मनोरंजन
शशि कपूर : मासूम चेहरे वाले रोमांटिक हीरो
नई दिल्ली | बॉलीवुड फिल्मों के रोमांटिक अभिनेता शशि कपूर का चेहरा याद करना हो तो ‘जब जब फूल खिले’ (1965) फिल्म का ‘परदेसियों से न अंखियां मिलाना’ और ‘कन्यादान’ (1968) फिल्म का ‘लिखे जो खत तुझे’ गीत काफी हैं। जाने-माने फिल्मी घराने कपूर खानदान में जन्मे बलबीर राज कपूर को आज दुनिया शशि कपूर के नाम से जानती है।
18 मार्च, 1938 को कोलकाता में जन्मे शशि कपूर का आज 77 वां जन्मदिन है। शशि अपने जमाने के मशहूर अभिनेता पृथ्वीराज कपूर के बेटे हैं। अभिनेता राज कपूर व शम्मी कपूर उनके बड़े भाई हैं। कलाकारों के परिवार से ताल्लुक रखने के चलते उनमें भी बचपन से ही इस क्षेत्र में कदम रखने का उतावलापन था। उन्होंने परिवार के नक्शेकदम पर चलते हुए फिल्मों में तकदीर आजमाई। हालांकि, उनका करियर पिता व बड़े भाइयों की तुलना में ज्यादा सफल नहीं कहा जा सकता। 40 के दशक में फिल्मों में कदम रखने वाले शशि कपूर ने शुरुआत में कई धार्मिक फिल्मों में बाल कलाकार की भूमिकाएं निभाईं। उन्होंने बंबई के डॉन बोस्को स्कूल से पढ़ाई की। पिता पृथ्वीराज कपूर उन्हें छुट्टियों के दौरान स्टेज पर अभिनय करने के लिए प्रोत्साहित करते थे। इसी का नतीजा रहा कि शशि के बड़े भाई राज कपूर ने उन्हें ‘आग’ (1948) और ‘आवारा’ (1951) फिल्म में बाल कलाकार की भूमिकाएं दीं। ‘आवारा’ में उन्होंने राज कपूर के बचपन की भूमिका निभाई थी। 50 के दशक में वह एक थिएटर ग्रुप में शामिल हो गए और उसके साथ ही दुनियाभर की यात्राएं कीं। इसी दौरान उन्हें ब्रिटिश अभिनेत्री जेनिफर कैंडल से प्रेम हो गया और 1958 में मात्र 20 वर्ष की उम्र में उनसे शादी कर ली।
शशि ने बतौर मुख्य अभिनेता अपने अभिनय करियर की शुरुआत 1961 में यश चोपड़ा के निर्देशन की दूसरी फिल्म ‘धर्मपुत्र’ से की। वह एक सफल फिल्म निर्माता भी हैं। बतौर फिल्म निर्माता उन्होंने ‘जुनून’ (1978), ‘कलयुग’ (1980), ‘विजेता’ (1982), ‘उत्सव’ (1984), ‘अजूबा’ (1991) जैसी फिल्में बनाईं। वह अपने अब तक के फिल्मी करियर में 116 फिल्मों में अभिनय कर चुके हैं। ‘न्यू दिल्ली टाइम्स’, ‘इन कस्टडी’ और ‘जुनून’ उनके करियर की तीन अतिसफल फिल्में कही जा सकती हैं। इनके लिए उन्हें राष्ट्रीय पुरस्कार से भी नवाजा गया। 1978 में आई ‘जुनून’ हिंदी की बेहतर फिल्मों में एक है। इसे शशि कपूर ने ही बनाया था, जबकि इसका निर्देशन श्याम बेनेगल ने किया था। यह फिल्म 1957 के भारतीय विद्रोह के इर्दगिर्द घूमती है।
1986 में आई ‘न्यू दिल्ली टाइम्स’ में शशि कपूर और शर्मिला टैगोर मुख्य भूमिका में थे। फिल्म सफल रही। इसका निर्देशन रोमेश शर्मा ने किया था। यह राजनीतिक दुश्चक्र की फिल्म है। वहीं, ‘इन कस्टडी’ (1993) में उनके साथ शाबाना आजमी, ओम पुरी, परीक्षित साहनी, नीना गुप्ता, सुषमा सेठ जैसे कलाकार नजर आए। इसके लिए शशि ने राष्ट्रीय पुरस्कार भी जीता। वर्ष 2010 में उन्हें फिल्मफेयर लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड से सम्मानित किया गया। इसके अलावा 2011 में भारत सरकार ने उन्हें पद्मभूषण से सम्मानित किया। शशि की तबीयत काफी समय से नासाज चल रही है। उन्हें इस बीच कई बार अस्पताल में भर्ती कराया गया है।
