Success Story
शानदार नौकरियां छोड़ खेती के दम पर करोड़पति बने ये 10 किसान, जानिए इनकी पूरी कहानी
“मत मारो गोलियो से मुझे, मैं पहले से एक दुखी इंसान हूं,
मेरी मौत कि वजह यही है कि, मैं पेशे से एक किसान हूं”
एक किसान के दर्द को इन लाइनों से अच्छा शायद ही कोई बता पाए या समझ पाए। आये दिन कहीं किसान मौसम की मार झेलता है, कहीं कर्जे की तो कहीं महंगाई की। लेकिन ढूंढ़ने पर ज़िंदगी जीने का बहाना मिल ही जाता है। कुछ किसानों ने अपना-अपना बहाना ढूंढ लिया है। उनका ये बहाना उनकी खेती है। और अपने हौसले और इच्छाशक्ति के दम पर ही इन किसानों ने बाकि किसानों को प्रेरणा दी है कि खेती भी शीशे से बने दफ्तरों की कमाई को टक्कर दे सकती है। इन किसानों ने आधुनिक तरीके से खेती करके ‘करोड़पति किसान’ कहलाने का भाग्य हासिल किया है। जिन नौकरियों के लिए आप दिन रात घर की बिजली का बिल बढ़ाते है ये किसान उन नौकरियों को छोड़ आयें हैं। आइये जानते है एक कृषिप्रधान देश के ऐसी करोड़पति किसानों के बारे में जो गर्व से बताते है की उनका पेशा ‘खेती’ है।
1- इस्माइल रहीम शेरू- हो सकता है कि कल अपने मैक्डोनल्ड में जो बर्गर खाया हो या फिंगर चिप्स खाया हो उसका आलू इन्हीं के खेत का हो। गुजरात के अमीरगढ़ इलाके के रामपुर-बड़ला गांव में रहने वाले इस्माइल ने बी.कॉम की पढ़ाई की है।
इनके पिता इनको नौकरी कराना चाहते थे। मगर इनकी किस्मत इनसे कुछ बड़ा ही कराना चाहती थी। 1998 में इस्माइल कनाडा की मैक्केन कंपनी के संपर्क में आये और उनके लिए आलू उगाने लगे। सफलता का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि 5 एकड़ की पुश्तैनी ज़मीन वाले इस्माइल की खेती आज 400 एकड़ की है। करोड़ों के टर्नओवर वाले इस्माइल आज मैक्केन और मैक्डोनल्ड को आलू सप्लाई करते है।
2- वल्लरी चंद्राकर- रायपुर से 88 किलोमीटर दूर मुहंसमूंद के बागबाहरा के सिर्री पठारीमुड़ा गांव की निवासी वल्लरी सिर्फ 27 साल की हैं। वल्लरी ने पहले कंप्यूटर साइंस से एम.टेक. किया और फिर असिस्टेंट प्रोफेसर की जॉब करने लगी।
खेती करने के विचार से इन्होने अपनी नौकरी छेड़ी और पिता के फार्म हाउस के लिए खली पड़ी 15 एकड़ की ज़मीन पर खेती करना शुरू कर दिया। सब्जियों की खेती करने वाली वल्लरी आज दुबई और इज़राइल तक अपनी सब्जियाँ एक्सपोर्ट करने की तैयारी में हैं।
3- पार्थीभाई चौधरी- नाम से आपको अंदाज़ा हो गया होगा की पार्थीभाई गुजरात के रहने वाले हैं। इनका पूरा नाम गुजराती परम्परा के अनुसार पार्थीभाई जेठभाई चौधरी है। पार्थीभाई पहले पुलिस की नौकरी किया करते थे। लेकिन इन्होनें फिर नौकरी छोड़ किसानी शुरू कर दी। आज पार्थीभाई 58 साल के हैं और इनको खेती करते हुए 18 साल हो गये हैं।
इनके क्षेत्र में पानी की समस्या होने के कारण इन्होंने खेत में ड्रिप इरिगेशन और स्प्रिंकलर लगवाए। 87 एकड़ की खेती के साथ-साथ इनके पास इतनी ही भूमि किराये के लिए है। आलू की पैदावार करने वाले पार्थीभाई के खेत में 2 किलो तक का आलू पैदा होता ही। मैककेन के साथ कॉन्ट्रैक्ट वाले पार्थीभाई का पिछले साल मुनाफा 3.5 करोड़ हुआ था।
