प्रादेशिक
भोपाल गैस त्रासदी : राज ही रह गई एंडरसन की रिहाई
भोपाल| भोपाल गैस हादसे के मुख्य आरोपी वारेन एंडरसन की रिहाई के रहस्य पर 30 वर्ष बाद भी पर्दा पड़ा हुआ है। हजारों लोगों की मौत का जिम्मेदार एंडरसन का कुछ ही घंटे पुलिस की हिरासत में रहना और फिर राज्य सरकार के विशेष विमान से अचानक दिल्ली चले जाना अब भी अबूझ पहेली है।
यूनियन कार्बाइड संयंत्र से दो-तीन दिसंबर 1984 की रात को रिसी जहरीली गैस ने भोपाल में जमकर तबाही मचाई थी। कई दिनों तक भोपाल में जहरीली गैस से मौत के आगोश में समाए लोगों के शवों को ठिकाने लगाने का दौर चलता रहा, उधर अस्पतालों में अपनों को तलाशने वाले डटे रहे। उन दिनों तो भोपाल के हर अस्पताल में हजारों मरीजों की कतारें लगी रहती थीं।
हादसे को लेकर यूनियन कार्बाइड के चेयरमैन वारेन एंडरसन के खिलाफ हर किसी में जबर्दस्त गुस्सा था। सभी यही मानते थे कि वही हजारों लोगों का कातिल है। हर तरफ से एंडरसन की गिरफ्तारी की मांग जोर पकड़ रही थी। धरना-प्रदर्शनों के बाद तीन दिसंबर की शाम हनुमानगंज थाने में एंडरसन के खिलाफ प्रकरण दर्ज कर लिया गया।
डॉन कर्जमैन की लिखी किताब ‘किलिंग विंड’ के मुताबिक, एंडरसन अपने अन्य सहयोगियों के साथ सात दिसंबर को सुबह साढ़े नौ बजे इंडियन एयरलाइंस के विमान से भोपाल पहुंचता है, हवाईअड्डे पर तत्कालीन पुलिस अधीक्षक स्वराज पुरी और जिलाधिकारी मोती सिंह मौजूद रहते हैं। दोनों एंडरसन को एक सफेद एंबेस्डर कार में कार्बाइड के रेस्ट हाउस ले जाते हैं और वहीं उन्हें हिरासत में लिए जाने की जानकारी देते हैं।
कर्जमैन आगे लिखते हैं कि दोपहर साढ़े तीन बजे एंडरसन को पुलिस अधिकारी द्वारा बताया जाता है, “हमने आपको भोपाल से दिल्ली जाने के लिए राज्य सरकार के विशेष विमान की व्यवस्था की है, जहां से आप अमेरिका लौट सकते हैं।” कुछ जरूरी कागजात पर दस्तखत करने के बाद एंडरसन दिल्ली के लिए उड़ गया। हजारों इंसान का ‘कातिल’ फिर कभी भोपाल नहीं आया, वहीं से उसे अमेरिका भेज दिया गया।
इधर भोपाल में उसे दोषी ठहराने की लड़ाई जारी रही। एक दिसंबर 1987 को केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) ने एंडरसन के खिलाफ मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी की अदालत में आरोपपत्र दाखिल किया। नौ फरवरी 1989 को सीजेएम की अदालत ने एंडरसन के खिलाफ गैरजमानती वारंट जारी किया, मगर वह नहीं आया। आखिरकार एक फरवरी 1992 को अदालत ने एंडरसन को भगोड़ा घोषित कर दिया।
एंडरसन के भोपाल न आने के बावजूद न्यायिक लड़ाई जारी रही। 27 मार्च 1992 को सीजेएम अदालत ने एंडरसन के खिलाफ गैरजमानती वारंट जारी कर गिरफ्तार कर पेश करने के आदेश दिए। साथ ही एंडरसन के प्रत्यार्पण के लिए केंद्र सरकार को निर्देश जारी किए, मगर जून 2004 में यूएस स्टेट एंड जस्टिस डिपार्टमेंट ने एंडरसन के प्रत्यार्पण की भारत की मांग खारिज कर दी।
