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प्रादेशिक

राजस्थान में महिला सशक्तिकरण का प्रतीक नीला रंग

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अलवर (राजस्थान) | राजस्थान में नीला रंग महिला सशक्तिकरण का प्रतीक है। यह यहां महिलाओं को मैला ढोने की जिंदगी से बाहर निकलने का संकेत है। 40 वर्षीय संतोष अटवाल, बन्नो सैनी (33) और इन जैसी कई अन्य दलित महिलाएं अपने पूर्वजों के नक्शे कदम पर चलते हुए मैला ढोने का काम करती थीं। सुबह सूखी मिट्टी ले जाकर, शौचालयों की सफाई करना, नालियां और गटर साफ करना और बदले में समाजिक तिरस्कार और उपेक्षा का सामना करना। इनकी जिंदगी इसी के इर्द-गिर्द घूमकर रह जाती थी।

हालांकि, एक गैर सरकारी संगठन की विशेष पहल से यहां के बाल्मीकि समुदाय की महिलाओं को नया जीवन मिला। इस संगठन की मदद के साथ आज ये महिलाएं खाद्य वस्तुएं तैयार करने के काम में व्यस्त हैं। उनके लिए सिर्फ जात-पात के बंधन ही नहीं टूटे हैं, बल्कि वे समाज की नजरों में अपने लिए सम्मान का भाव लाने में भी सफल रही हैं। इसका श्रेय एनजीओ ‘सुलभ इंटरनेशनल’ को जाता है। यह एनजीओ प्रशिक्षण के जरिए मानवाधिकारों, पर्यावरणीय स्वच्छता और सामाजिक सुधारों को बढ़ावा देता है। इस केंद्र की पोशाक नीली साड़ी है। 105 महिलाओं का समूह नीली साड़ी पहने हर सुबह छह बजे ‘नई दिशा’ पहुंच जाता है। इस शहर में ‘सुलभ इंटरनेशनल’ द्वारा शुरू किया गया नई दिशा एक व्यावसायिक प्रशिक्षण केंद्र है।

इस पहल के तहत, ये पापड़, नूडल्स, अचार और कई अन्य घरेलू खाद्य सामान बनाने का काम करती हैं। इनके द्वारा तैयार किए गए उत्पाद दिल्ली, चंडीगढ़ और अहमदाबाद में भी उपलब्ध हैं। सैनी ने बताया, “जब हमने 2003 में यहां काम करना शुरू किया तो इस तरह की सफलता की हम उम्मीद नहीं कर सकते थे। स्वयं की उच्च जाति के लोगों से तुलना करना हमारे लिए असंभव था। लेकिन सुलभ ने यह सब आसान बनाया।” सैनी ने कहा, “हमारे समुदाय की अधिक से अधिक महिलाएं हमसे जुड़ना चाहती हैं, ताकि ये भी यहां काम कर सशक्त बन सकें।” सैनी ने केंद्र पर अंग्रेजी भी बोलना सीखा।

पहले की स्थिति का उल्लेख करते हुए वह कहती हैं, “तिरस्कार से बचने के लिए हमें घूंघट में छिपकर रहना पड़ता था।” ‘नई दिशा’ के प्रभारी राजेंद्र सिंह ने कहा कि केंद्र पर महिलाओं को कढ़ाई, दुल्हन श्रृंगार सहित मेकअप, और साड़ी व जूट बैग बनाने का भी प्रशिक्षण दिया जाता है। सिंह ने आईएएनएस को बताया, “इस प्रशिक्षण केंद्र में दाखिला लेने के लिए महिलाओं को तैयार करना आसान काम नहीं था। हालांकि ये महिलाएं अपने ऊपर लगे कलंक को धोना चाहती थीं। घर में बने नूडल्स, कपास की गेंदे जैसे कस्बे में नहीं मिलने वाले पदार्थो को उन्हें उपलब्ध कराया गया। उन्होंने बताया कि शुरुआत में लोगों ने इस पहल का विरोध किया, लेकिन बाद में इसे स्वीकार कर लिया। इससे जुड़ने के बाद महिलाओं की जिंदगी सिर्फ सामाजिक रूप से ही नहीं, बल्कि आर्थिक रूप से भी बदल गई है।

नेशनल

हिंदू राष्ट्र बनाना है तो हर भेद को मिटाकर हर सनातनी को गले से लगाना होगा -“पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री”

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राजस्थान। राजस्थान के भीलवाड़ा में बुधवार (6 नवंबर) से पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री की पांच दिवसीय हनुमंत कथा शुरू हुई. यहां बागेश्वर सरकार अपने मुखारविंद से भक्तों को धर्म और आध्यात्मिकता का संदेश देंगे. छोटी हरणी हनुमान टेकरी स्थित काठिया बाबा आश्रम के महंत बनवारीशरण काठियाबाबा के सानिध्य में तेरापंथनगर के पास कुमुद विहार विस्तार में आरसीएम ग्राउंड में यह कथा हो रही है.

इस दौरान बागेश्वर धाम सरकार ने भी मेवाड़ की पावन माटी को प्रणाम करते हुए सबका अभिवादन स्वीकार किया. हनुमंत कथा कहते हुए बागेश्वर धाम सरकार धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री महाराज ने हिंदू एकता और सनातन जागृति का संदेश दिया.

उन्होंने कहा, “हनुमानजी महाराज की तरह भेदभाव रहित होकर सबको श्रीरामजी से जोड़ने के कार्य से प्रेरणा लेते हुए सनातन संस्कृति से छुआछूत जातपात के भेदभाव को मिटाना है. अगर हिंदू राष्ट्र बनाना है तो हर भेद को मिटाकर हर सनातनी को गले से लगाना होगा. व्यास पीठ पर आरती करने का हक सभी को है. इसी के तहत भीलवाड़ा शहर के स्वच्छताकर्मी गुरुवार को व्यास पीठ की आरती करेंगे.”

हिंदू सोया हुआ है

बागेश्वर धाम के पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री ने कहा कि वर्तमान समय में हिंदू की बुरी दशा है। कुंभकर्ण के बाद कोई सोया है तो वह हिंदू सोया है। अब हिंदुओं को जागना होगा और घर से बाहर निकलना होगा। धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री ने कहा कि हमारे तन में जब तक प्राण रहेंगे तब तक हम हिंदुओं के लिए बोलेंगे, हिंदुओं के लिए लड़ेंगे। अब हमने विचार कर लिया है कि मंच से हिंदू राष्ट्र नहीं बनेगा। उन्होंने कहा कि हमें ना तो नेता बनना है ना किसी पार्टी को वोट दिलाना है। हम बजरंगबली की पार्टी में है, जिसका नारा भी है- जो राम का नहीं वह किसी काम का नहीं।

 

 

 

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