4- नागा कटारु- अब आप चौकाने के लिए तैयार हो जाइये। आंध्र प्रदेश के छोटे से गांव गम्पालागुडम के कटारू गूगल में सॉफ्टवेर इंजिनियर थे। 2008 में इनका मन नौकरी से हट गया और किसानी की तरफ भागा।
कार्लिफोर्निया में इन्होंने 320 एकड़ का एक फार्म खरीदा और बादाम की खेती शुरू कर दी। आज की तारीख़ की बात करें तो नागा के लिए 8-10 लोग काम करते हैं। और एक साल में इनकी कमाई कुछ नहीं तो 17 करोड़ होती है।
5- बोलापल्ली श्रीकांत- 40 वर्ष के बोलापल्ली तेलंगाना के एक छोटे से शहर निज़ामाबाद के रहने वाले हैं। अपने गांव को छोड़ कर नौकरी की तलाश में बेंगलुरु आने वाले बोलापल्ली की पहली नौकरी 1000 रूपए की थी। जिसमें उन्हें एक कंपनी में फूलों की खेती का परिवेक्षक बनाया गया।
2 साल की नौकरी में इन्होंने फूलों की खुशबू ही नहीं ली बल्कि उसके व्यापार की बारीकियों को भी समझा। 24,000 की लागत से इन्होंने अपना खुद का फूलों का बिज़नेस शुरू किया। धीर-धीरे इनका बिज़नेस बढ़ता चला गया। 2012 में इन्होंने 10 एकड़ ज़मीन डोड्डा बालापुरा में खरीदी। धीरे-धीरे अपना व्यापार बढ़ाते चले गए। आज हालात ये हैं कि इनके यहाँ 300 लोग काम करते हैं। एक साल का टर्नओवर इनका 70 करोड़ के आस-पास होता है बस।
6- लक्ष्मण ओंकार चौधरी- केले की राजधानी के नाम से जाना जाने वाला महाराष्ट्र का जलगांव, वहीँ के एक प्राइमरी स्कूल टीचर ओंकार चौधरी। नौकरी के साथ 4 एकड़ में शुरू की गई खेती आज 120 एकड़ के साम्राज्य की तरह फ़ैल गई है।
आज ओंकार 12,500 क्विंटल केला पैदा करते हैं और अमेरिका की एक कंपनी केला सप्लाई करते हैं। उनकी सालाना कमाई डेढ़ से दो करोड़ होती है।
7- खेमा राम चौधरी- 45 वर्षीय खेमाराम दिल्ली से करीब 300 किलोमीटर दूर राजस्थान में रहते हैं। और घुस कर जाने तो जयपुर के कुमावतान के रहने वाले हैं। खेमाराम सिर्फ नौवीं तक पढ़े है।
आज से पांच साल पहले खेमाराम की हालत बेहद ख़राब थी। वो पूरी तरह से कर्ज में डूबे थे। फिर खेमाराम ने इज़राइल की तर्ज पर पॉली हाउस बनाकर खेती करना शुरू किया। पॉली हाउस खेती से फल और सब्जियों को उगाने वाले खेमाराम ने मौसम को मात दी और आज खीरे और तरबूज़ की खेती से लाखों का मुनाफा कमा रहें है।
8- गजानन पटेल- गजानन पटेल 39 वर्ष के हैं और छत्तीसगढ़ में महासुंद जिले के छपोराडीह गांव के रहने वाले हैं।
अपनी चार एकड़ की ज़मीन पर धान की खेती से महज़ 80 हज़ार रूपए कमाने वाले गजनन आज पॉली हाउस विधि से खेती कर उतनी ही ज़मीन पर लगभग 40 लाख रूपए सालाना की कमाई करते हैं। मुनाफे के मामले में राज्य के नंबर 1 किसान गजानन को मुख्यमंत्री, कृषि मंत्री और प्रधानमंत्री तक सम्मानित कर चुके हैं।
9- हिमांशु त्यागी- जब ख़बर पूरे देश को कवर कर रही हो और ज़िक्र उत्तर प्रदेश का न हो तो ख़बर अधूरी सी लगती है। अब बात उत्तर प्रदेश की। हिमांशु उत्तर प्रदेश के जिला बिजनौर के हरेवली गांव के रहने वाले हैं। हिमांशू ने एम.बी.ए. की पढ़ाई की और 9 साल तक दिल्ली की एक मल्टीनेशनल कंपनी में जॉब किया। हिमांशु का सालाना पैकेज 12 लाख था।
