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शिवपाल के सामने सीमित विकल्प

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शिवपाल यादव ने अंतत: स्वीकार किया कि वह समाजवादी पार्टी (सपा) केवल विधयक हैं। इस हकीकत को समझने में उन्होंने बहुत देर लगाई। आज वह सपा और सैफई परिवार दोनों में बेगाने हो गए हैं।

पार्टी की कार्यकारिणी घोषित होने के साथ ही उनके लिए भविष्य की संभावना भी समाप्त हो गई है। इसमें रामगोपाल यादव का कद बढ़ा है। इसी के साथ शिवपाल को संदेश भी दे दिया गया। सपा अब वह ऐसे विधायक मात्र रह गए हैं, जिनके साथ अधिकृत रूप से कोई नहीं है। अब केवल व्यक्तिगत संबंधों के आधार पर उनके साथ कुछ लोग हैं। लेकिन सपा में इन लोगों के लिए भी सम्मानजनक स्थान नही बचा है।

मुलायम सिंह यादव खुद रामगोपाल से मिलने गए। कुछ समय पहले इन दोनों की तल्खी खुल कर सामने आ गई थी।

मुलाययम ने रामगोपाल के प्रति कठोरता दिखाने में कसर नहीं छोड़ी थी। दूसरी तरफ रामगोपाल भी हिसाब बराबर करने में जुटे थे। सपा को तकनीकी रूप में अखिलेश की बनाने और फिर राष्ट्रीय अध्यक्ष पद से उन्हें बेदखल करने की रणनीति उन्होने बनाई थी। इस जंग में चाहे अनचाहे मुलाययम बहुत पीछे छूट गए थे। फिर वह समय भी आया जब वह खुद सपा के लिए बेगाने होने लगे।

जब दोनों तरफ के सेनाएं मोर्चाबंदी पर थीं, तब मुलायम के साथ केवल अमर सिंह और शिवपाल ही दिख रहे थे। अमर सिंह ने जल्दी ही किनारा कर लिया। यह ऐलान कर दिया कि अब वह मुलायमवादी नहीं रहे। शिवपाल इसके बाद भी उम्मीद बनाए रहे। उन्हें लग रहा था कि मुलाययम उनका साथ देंगे। कुछ नहीं तो सेकुलर मोर्चा बना लेंगे। कुछ दिन पहले यह योजना भी बन चुकी थी।

यह तय हुआ कि मुलायम पत्रकार वार्ता में नई पार्टी का ऐलान करेंगे। लेकिन मुलायम ने वह दूसरा पेज पढ़ने से ही इनकार कर दिया, जिसमें अलग राह बनाने की बात थी। जाहिर है, शिवपाल अंतिम समय तक गलतफहमी में रहे। जबकि मुलायम के मन में कोई दुविधा नहीं थी। वह मान चुके थे कि सपा अब अखिलेश यादव की हो चुकी है। राजनीति में उनके लिए अब कोई खास भूमिका नहीं बची है।

कई लोग मानते हैं कि सपा में जिस प्रकार नेतृत्व का हस्तांतरण हुआ, वह मुलायम की ही योजना थी। परिवारिक कलह, दबाब से बचने को उन्होंने यह रणनीति बनाई थी। जिन परिजनों का उन पर दबाब था, उनके लिए जबाब मिल गया था। मुलायम अब यह कह सकते थे कि जब पूरी पार्टी अखिलेश ले गए तो वह क्या कर सकते हैं।

वस्तुत: यहां दो तथ्यों पर विचार करना चाहिए। इन दोनों को शिवपाल ने समझने का प्रयास नहीं किया। एक परिवार आधारित दलों में उत्तराधिकार का तरीका। इसमें मुखिया का मोह शामिल रहता है। दूसरा मुखिया की उम्र। मोह और उम्र के आधार पर मुलायम के रुख को समझने में कोई कठिनाई नहीं थी।

ऐसा नहीं था कि मुलायम को उत्तराधिकार का फैसला कुछ समय पहले करना था। वस्तुत: यह तभी तय हो चुका था जब अखिलेश को पहली बार कन्नौज से लोकसभा चुनाव लड़ाने का निर्णय हुआ था। मुलायम चाहे जितना कहें कि सपा को मजबूत बनाने में शिवपाल ने बहुत मेहनत की लेकिन उत्तराधिकार बड़े बेटे के लिए ही था।

परिवार आधरित पार्टियों के उत्तराधिकार का अंदाज भी राजतंत्रीय होता है। संजय गांधी के बाद इंदिरा गांधी ने राजीव गांधी को उत्तराधिकार सौपने का निर्णय किया था। इस कार्य को निर्विघ्न बनाने के लिए मेनका गांधी को दरकिनार किया गया। इंदिरा गांधी को उनकी राजनीतिक महत्वकांक्षा पसंद नहीं थी। शिवसेना संस्थापक बाल ठाकरे के अपने भतीजे राज ठाकरे पर बहुत विश्वास था। उन्हें वह अपने साथ रखते थे लेकिन जब उत्तराधिकार तय करने का समय आया तब राज ठाकरे को दरकिनार कर दिया गया। उद्धव ठाकरे की ताजपोशी की गई।

