Connect with us
https://aajkikhabar.com/wp-content/uploads/2020/12/Digital-Strip-Ad-1.jpg

मुख्य समाचार

राष्ट्रपति पद के लिए दलित उम्मीदवार : प्रतीकवाद जीता

Published

on

Loading

इस मुकाबले का नतीजा सबको पता है। भारतीय जनता पार्टी ने राष्ट्रपति पद के लिए अपने उम्मीदवार रामनाथ कोविंद के लिए जो समर्थन जुटाया है, उसके जरिए वह आसानी से अपनी मंजिल राष्ट्रपति भवन पहुंच जाएंगे।

भाजपा ने एक दलित को राष्ट्रपति पद के लिए उम्मीदवार चुना, जो दलित छात्र रोहित वेमुला द्वारा आत्महत्या किए जाने के बाद से ही दलित समुदाय और पार्टी के बीच बढ़ती खाई को लेकर उनकी चिंता और उस दरार को भरने की उनकी कोशिश का द्योतक है।

उत्तर प्रदेश के सहारनपुर में दलितों और ऊंची जाति वाले ठाकुरों के बीच हाल ही हुए संघर्ष (जहां एक ठाकुर मुख्यमंत्री है), इससे पहले गुजरात के उना में मृत गाय की खाल उतारने को लेकर गौरक्षकों द्वारा एक दलित की पीट-पीटकर हत्या ने भी हिंदुत्व ब्रिगेड से बनी दलितों की दूरी को और बढ़ा दिया।

इसलिए भाजपा के पास सर्वणों की पैराकार होने के आरोपों को क्षणिक तौर पर दूर करने के लिए एक दलित को राष्ट्रपति उम्मीदवार चुनने के अलावा और कोई विकल्प नहीं था।

लेकिन भाजपा को इस प्रतीकवाद से कोई लाभ होगा, इसमें संशय है क्योंकि बेहद कम ही दलित मानेंगे कि निचली जातियों को लेकर भगवाधारियों के गहरे पूर्वाग्रह में कोई जादुई बदलाव आएगा।

हालांकि कांग्रेस ने भी भाजपा के इस प्रतीकवाद का जवाब प्रतीकवाद से ही देते हुए कोविंद के मुकाबले में एक दलित चेहरा पूर्व लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार को ही उतारा है। अधिकांश विश्लेषक उनके राष्ट्रपति चुनाव जीतने की असंभावना को देखते हुए उन्हें ‘बलि के बकरे’ के रूप में देख रहे हैं।

मीरा बिहार की हैं और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी यही कह रहे हैं कि मीरा को हराने के लिए मैदान में उतारा गया है। तो क्या कोविंद के मुकाबले किसी को खड़ा नहीं किया जाना चाहिए? क्या हार के डर से विपक्ष अपनी भूमिका न निभाए? क्या इस तरह लोकतंत्र बचेगा? जब भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने राष्ट्रपति पद के लिए सुयोग्य व्यक्ति चुनने में आम सहमति बनाना जरूरी नहीं समझा, विपक्षी दलों से राय-मशविरा नहीं किया, तब विपक्ष ने मीरा कुमार को मुकाबले में उतारकर अपना कर्तव्य निभाया है। विपक्ष इस चुनाव को विचारधारा की लड़ाई कह रहा है। नीतीश को अब शायद किसी विचारधारा से लेना-देना नहीं है। वह अब नरेंद्र मोदी से कोई पंगा लेना नहीं चाहते, इसलिए उनका सुर बदल गया है तो इसमें किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए। तीन साल पहले तक उनकी पार्टी का राजग से गठबंधन तो था ही। अब फिर से वह उसी दिशा में बढ़ते नजर आ रहे हैं।

राष्ट्रपति चुनाव का परिणाम भले ही स्पष्ट हो, लेकिन मीरा कुमार बहुसांस्कृतिक भारत की अवधारणा की प्रतीक हैं और यही मौका है कि वह अपने प्रतिद्वंद्वी उम्मीदवार की ‘हिंदू राष्ट्र की अवधारणा’ यानी वैचारिक अंतर को देश के जनमानस के समक्ष और स्पष्ट कर पाएंगी। देश को समझा पाएंगी कि राष्ट्रपति पद पर जो व्यक्ति बैठने जा रहा है, उसका ताल्लुक उस संगठन से है, जिसकी विचारधारा राष्ट्रपिता की हत्या के लिए जिम्मेदार मानी जाती है। जिस पार्टी के अध्यक्ष ने कोविंद की उम्मीदवारी की घोषणा की, वह हाल ही में महात्मा गांधी को ‘चतुर बनिया’ कह उनका उपहास उड़ा चुके हैं।

अगर भाजपा उम्मीदवार कोविंद सचमुच यह मानते हैं कि मुस्लिम और ईसाई भारत के धर्म नहीं हैं, तो ऐसे में वह एक नए विवाद को जन्म दे देंगे, जो भाजपा को ऐसे समय में नागवार गुजरेगा जो देश के विविधता वाले सांस्कृतिक परिदृश्य के बीच में से अपनी राह तलाशने की भरसक कोशिश में लगी है। लोगों को क्या खाना चाहिए, इसे लेकर पार्टी का विरोधाभासी रवैया पहले ही जगजाहिर हो चुका है।