खेती के लिए इच्छाशक्ति ने उनकी नौकरी छुड़वा थी। हिमांशु ने अपनी 10 बीघा ज़मीन पर चार पॉली हाउस का निर्माण किया और गुलाब और शिमला मिर्च की खेती करना शुरू किया। इसमें उनकी 1 करोड़ की लागत आई। आज हिमांशु के यहाँ करीब 5 लोग काम करते हैं और एक साल में 20 लाख से अधिक की कमाई होती है।
10- प्रमोद गौतम- अब मिलते हैं एक पूर्व ऑटोमोबाइल इंजिनियर से। 2006 में, एक ऑटोमोबाइल इंजीनियरी के रूप में अपनी नौकरी में असंतुष्ट महसूस करने के बाद, प्रमोद ने इंजीनियरिंग छोड़ दी और अपने 26 एकड़ की पैतृक भूमि पर खेती करना शुरू कर दिया। उन्होंने सफेद मूंगफली और हल्दी लगाए लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ।
2007-08 में, प्रमोद ने बागवानी करने का फैसला किया। उन्होंने संतरे, नींबू, कच्चे केले और तूर दाल लगाए। आज प्रमोद ‘वंदना’ के ब्रांड नाम के तहत संसाधित और अनपोलिश्ड दालों को बेचतें है। उनका लगभग एक करोड़ रुपए का वार्षिक कारोबार है। प्रमोद बागवानी से 10-12 लाख रूपए अतिरिक्त कमातें हैं।
एक ओर जहां लोगों ने कृषि को करियर के रूप में देखना ही बंद कर दिया था वहीँ दूसरी तरफ ये लोग हैं जो अपनी बड़ी-बड़ी नौकरियां छोड़ कर आयें हैं। इन्होने न सिर्फ कृषि को एक नया रुप प्रदान किया है बल्कि किसानों को आत्मविश्वास देकर उनकी कौम पर भटक रहे एक बड़े खतरे को भी हटाया है। अब हम इस उम्मीद के साथ रह सकते है की शायद कोई किसान इनकी कहानी पढ़ कर या इनके बारे में सुनकर आत्महत्या न करे। क्योंकि जब एक किसान मरता तो उसके साथ मरता है एक परिवार और आपका एक वक़्त का खाना। किसानों को बचाइए तो देश बचेगा।
“जय जवान, जय किसान”
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पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा में शिया मुसलमानों से भरी पैसेंजर वैन पर आतंकी हमला, 50 की मौत
इस्लामाबाद। पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा में शिया मुसलमानों से भरी एक पैसेंजर वैन पर हुए आतंकी हमले में 50 करीब लोगों की मौत हो गई। ये घटना खैबर पख्तूनख्वा प्रांत के कुर्रम जिले की है। पाकिस्तान की उत्तर-पश्चिमी सीमा पर लगे अफगानिस्तान के साथ पाराचिनार जिले में अक्सर हिंसा का अनुभव होता रहता है। इसके सुन्नी और शिया मुस्लिम समुदाय जमीन और सत्ता पर काबिज हैं।
इस क्षेत्र के शिया अल्पसंख्यक हैं, उन्हें 241 मिलियन की आबादी वाला मुख्य रूप से सुन्नी मुस्लिम राष्ट्र भी कहा जाता है। स्थानीय पुलिस अधिकारी अजमत अली का इस मामले में बयान सामने आया है, उन्होंने बताया कि कुछ गाड़ियां एक काफिले में पाराचिनार शहर से खैबर पख्तूनख्वा की राजधानी पेशावर की ओर जा रही थी।
इस दौरान बीच रास्ते में काफिले पर हमला हो गया। प्रांतीय मंत्री आफताब आलम ने कहा है कि अधिकारी हमले में शामिल लोगों का पता लगाने के लिए जांच कर रहे हैं। साथ ही गृह मंत्री मोहसिन नकवी ने गोलीबारी को आतंकवादी हमला बताया। वहीं प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ और राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी ने हमले की निंदा की और कहा कि निर्दोष नागरिकों की हत्या के पीछे के लोगों को बख्शा नहीं जाएगा।
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