भोपाल की सीजेएम अदालत ने सात जून 2010 को सात भारतीय अधिकारियों को दो-दो वर्ष की सजा सुनाई और जमानत पर रिहा कर दिया। एंडरसन के प्रत्यार्पण को लेकर यूएस स्टेट एंड जस्टिस डिपार्टमेंट के निर्णय का मामला अभी भी सीजेएम अदालत में विचाराधीन है। इस बीच खबर आई कि 29 सितंबर, 2014 को फ्लोरिडा के एक नर्सिग होम में एंडरसन की मौत हो गई।
राज्य सरकार ने एंडरसन की रिहाई और दिल्ली के लिए विशेष विमान उपलब्ध कराने की जांच के लिए एक सदस्यीय कोचर आयोग का गठन वर्ष 2010 में किया था। इस आयोग के सामने तत्कालीन पुलिस अधीक्षक स्वराज पुरी ने माना कि एंडरसन की गिरफ्तारी के लिए ‘लिखित’ आदेश दिया गया था, मगर रिहाई का आदेश ‘मौखिक’ था। यह आदेश वायरलेस सेट पर दिया गया था।
अब तो कोचर आयोग की रिपोर्ट ही इस बात का खुलासा करेगी कि एंडरसन की ‘शाही अंदाज में’ की गई रिहाई में किस-किस की भूमिका थी। आम तौर पर उसकी रिहाई में तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह की भूमिका व तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी की सहमति मानी जाती है।
भोपाल ग्रुप फॉर इंफॉर्मेशन एंड एक्शन की सदस्य रचना ढींगरा का कहना है कि भारत सरकार एंडरसन का प्रत्यार्पण कराने में तो कामयाब नहीं रही, लिहाजा अब यूनियन कार्बाइड के सचिव जॉन मैकडोनाल्ड का प्रत्यर्पण होना चाहिए। साथ ही अमेरिकी कंपनी डाओ केमिकल्स जब भोपाल गैस त्रासदी की जिम्मेदारी स्वीकार कर ले, तभी अमेरिका को भारत में पूंजीनिवेश की अनुमति दी जाना चाहिए।
भोपाल गैस पीड़ित महिला उद्योग संगठन के संयोजक अब्दुल जब्बार कहते हैं, “सरकारों की दृढ़ इच्छाशक्ति के अभाव में एंडरसन का प्रत्यपर्ण नहीं हो पाया। भोपाल वासियों के साथ तो तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह ने विश्वासघात किया था, उसके बाद वर्तमान मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी वही कर रहे हैं। कोई फर्क ही नहीं दिखता।”
भोपाल गैस त्रासदी की 30वीं बरसी पर एक बार फिर लोगों के जेहन में एंडरसन की यादें ताजा हो गई हैं। हजारों लोग अपना हक न मिलने से दुखी हैं। उन्हें अफसोस इस बात का भी है कि तीन दशकों में कितनी सरकारें आईं, मगर कोई सरकार यह भी पता नहीं लगा पाई कि वारेन एंडरसन की रिहाई किसके कहने पर हुई थी।
उत्तर प्रदेश
जन महत्व की परियोजनाओं में समयबद्धता-गुणवत्ता से समझौता नहीं, गड़बड़ी मिली तो जेई से लेकर चीफ इंजीनियर तक सब की जवाबदेही तय होगी: मुख्यमंत्री
● मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी ने सोमवार को लोक निर्माण विभाग की विभिन्न परियोजनाओं की अद्यतन स्थिति की समीक्षा की और निर्माणकार्यों की समयबद्धता और गुणवत्ता सुनिश्चित करते हुए विभिन्न आवश्यक दिशा-निर्देश दिए। *बैठक में मुख्यमंत्री जी द्वारा दिए गए प्रमुख दिशा-निर्देश:- *
