच बीजेपी सांसद अरुण गोविल ने प्रश्नकाल के दौरान सोशल मीडिया और ओटीटी प्लेटफॉर्म्स पर अश्लील कंटेंट का मुद्दा उठाया। अरुण गोविल के सवाल का जवाब में देते हुए केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री अश्विनी वैष्णव ने लोकसभा में कहा कि सोशल मीडिया और ओटीटी प्लेटफार्मों पर अश्लील कंटेंट को रोकने के लिए सरकार के प्रयासों के लिए मौजूदा कानूनों को मजबूत करने की आवश्यकता है। हमारे देश की संस्कृति और उन देशों की संस्कृति के बीच बहुत अंतर है जहां पर ओटीटी पर अश्लील कंटेंट आते है।
केंद्रीय मंत्री ने आम सहमति बनाने का किया अनुरोध
अश्विनी वैष्णव ने कहा कि मैं चाहूंगा कि स्थायी समिति इस मुद्दे को उठाए। मौजूदा कानून को मजबूत करने की जरूरत है और मैं इस पर आम सहमति का अनुरोध करता हूं। मंत्री ने कहा कि सोशल मीडिया पर अश्लील सामग्री भी चलाई जाती है।
Minister @AshwiniVaishnaw replies to the questions asked by member @arungovil12 during #QuestionHour in #LokSabha regarding Laws to Check Vulgar Content on Social Media. @ombirlakota @loksabhaspeaker @LokSabhaSectt @MIB_India pic.twitter.com/xu6wEzGNy1
— SansadTV (@sansad_tv) November 27, 2024
नई नीति का मसौदा तैयार कर रही है सरकार
केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री ने कहा कि पहले कोई चीज पब्लिश करने के लिए संपादकीय टीम होती थी। इसकी वजह से कोई अश्लील कंटेंट पब्लिश नहीं होता था। जो अब नहीं है। अश्विनी वैष्णव ने यह बयान उनके डिप्टी एल मुरुगन द्वारा यह पुष्टि किए जाने के एक महीने बाद आया है कि सरकार ओटीटी सामग्री को विनियमित करने के लिए एक नई नीति का मसौदा तैयार कर रही है।
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