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आध्यात्म

‘सही अनुवाद वही जो दिल को छू ले’

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नई दिल्ली, 23 मार्च (आईएएनएस)| हिदी अनुवाद की दयनीय स्थिति लेखकों और संपादकों की लापरवाही और भाषा के प्रति गंभीरता नहीं बरतने का नतीजा है।

यह कहना है लोकप्रिय लेखक देवदत्त पटनायक की किताब ‘माइ हनुमान चालीसा’ का हिंदी अनुवाद करने वाले अनुवादक एवं लेखक भरत तिवारी का। उनका कहना है कि इस भाषा में अनुवाद की गुणवत्ता इतनी दयनीय है कि पाठक हिंदी अनुवाद पढ़कर ठगा सा महसूस करते हैं।

भरत कहते हैं कि देवदत्त ने हिंदी के महत्व को समझकर अपनी किताब के अनुवाद को खास तवज्जो दी। उन्होंने कहा, अगर किसी भी लेखक में इतनी समझ है कि वह हिंदी के महत्व को समझ रहा है तो यह बहुत बड़ी बात है, लेकिन दुर्भाग्यवश लेखकों, खासकर अंग्रेजी के लेखकों को हिंदी का महत्व ही नहीं पता। वे अनुवाद की गुणवत्ता को लेकर गंभीर नहीं हैं, जिसका खामियाजा हमारे जैसे पाठकों को भुगतना पड़ता है।

भरत को ‘माइ हनुमान चालीसा’ का हिंदी अनुवाद करने में लगभग दो महीने लगे। उन्होंने आईएएनएस को बताया, इस किताब का अनुवाद करना चुनौतीपूर्ण था, क्योंकि मैं जिस भाषा का इस्तेमाल कर रहा हूं, पाठक को उसे पढ़ते वक्त अपीलिंग लगनी चाहिए। पाठकों को यह नहीं लगे कि नई तश्तरी में उसके सामने बासी खाना परोस दिया गया है।

यह किताब पढ़ते वक्त कतई नहीं लगता कि आप अनुवाद पढ़ रहे हैं। इस बात पर उन्होंने बीच में टोकते हुए कहा, यह मेरी नहीं, अनुवाद की जीत है। ऐसा लगता है कि देवदत्त पटनायक ने हिंदी में ही लिखा है। दरअसल, जब अनुवादक अनुवाद कर रहा होता है तो वह किताब को दोबारा लिख रहा होता है।

अनुवाद की खराब स्थिति के लिए जिम्मेदार कौन? इस सवाल के जवाब में वह कहते हैं, मैं इसमें पहली गलती लेखक की मानता हूं। यदि लेखक अनुवाद के महत्व को ही नहीं समझ रहा है तो वह किसी और का नहीं, अपना ही नुकसान कर रहा है। एक वाकया याद आता है कि किसी ने गुलजार से उनकी कविताओं का अनुवाद करने की इच्छा जताई, जिस पर गुलजार साहब ने दो टूक कह दिया कि ऐसे कैसे तुम्हें अपनी कविताओं का अनुवाद करने दूं। मैं पहले इस भाषा में आपकी कमांड कितनी है, यह देखूंगा। मतलब है कि वह अनुवाद की ताकत को समझ रहे हैं कि अगर अनुवाद खराब हो गया तो उसका नुकसान कितना बड़ा होगा, लेकिन आज के समय में लेखकों को इसकी कोई फिक्र ही नहीं है। उधर, प्रकाशक अपना पैसा बचाने की फिराक में रहता है। वह तो चाहता है कि जो कम पैसे में अनुवाद कर दे, उसे थमा दो.. जब तक यह मानसिकता नहीं सुधरेगी, हिंदी इसका नुकसान ढोती रहेगी।

वह कहते हैं, पहली जिम्मेदारी लेखक की है, वह भाषा का ज्ञान नहीं होने का बहाना नहीं बना सकता। अनुवाद की सामग्री देखकर पाठक को यह नहीं लगना चाहिए कि उसे बासी खाना परोस दिया गया है।

अनुवाद करने के लिए गूगल ट्रांसलेटेरेशन के इस्तेमाल पर भरत कहते हैं, यह आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस है, जो आर्टिफिशियल है, जिसने कहर ढाया हुआ है। अखबार में संपादकों को ध्यान देना चाहिए कि अनुवाद की गुणवत्ता क्या है। स्तंभकार जो कॉलम लिख रहे हैं, उन्हें नजर रखनी चाहिए कि उनकी कृति का जो हिंदी में अनुवाद जा रहा है, क्या वह ज्यों का त्यों है या बदल गया है। एक पाठक ही बाद में लेखक बनता है। यदि अनुवाद की भाषा पाठक के दिल को नहीं छूएगी तो वह उसे नहीं पढ़ेगा।

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उत्तर प्रदेश

जगतगुरु कृपालु जी महाराज की तीनों बेटियों का एक्सीडेंट, बड़ी बेटी डॉ. विशाखा त्रिपाठी की मौत

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नोएडा। उत्तर प्रदेश के नोएडा में यमुना एक्सप्रेसवे पर रविवार सुबह करीब 5 बजे भीषण हादसा हो गया। इस हादसे में जगतगुरु कृपालु जी महाराज की बड़ी बेटी डॉ. विशाखा त्रिपाठी की मौत हो गई। इसके अलावा उनकी दो बेटियां गंभीर रूप से घायल हैं। घायल दोनों बेटियों को अस्पताल में भर्ती कराया गया है जहां उनका इलाज चल रहा है। हादसे के बाद जगतगुरु कृपालु परिषत की ओर से शोक संदेश भी जारी किया गया है। संदेश जारी करने के बाद भक्तों द्वारा इस घटना को लेकर दुख व्यक्त किया जा रहा है।

दिल्ली जाते समय हुआ हादसा बताया जा रहा है कि मथुरा से जगतगुरु कृपालु जी महाराज की तीनों बेटियां डॉ. विशाखा त्रिपाठी, डॉ. कृष्णा त्रिपाठी और डॉ. श्यामा त्रिपाठी कार से दिल्ली एयरपोर्ट जाने के लिए निकलीं थीं। उनके साथ आश्रम से जुड़े अन्य लोग भी मौजूद थे। दिल्ली एयरपोर्ट से उनको फ्लाइट पड़कर सिंगापुर जाना था। कार यमुना एक्सप्रेसवे पर दनकौर कोतवाली क्षेत्र में पहुंची थी। इसी दौरान तेज रफ्तार की एक डीसीएम ने आगे चल रही दोनों कारों में टक्कर मार दिया। टक्कर लगने के बाद कार क्षतिग्रस्त हो गईं।

हादसे में बड़ी बेटी का निधन

हादसे में कृपालु जी की बड़ी बेटी 65 साल की डॉ. विशाखा त्रिपाठी का निधन हुआ है. हादसा दो छोटी बेटियों, डॉ. श्यामा त्रिपाठी व डॉ. कृष्णा त्रिपाठी की हालत गंभीर बताई जाती जा रही है. सभी घायलों को पास के अस्पताल में भर्ती करवाया गया है. सिंगापुर जाने के लिए तीनों बहनें फ्लाइट पकड़ने एयरपोर्ट के लिए जा रही थीं.

 

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