विचारधाराओं की लड़ाई के अलावा, इस लड़ाई में यह भी स्पष्ट है कि इस राष्ट्रपति चुनाव के लिए जाति एक जरूरी विषय है, जो कि देश की उस बुनियादी परंपरा से अलग है, जब एक व्यक्ति को उसकी योग्यता से नहीं, बल्कि उसके जन्म के आधार पर परखा जाता रहा है।

भाजपा का दिल जीतने में कोविंद की जाति के अलावा उनकी शख्सियत की भी बड़ी भूमिका है। उनका सौम्य और शांत व्यक्तित्व नरेंद्र मोदी शैली की सरकार के लिहाज से बिल्कुल आदर्श पसंद है, जहां केवल एक व्यक्ति यानी प्रधानमंत्री ही सबसे ऊपर है। ऐसी स्थिति में स्पष्ट तौर पर विनम्र कोविंद इस उम्मीदवारी के लिए सबसे उपयुक्त हैं, जिन्हें मुख्यमंत्री नीतीश कुमार बिहार का आदर्श राज्यपाल मानते हैं।

यह तो केवल समय ही बता सकता है कि कोविंद जिस प्रकार बिहार के आदर्श राज्यपाल माने गए, उसी प्रकार क्या वह आदर्श राष्ट्रपति भी साबित होंगे?

वर्ष 2002 में राष्ट्रपति पद के लिए भाजपा की पसंद रहे ए.पी.जे. अब्दुल कलाम ने एक बार लाभ का पद विधेयक मंत्रिमंडल को वापस भेज दिया था, जो कि राष्ट्रपति का अधिकार होता है और 2005 में बिहार विधानसभा को भंग करने के प्रस्ताव पर हस्ताक्षर करने के लिए सार्वजनिक तौर पर खेद प्रकट किया था। ऐसे में कोविंद को भी इन ऊंचे मानकों पर खरा उतरना होगा।

भारत में ज्ञानी जैल सिंह और फखरुद्दीन अली अहमद जैसे राष्ट्रपति हुए हैं। जैल सिंह ने एक बार यहां तक कहा था कि अगर उनकी नेता इंदिरा गांधी उन्हें कहें तो वह फर्श तक साफ कर सकते हैं और फखरुद्दीन अली अहमद ने 25 जून, 1975 की सुबह लोकतंत्र को कुचलने वाले आपातकाल की घोषणा पर बिना यह पूछे हस्ताक्षर कर दिए थे कि उसे कैबिनेट से मंजूरी मिली है या नहीं।

नए राष्ट्रपति को साबित करना होगा कि उनकी निष्ठा केवल संविधान के प्रति है। वह संविधान, जिसे प्रधानमंत्री ‘एक पवित्र किताब’ की संज्ञा दे चुके हैं।

Continue Reading

नेशनल

क्या रद्द होगी राहुल गांधी की भारतीय नागरिकता ?

Published

on

Loading

नई दिल्ली। राहुल गांधी के पास ब्रिटेन की भी नागरिकता है और इसलिए उनकी भारतीय नागरिकता रद्द कर दी जानी चाहिए.’ एस विग्नेश शिशिर ने यह दावा करते हुए एक जनहित याचिका दायर की है, जिस पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने केंद्रीय गृह मंत्रालय को फैसला करने का निर्देश दिया. इस दौरान केंद्र सरकार की तरफ से पेश डिप्टी सॉलिसिटर जनरल ने कहा, ‘याचिकाकर्ता की तरफ से कुछ दस्तावेज गृह मंत्रालय को मिले हैं और वह इस पर विचार कर रहा है कि राहुल गांधी की नागरिकता रद्द की जानी चाहिए या नहीं.’

जस्टिस एआर मसूदी और सुभाष विद्यार्थी की डिविजन बेंच ने अपर सॉलिसिटर जनरल एसबी पांडेय को निर्देश दिया कि वो तीन हफ्ते के अंदर इस बारे में गृह मंत्रालय से निर्देश प्राप्त करें और अगली तारीख पर इसका जवाब पेश करें. इस मामले की सुनवाई अब 19 दिसबंर को रखी गई है.

मामले की पूरी जानकारी

राहुल गांधी की नागरिकता से जुड़ा विवाद तब शुरू हुआ जब लखनऊ हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की गई, जिसमें आरोप लगाया गया कि राहुल गांधी के पास ब्रिटिश नागरिकता है। याचिकाकर्ता एस विग्नेश शिशिर ने दावा किया कि उन्होंने गहन जांच के बाद यह निष्कर्ष निकाला है कि राहुल गांधी के पास यूके की नागरिकता है। शिशिर ने यह भी कहा कि उनके पास कुछ गोपनीय जानकारी है, जिससे यह साबित होता है कि राहुल गांधी का विदेशी नागरिकता प्राप्त करना कानून के तहत भारतीय नागरिकता को रद्द करने का कारण हो सकता है।

पहले इस मामले में शिशिर की याचिका को जुलाई 2024 में खारिज कर दिया गया था, लेकिन इसके बाद शिशिर ने केंद्रीय गृह मंत्रालय के पास शिकायत की थी, जिसमें कोई एक्शन नहीं लिया गया। फिर से इस मामले को अदालत में लाया गया और अब गृह मंत्रालय से राहुल गांधी की नागरिकता पर स्पष्टीकरण मांगा गया है।

Continue Reading

Trending