● सड़क निर्माण की परियोजना तैयार करते समय स्थानीय आवश्यकताओं को ध्यान में रखें। प्रत्येक परियोजना के लिए समयबद्धता और गुणवत्ता अनिवार्य शर्त है, इससे समझौता नहीं किया जा सकता। गड़बड़ी पर जेई से लेकर चीफ इंजीनियर तक सबकी जवाबदेही तय होगी। एग्रीमेंट के नियमों का उल्लंघन होगा तो कांट्रेक्टर/फर्म को ब्लैकलिस्ट होगा और कठोर कार्रवाई भी होगी। पेटी कॉन्ट्रेक्टर/सबलेट की व्यवस्था स्वीकार नहीं की जानी चाहिए।
● DPR को अंतिम रूप देने के साथ ही कार्य प्रारंभ करने और समाप्त होने की तिथि सुनिश्चित कर ली जानी चाहिए और फिर इसका कड़ाई से अनुपालन किया जाए। बजट की कोई कमी नहीं होने दी जाएगी। पूर्ण हो चुके कार्यों की थर्ड पार्टी ऑडिट भी कराई जाए।
● सड़क और सेतु हो अथवा आमजन से जुड़ी अन्य निर्माण परियोजनाएं, स्वीकृति देने से पहले उसकी लोक महत्ता का आंकलन जरूर किया जाए। विकास में संतुलन सबसे आवश्यक है। पहले आवश्यकता की परख करें, प्राथमिकता तय करें, फिर मेरिट के आधार पर किसी सड़क अथवा सेतु निर्माण की स्वीकृति दें। विकास कार्यों का लाभ सभी 75 जनपदों को मिले।
● दीन दयाल उपाध्याय तहसील/ब्लाक मुख्यालय योजना अंतर्गत प्रदेश के समस्त तहसील/ब्लॉक मुख्यालय को जिला मुख्यालय से न्यूनतम दो लेन मार्गों से जोड़े जाने का कार्य तेजी से पूरा किया जाए। एक भी तहसील-एक भी ब्लॉक इससे अछूता न रहे।
● प्रदेश के अंतरराज्यीय तथा अंतरराष्ट्रीय सीमा पर भव्य ‘मैत्री द्वार’ बनाने का कार्य तेजी के साथ पूरा कराएं। जहां भूमि की अनुपलब्धता हो, तत्काल स्थानीय प्रशासन से संपर्क करें। द्वार सीमा पर ही बनाए जाएं। यह आकर्षक हों, यहां प्रकाश व्यवस्था भी अच्छी हो। अब तक 96 मार्गों पर प्रवेश द्वार पूर्ण/निर्माणाधीन हैं। अवशेष मार्गों पर प्रवेश द्वार निर्माण की कार्यवाही यथाशीघ्र पूरी कर ली जाए।
● गन्ना विकास एवं चीनी उद्योग विभाग की सड़कों का निर्माण अब लोक निर्माण विभाग द्वारा ही किया जा रहा है। यह किसानों-व्यापारियों के हित से जुड़ा प्रकरण है, इसे प्राथमिकता दें। यहां गड्ढे नहीं होने चाहिए।अभी लगभग 6000 किमी सड़कों का पुनर्निर्माण/चौड़ीकरण/सुदृढ़ीकरण किया जाना है। इन्हें एफडीआर तकनीक से बनाया जाना चाहिए। इसके लिए बजट की कमी नहीं होने दी जाएगी।
● धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण मार्गों पर अच्छी सड़कें हों, पर्यटकों/श्रद्धालुओं को आवागमन में सुविधा हो, सड़कों के निर्माण/चौड़ीकरण किये जा रहे हैं। इसमें प्रत्येक जिले के सिख, बौद्ध, जैन, वाल्मीकि, रविदासी, कबीरपंथी सहित सभी पंथों/ संप्रदायों के धार्मिक/ऐतिहासिक/पौराणिक महत्व के स्थलों को जोड़ा जाए। मार्ग का चयन मानक के अनुरूप ही हो। जनप्रतिनिधियों से प्राप्त प्रस्ताव के आधार पर धर्मार्थ कार्य विभाग और संबंधित जिलाधिकारी के सहयोग से इसे समय से पूरा कराएं।
