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योगी की तरह मुख्यमंत्री से जनता के कल्याण की उम्मीद : मेहरु
नई दिल्ली, 24 मार्च (आईएएनएस)| नवाबों के शहर लखनऊ में एक-दूसरे के प्रति सम्मान की भावना चेतना में विकसित हुई और जीवन की पद्धति बन गई। इसी ‘जादुई सूत्र’ ने यह शहर और इसके पास का इलाका अवध खुशहाल हुआ। पत्रकार व लेखिका मेहरु जाफर कहती हैं कि अफसोस है कि अब ऐसा कुछ नहीं रह गया है। वह मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से अन्य धार्मिक योगियों की तरह ही बिना भेदभाव के लोगों का कल्याण करने की अपेक्षा करती है।
हाल ही में इस शहर पर आधारित उनकी एक किताब प्रकाशित हुई है, जहां से उनकी जड़ें जुड़ी हुई हैं।
बदले हालात पर चर्चा करते हुए मेहरु ने आईएएनएस को दिए साझात्कार में बताया, दूसरों के प्रति सम्मान की भावना लखनऊ में जीवन के एक अभिन्न हिस्से के तौर मेरी चेतना में विकसित हुई है। इंसानों के बीच नफरत और भेदभाव को बढ़ावा नहीं देना राज्य की नीति थी। यह एक जादुई सूत्र था जिसने इस शहर और उसके आसपास के क्षेत्र को समृद्ध बनाया। जब लोगों ने एक-दूसरे पर भरोसा किया, तो बिना किसी डर के व्यापार किया और अविश्वसनीय रूप से समृद्ध बने।
उन्होंने कहा, इंसानों के बीच जब सिर्फ दोस्ती, विश्वास और अंतर-निर्भरता होती है तो बाजारों में तेजी आती है। जब सार्वजनिक स्थानों, बाजार और चौक-चौराहे पर हत्या व लूटपाट होने लगती है, तो दुकानों के शटर गिर जाते हैं, सड़कें सुनसान हो जाती हैं, आम जन को नुकसान होता है और कारोबार ठप हो जाता है।
मेहरु से पूछा गया क्या उन्होंने क्या इसलिए ‘लव एंड लाइफ इन लखनऊ : एन इमैजनरी बायोग्राफी ऑफ अ सिटी’ लिखी क्योंकि शहर आज आर्थिक और राजीनतिक रूप से दिवालिया हो गया है।
इस पर उन्होंने कहा, उपजाऊ सिन्धु-गंगा के मैदानी इलाकों का यह हिस्सा आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर था। यह क्षेत्र अन्नदाता था। भंडार गृह या अन्न से भरा हुआ अन्नागार था। इसकी समृद्धि ने ही इसे राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण बनाया।
मेहरु ने कहा, आज, राजनीतिक सत्ता केंद्रित है। सारे रास्ते राजनीतिक राजधानी दिल्ली की ओर जाते हैं। कृषि उपेक्षित स्थिति में है और वे सभी लोग जो जो खेती कर जीविका चलाते थे, उनकी दशा भिखारी और भिक्षुकों जैसी हो गई है। आज के दौर में विकास की प्राथमिकता अजीब सी है। इंसनों को एक किनारे धकेल दिया जाता है और उनकी जगह नारेबाजी ने ले लिया है। इंसान अब कोई मायने रखते नहीं नजर आ रहे हैं। दूसरे इंसानों को भीख मांगते देखना, बेघर हालत में भूखे रहते और मरते देखने पर अब किसी को कोई शर्म महसूस नहीं होती।
उन्होंने कहा, धरती पर किस तरह के इंसान रौब में चलेंगे, खाने के लिए क्या रह जाएगा, कुछ दशकों में पीने के लिए क्या रह जाएगा, यह कुछ ऐसी बात है,जो चिंताजनक है।
यह पूछे जाने पर कि क्या इस सोच, विचार प्रक्रिया ने किताब लिखने के लिए प्रेरित किया तो मेहरु ने अपने जवाब की शुरुआत इस बात का जिक्र करते हुए किया कि वह ऐसे माहौल में पली बढ़ी, जहां इनसे कहा गया कि लखनऊ ‘अलग ‘ है, इसलिए लखनऊ के लोग अलग होते हैं और इस वजह से मैं देश में अपने बात करने के तरीके और खान-पान संबंधी आदतों के मामले में बखूबी अलग हूं।