2012 के विधानसभा चुनाव में सपा को बहुमत मिला था। इस अवसर पर भी मुलायम सिंह यादव ने उत्तराधिकार को मजबूती के साथ स्थापित किया था। बताया जाता है कि शिवपाल और आजम खान इसके लिए सहजता से तैयार नहीं थे, लेकिन मुलायम अपने फैसले पर पुनर्विचार हेतु भी तैयार नहीं हुए। अंतत: आजम और शिवपाल ने कैबिनेट मंत्री बन जाने में ही भलाई समझी थी।

कुछ समय बाद मुलायम ने अखिलेश को प्रदेश अध्यक्ष भी बना दिया था। इसके बाद संशय की कोई गुंजाइश ही नहीं बची थी। शिवपाल न जाने किन ख्यालो में थे। दूसरी बात उम्र की भी होती है। कभी नई पार्टी बनाने और उसे प्रदेश की सत्ता में पहुचने का कार्य मुलायम ने किया था । इसके लिए उन्होंने बहुत मेहनत की थी। लेकिन उम्र के इस पड़ाव पर पुन: उनसे इसकी उम्मीद करना बेमानी था। वह भी उस पुत्र को चुनौती देने के लिए जिसे उन्होंने अपने सामने उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाया।

जाहिर है, शिवपाल गफलत में थे। अब सच्चाई उनके सामने है। उनके सामने विकल्प बहुत सीमित है। सपा में उन्हें साफ संदेश मिल चुका है। सेकुलर मोर्चे के विचार में भी कोई दम नहीं बची है। अन्य छोटे दलों की भी प्रदेश में फिलहाल कोई संभावना नहीं है। ऐसे में शिवपाल के अगले कदम का इंतजार करना होगा। सपा में अपनी वर्तमान स्थिति को ज्यादा समय तक मंजूर करना नामुमकिन भले न हो, कठिन अवश्य है। (आईएएनएस/आईपीएन)

(ये लेखक के निजी विचार हैं)

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महाराष्ट्र के वाशिम में बोले सीएम योगी- ‘बंटिए मत, बंटे थे तो कटे थे’, एक हैं तो सेफ हैं

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वाशिम। यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ ने महाराष्ट्र के वाशिम में एक जनसभा को संबोधित किया। यहां उन्होंने एक बार अपना पुराना बयान दोहराया। सीएम योगी ने कहा कि बंटिए मत, क्योंकि जब भी बंटे थे तो कटे थे। एक हैं तो नेक हैं, एक हैं तो सेफ हैं। अपनी ताकत का एहसास करवाइए, जातियों में मत बंटना। इस दौरान सीएम योगी ने अयोध्या, काशी और मथुरा का जिक्र किया। उन्होंने कहा कि अयोध्या में अभी भगवान राम ने दिवाली का आनंद लिया है। पूरी दुनिया ने देखा कैसे अयोध्या दीपों से जगमगा रही थी। ये तो शुरूआत है, केवल अयोध्या ही नहीं, अब तो हम काशी और मथुरा की तरफ भी बढ़ चुके हैं।

सीएम योगी ने आगे कहा कि वाशिम विधानसभा क्षेत्र में उमड़ा यह अपार जन सिंधु महाराष्ट्र में भाजपा की विजय गाथा लिखने जा रहा है। उन्होंने कहा कि छत्रपति शिवाजी महाराज ने जिस दुष्ट अफजल को मार गिराया था उसके नाम पर औरंगाबाद का नाम होना, याद करना इसको हटना ही चाहिए था, इसे संभाजीनगर के रूप में पहचान मिलनी ही थी। छत्रपति शिवाजी महाराज का संघर्ष हो या संभाजी महाराज का, हमें नई प्रेरणा देता है। छत्रपति शिवाजी महाराज हम सबको एकजुट करके लेकर गए थे। हर भारतवासी को अपने साथ जोड़े थे। अपनी सेना का हिस्सा बनाए थे।

उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र चुनाव में दो महा गठबंधन चुनाव लड़ रहे हैं। एक तरफ महायुति गठबंधन है और दूसरी और महा अघाड़ी के रूप में ‘महाअनाड़ी’ गठबंधन है। मैं अनाड़ी इसलिए कहता हूं जिसे राष्ट्र की चिंता नहीं हो, वह अनाड़ी ही होगा। एक समय था जब आतंकवादी देश में घुसकर विस्फोट करते थे, आज पीएम मोदी के नेतृत्व में कोई सीमा पर अतिक्रमण करता है तो उसका राम नाम सत्य हो जाता है। सीएम योगी ने वाशिम में शिवाजी बनाम औरंगजेब का वैचारिक मुद्दा उठाकर हिन्दुत्व को तेज धार देने वाली स्पीच दी।

योगी ने कहा कि जिस तरह से वाशिम विधानसभा क्षेत्र में लोग उमड़े हैं, यह महाराष्ट्र में भाजपा की विजय गाथा लिखने जा रहा है। उन्होंने कहा कि सत्ताएं तो आएंगी-जाएंगी, लेकिन हमारा ‘भारत’ रहना चाहिए और ‘भारत’ दुनिया की सबसे बड़ी ताकत बनना चाहिए। विपक्षी कहते थे राम हुए नहीं, कृष्ण हुए नहीं, आज भले ये चुनाव में कह रहे हो लेकिन इन पर भरोसा मत करिएगा। राम हमारी रग-रग में हैं, कण-कण में हैं। इसके अलावा सीएम योगी ने आगे कहा कि बंटिए मत! क्योंकि जब भी बंटे थे तो कटे थे। एक हैं तो नेक हैं, एक हैं तो सेफ हैं।

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