उत्तर प्रदेश
डेकोरेटिव लाइट्स से महाकुंभ बनेगा भव्यता का प्रतीक
प्रयागराज। महाकुंभ 2025 को दिव्य और भव्य बनाने के लिए योगी सरकार अनेक अभिनव प्रयास कर रही है। इसी क्रम में पूरे मेला क्षेत्र को डेकोरेटिव लाइट्स से सजाया जा रहा है। 8 करोड़ की लागत से उत्तर प्रदेश पावर कॉरपोरेशन लि. की ओर से पूरे मेला क्षेत्र में 485 डिजाइनर स्ट्रीट लाइट पोल का जाल बिछाया जा रहा है। संगम जाने वाली हर प्रमुख सड़क पर यह अलौकिक पोल और लाइट श्रद्धालुओं का स्वागत करती नजर आएगी। योगी सरकार का यह प्रयास न केवल श्रद्धालुओं को दिव्य अनुभव देगा, बल्कि भारतीय संस्कृति और आधुनिकता का अद्भुत संगम भी प्रस्तुत करेगा।
प्रमुख मार्गों पर अनूठी रोशनी का जादू
अधीक्षण अभियंता महाकुंभ मनोज गुप्ता ने बताया कि सीएम योगी की।मंशा के अनुरूप महाकुंभ को भव्य रूप देने के लिए विद्युत विभाग बड़े पैमाने पर कार्य कर रहा है। डेकोरेटिव लाइट्स और डिजाइनर पोल्स उसी का हिस्सा है। मेला क्षेत्र में लाल सड़क, काली सड़क, त्रिवेणी सड़क और परेड के सभी मुख्य मार्गों को आकर्षक डेकोरेटिव लाइट्स से रोशन किया जा रहा है। ये लाइट्स भगवान शंकर, गणेश और विष्णु को समर्पित हैं, जो श्रद्धालुओं को आध्यात्मिक शांति और सौंदर्य का अनुभव कराएंगी।
8 करोड़ की भव्य परियोजना
अधिशाषी अभियंता अनूप सिंह ने बताया कि पूरे मेला क्षेत्र में 8 करोड़ से ज्यादा की लागत से 485 डिजाइनर स्ट्रीट लाइट पोल लगाए जा रहे हैं। इस बार टेंपरेरी की बजाय स्थायी पोल्स का निर्माण किया गया है, जो महाकुंभ के बाद भी क्षेत्र की रौनक बनाए रखेंगे। हर पोल को कलश और देवी-देवताओं की आकृतियों से सजाया गया है, जो मेले के वातावरण को सांस्कृतिक वैभव से भर देंगे। 15 दिसंबर तक सभी डेकोरेटिव लाइट्स का कार्य संपन्न कर लिया जाएगा, जिसके बाद रात में मेला क्षेत्र की आभा देखते ही बनेगी।
विद्युत विभाग का अभिनव प्रयास
उन्होंने कहा कि महाकुंभ में आने वाले लाखों श्रद्धालुओं के अनुभव को यादगार बनाने के लिए यह विद्युत विभाग की ओर से एक अभूतपूर्व पहल है। आधुनिक तकनीक और सांस्कृतिक प्रतीकों के मेल से यह परियोजना महाकुंभ को विश्वस्तरीय भव्य आयोजन का दर्जा देगी। महाकुंभ के लिए लगाए गए ये डेकोरेटिव पोल्स स्थायी रहेंगे, जिससे क्षेत्र में आने वाले पर्यटक भी लंबे समय तक इस भव्यता का आनंद ले सकेंगे। डेकोरेटिव लाइट्स से सजे इस महाकुंभ में हर श्रद्धालु को आध्यात्मिक ऊर्जा और सांस्कृतिक गर्व का अनुभव होगा। यह पहल महाकुंभ को भारतीय संस्कृति की भव्यता और आधुनिक विकास का अद्वितीय प्रतीक बनाएगी।
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