● सड़क निर्माण/चौड़ीकरण/सुदृढ़ीकरण के कार्यों में पर्यावरण संरक्षण की भावना का पूरा ध्यान रखा जाए। कहीं भी अनावश्यक वृक्ष नहीं कटने चाहिए। सड़क निर्माण की कार्ययोजना में मार्ग के बीच आने वाले वृक्षों के संरक्षण को अनिवार्य रूप से सम्मिलित करें।
● देवरिया-बरहज मार्ग का सुदृढ़ीकरण किया जाना आवश्यक है। इस संबंध में आवश्यक प्रस्ताव तैयार कर प्रस्तुत करें।
● औद्योगिक विकास विभाग, एमएसएमई एवं जैव ऊर्जा विभाग द्वारा डिफेंस कॉरिडोर, औद्योगिक लॉजिस्टिक्स पार्क, औद्योगिक क्षेत्र और प्लेज पार्क योजना जैसी बड़े महत्व की योजनाओं पर कार्य किया जा रहा है। इन औद्योगिक क्षेत्रों तक आने-जाने के लिए चयनित मार्गों को यथासंभव फोर लेन मार्ग से जोड़ा जाना चाहिए।
● ऐसे राज्य मार्ग जो वर्तमान में दो-लेन एवं दो-लेन से कम चौड़े हैं उन्हें लोक महत्ता के अनुरूप न्यूनतम दो-लेन विद पेव्ड शोल्डर की चौड़ाई में निर्माण किया जाना चाहिए।
● सभी विधानसभाओं के प्रमुख जिला मार्गों को न्यूनतम दो-लेन (7 मीटर) एवं अन्य जिला मार्गों को न्यूनतम डेढ़-लेन (5.50 मीटर) चौडाई में निर्माण कराया जाए। जनप्रतिनिधियों से प्रस्ताव लें, प्राथमिकता तय करें और कार्य प्रारंभ कराएं।
● क्षतिग्रस्त सेतु, जनता द्वारा निर्मित अस्थाई पुल, संकरे पुल, बाढ़ के कारण प्रायः क्षतिग्रस्त होने वाले मार्गों पर पुल तथा सार्वजनिक, धार्मिक एवं पर्यटन की दृष्टि से महत्वपूर्ण मार्गों पर सेतु निर्माण को प्राथमिकता में रखें। हर विधानसभा में जरूरत के अनुसार 03 लघु सेतुओं के निर्माण की कार्ययोजना तैयार करें।
● जहां भी दीर्घ सेतु क्षतिग्रस्त हैं, उन्हें तत्काल ठीक कराया जाए। सभी जिलों से प्रस्ताव लें, जहां दीर्घ सेतु की आवश्यकता हो, कार्ययोजना में सम्मिलित करें। शहरी क्षेत्रों में क्षतिग्रस्त/संकरे सेतुओं के स्थान पर नये सेतुओं का निर्माण कराया जाना आवश्यक है। इसका लाभ सभी जिलों को मिलना चाहिए।
● रेल ओवरब्रिज/रेल अंडरब्रिज से जुड़े प्रस्तावों को तत्काल भारत सरकार को भेजें। राज्य सरकार द्वारा इसमें हर जरूरी सहयोग किया जाए।
● शहरों की घनी आबादी को जाम से मुक्ति दिलाने हेतु बाईपास रिंगरोड/फ्लाईओवर निर्माण कराया जाना चाहिए। निर्माण कार्य का प्रस्ताव शहर/कस्बे की आबादी एवं प्राथमिकता के आधार पर तैयार किया जाए।
● वर्ष 2011 की जनगणना के आधार पर ऐसी बसावट/ग्राम जिसकी आबादी 250 से अधिक हो तथा मार्ग की लम्बाई 1.00 किमी या उससे अधिक हो, उन्हें एकल कनेक्टिीविटी प्रदान किये जाने हेतु संपर्क मार्ग का निर्माण कराया जाए। इसी प्रकार, दो ग्रामों/बसावों को जिनकी आबादी 250 से अधिक है, को इंटर-कनेक्टिविटी प्रदान किये जाने हेतु सम्पर्क मार्ग का निर्माण भी हो। इसके लिए सर्वे कराएं, आवश्यकता को परखें, फिर निर्णय लें।
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