उन्होंने कहा, गुजरते समय के साथ मेरे मन में यह जानने की इच्छा प्रबल हो गई कि लखनऊ के बारे में क्या चीज सबसे अलग है। अपने वयस्क जीवन के कुछ पड़ाव पर मैंने जानबूझकर लखनऊ में रहना शुरू किया। मैंने लिखना, पढ़ना और दशकों से शहर और इसके बाशिंदों को गौर से जानना व देखना शुरू कर दिया, जब तक कि मुझे लगा नहीं कि मैं किताब में इन अनुभवों को लिखने के लिए तैयार हूं, तब तक ऐसा किया।
मेहरु ने कहा कि लखनऊ के 18वीं और 19वीं सदी के इतिहास पर कई किताबें हैं। यह शहर का सबसे शानदार समय रहा है। इतिहास का बारीकी से अध्ययन करने के बाद मैंने इसके अतीत को नकारे बिना लखनऊ के मौजूजा परिदृश्य के बारे में लिखने और इसकी कहानियां यहां रह रहे लोगों को बताने के बारे में सोचा।
उन्होंने लखनऊ की तहजीब, शायराना अंजाद और ऊर्दू जुबान के बारे में सोचकर भाषा के साथ प्रयोग करने की भी कोशिश की।
मेहरु ने प्रस्तावना में लिखा, किताब के कई पात्रों को क्षेत्र के अलग-अलग कोनों से लिया गया है, जो इसकी काल्पनिक अतीत से लेकर पुरालेखों व ऐतिहासिक किताबों के अभिलेखों में दर्ज हैं। वर्तमान समय से चित्र इस उम्मीद में लिए गए हैं कि दूसरों के विभिन्न अनुभवों से शायद हमें एक या दो यह सुराग पता चलने में मदद मिले कि भविष्य में दूसरे इंसानों के साथ कैसे अधिक सम्मानजनक तरीके से पेश आया जाए।
हालांकि, उन्होंने इसका समापन इस उम्मीद में सकारात्मक उल्लेख के साथ किया है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अपने कुथ आध्यात्मिक पूर्वजों की तरह ही ध्यान रखने वाले शख्स होंगे।
मेहरु ने कहा, उन्हें सिर्फ तभी प्यार मिलेगा जब वे उत्तर प्रदेश के सभी नागरिकों की परवाह करते नजर आएंगे और उन्हें सिर्फ इस आधार पर ज्यादा तवव्जों नहीं देंगे कि वे उनकी जाति या पंथ के हैं। सभी मनुष्यों से प्रेम करना और सभी को न्याय दिलाना सभी महान योगियों का पवित्र कर्तव्य है। मैं इस योगी के उतना ही सच्चा, सज्जन और उदार होने का इंतजार कर रही हूं, जितना कि आध्यात्मिक धर्मगुरुओं से होने की उम्मीद की जाती है।
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5.6 मिलियन फॉलोअर्स वाले एजाज खान को मिले महज 155 वोट, नोटा से भी रह गए काफी पीछे
मुंबई। टीवी एक्टर और पूर्व बिग बॉस कंटेस्टेंट एजाज खान इस बार महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में अपनी किस्मत आजमाने उतरे थे। हालांकि जो परिणाम आए हैं उसकी उन्होंने सपने में भी उम्मीद नहीं की होगी। एजाज आजाद समाज पार्टी (कांशीराम) के टिकट पर वर्सोवा सीट से चुनावी मैदान में उतरे थे लेकिन उन्होंने अभी तक केवल 155 वोट ही हासिल किए हैं।
आपको जानकर हैरानी होगी कि नोटा को भी 1298 वोट मिल चुके हैं। इस सीट से शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) के हारून खान बढ़त बनाए हुए हैं जिन्हें अबतक करीब 65 हजार वोट मिल चुके हैं।
बता दें कि ये वहीं एजाज खान हैं जिनके सोशल मीडिया पर 5.6 मिलियन फॉलोअर्स हैं। ऐसे में बड़ी ही हैरानी की बात है कि उनके इतने चाहने वाले होने के बावजूद भी 1000 वोट भी हासिल नहीं कर पाए। केवल 155 वोट के साथ उन्हें करारा झटका लगा है।
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