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छग : 13 जिलों की 41 तहसीलों में पड़ा सूखा

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रायपुर, 11 अगस्त (आईएएनएस/वीएनएस)। छत्तीसगढ़ में मानसून मानों थम सा गया है। प्रदेश में पिछले महीने भर से बारिश नहीं होने के कारण 13 जिलों की 41 तहसीलों को सूखा घोषित कर दिया गया है। इस संबंध में केंद्र सरकार ने प्रदेश सरकार से सूखा प्रभावित क्षेत्रों की रिपोर्ट मांगी है।

मौसम विज्ञानियों के अनुसार, अगले 7 से 10 दिनों में भी बारिश होने के कोई आसार नहीं हैं। इससे पूरे इलाके में धान की फसल पर बुरा असर पड़ता नजर आ रहा है।

बताया जा रहा है कि केंद्रीय कृषि सचिव के निर्देश के बाद राजस्व विभाग ने सभी कलेक्टरों से 20 अगस्त तक बोनी-रोपा की रिपोर्ट तलब की है। 22 अगस्त को होने वाली कैबिनेट की बैठक में इस पर निर्णय लिया जाएगा।

राज्य में इस वर्ष मानसून बीते दो माह में मात्र 612.3 मिमी पानी बरसा है। यह सामान्य से भी कम है। पूरे राज्य में से केवल दक्षिण छत्तीसगढ़ में ही अच्छी बारिश हुई है। राज्य के मध्य और उत्तरी इलाकों में स्थिति खराब है। इन क्षेत्रों के 13 जिलों की 41 तहसीलों में बारिश 40 से 60 फीसदी ही हो पाई है। आषाढ़ और सावन बीतने के बाद भी बारिश औसत के आंकड़े को नहीं छू पाई है।

मौसम विज्ञानी डी.पी. दुबे ने बताया कि छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश में मानसून ब्रेक के हालात हैं। मानसून का रुख उत्तरप्रदेश, बिहार और झारखंड की तरफ हो चुका है। 20 अगस्त के बाद यदि बारिश होती भी है तो वह भी धान के लिए फायदेमंद नहीं होगी।

कृषि विभाग ने इस साल 36.50 लाख हेक्टेयर में धान बोने का लक्ष्य रखा था। किसानों ने तैयारी भी की थी। पर कम बारिश से अब तक 33 लाख हेक्टेयर में बोनी हो पाई है और अभी रोपा बचा है।

केंद्रीय आपदा राहत और कृषि विभाग के सचिवों ने गुरुवार देर रात छत्तीसगढ़ समेत कई राज्यों में खेती किसानी को लेकर वीडियो-कांफ्रेसिंग की। इसमें राजस्व सचिव ने कम बारिश से उत्पन्न स्थिति की जानकारी दी। केंद्र को बताया कि 13 जिलों के 41 तहसीलों की स्थिति ठीक नहीं है। इस पर केंद्र ने इन इलाकों को सूखा घोषित कर राहत प्लान बनाने के निर्देश दिए हैं।

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नेशनल

कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने मुस्लिम आरक्षण को लेकर कही बड़ी बात

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कर्नाटक। कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने उन मीडिया रिपोर्टों को खारिज कर दिया जिनमें दावा किया गया था कि राज्य सरकार नौकरियों में मुस्लिम आरक्षण के प्रस्ताव पर विचार कर रही है। उन्होंने रिपोर्टों को एक और नया झूठ बताया। मुख्यमंत्री कार्यालय (सीएमओ) ने एक बयान में स्पष्ट किया कि आरक्षण की मांग की गई है लेकिन इस संबंध में सरकार के समक्ष ऐसा कोई प्रस्ताव नहीं है। यह स्पष्टीकरण कर्नाटक में मुसलमानों के लिए आरक्षण के मुद्दे पर चल रहे विवाद के बीच आया है।

मुख्यमंत्री कार्यालय ने जारी किया बयान

मुख्यमंत्री कार्यालय ने एक बयान में कहा, ‘कुछ मीडिया में रिपोर्ट प्रकाशित हुई है कि नौकरियों में मुसलमानों को आरक्षण देने का प्रस्ताव सरकार के समक्ष है। इसमें कहा गया है कि मुस्लिम आरक्षण की मांग की गई है, हालांकि, यह स्पष्ट किया गया है कि इस संबंध में सरकार के समक्ष कोई प्रस्ताव नहीं है।’

4% कोटा, जो श्रेणी-2बी के अंतर्गत आता, सार्वजनिक निर्माण अनुबंधों के लिए समग्र आरक्षण को 47% तक बढ़ा देता। कर्नाटक का वर्तमान आवंटन विशिष्ट सामाजिक समूहों के लिए सरकारी ठेकों का 43% आरक्षित रखता है: एससी/एसटी ठेकेदारों के लिए 24%, श्रेणी-1 ओबीसी के लिए 4%, और श्रेणी-2ए ओबीसी के लिए 15% है।

राज्य विधानसभा में विपक्ष के नेता आर अशोक ने कहा कि सिद्धारमैया के राजनीतिक सचिव, नसीर अहमद, आवास और वक्फ मंत्री बीजे ज़मीर अहमद खान और अन्य मुस्लिम विधायकों के साथ, 24 अगस्त को एक पत्र प्रस्तुत किया था, जिसमें अनुबंधों में मुसलमानों के लिए 4% आरक्षण का अनुरोध किया गया था। उन्होंने आगे कहा कि सिद्धारमैया ने वित्त विभाग को उसी दिन प्रस्ताव की समीक्षा करने का निर्देश दिया था, कथित तौर पर उन्होंने इस मामले से संबंधित कर्नाटक सार्वजनिक खरीद पारदर्शिता (केटीपीपी) अधिनियम में संशोधन का भी समर्थन किया था।

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