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सामाजिक न्याय के लिए अंग्रेजी जरूरी : डॉ. बीरबल
नई दिल्ली, 14 जून (आईएएनएस)| अंग्रेजी को विदेशी भाषा बताकर इस पर राजनीति हो सकती है, मगर इस भाषा को दरकिनार कर सामाजिक न्याय की परिकल्पना नहीं की जा सकती। यह बात शिक्षाविद व लेखक डॉ. बीरबल झा ने अपनी नई किताब इंग्लिश फॉर सोशल जस्टिस इन इंडिया के संदर्भ में कही। डॉ. झा ने कहा, भारतीय समाज की यह सच्चाई है कि अंग्रेजी पढ़े-लिखे लोग बेहतर नौकरी पाने में कामयाब होते हैं और उनका जीवन स्तर बेहतर हो जाता है, जबकि अंग्रेजी नहीं जानने वालों को अच्छी नौकरी नहीं मिल पाती है। उनको कम पगार मिलता है जिससे वे बमुश्किल अपना गुजारा कर पाते हैं।
प्रकाशनाधीन पुस्तक ‘इंग्लिश फॉर सोशल जस्टिस इन इंडिया’ के लेखक ने कहा कि अंग्रेजी के महत्व को स्वीकार करना सच्चाई को स्वीकार करना है, लेकिन इसका मतलब यह कतई नहीं है कि हिंदी व अन्य भारतीय भाषाओं को महत्वहीन समझा जाए।
उन्होंने ने कहा कि जब अंग्रेजी पढ़े-लिखे लोगों को शिक्षा, व्यापार, खेल समेत जीवन के हर क्षेत्र में ज्यादा तवज्जो दी जाती है तो फिर अंग्रेजी से वंचित रहने वालों को सामाजिक न्याय कैसे मिल सकता है।
डॉ. झा ने कहा, मातृभाषा और राष्ट्रभाषा का महत्व अंग्रेजी से कभी कम नहीं होगा, मगर हमें यह स्वीकार करना पड़ेगा कि कामकाज व व्यापार की भाषा के तौर पर अंग्रेजी न सिर्फ भारत में बल्कि पूरी दुनिया में प्रचलित है। इसलिए अंग्रेजी सीखकर ही पूरी दुनिया से संपर्क किया जा सकता है।
डॉ. झा ने कहा, संविधान के अनुछेद 16 में उल्लेख किया गया है कि समानता का अवसर सभी को मिलना चाहिए। आज के परिप्रेक्ष्य में रोजी रोजगार में सफलता प्राप्त करने के लिए अंग्रेजी का ज्ञान अनिवार्य है। समाज के दबे-कुचले लोग अंग्रेजी भाषा के अभाव में सम्मानजनक रोजगार पाने से वंचित रह जाते हैं, जो कहीं ना कहीं सामाजिक न्याय व्यवस्था और समानता के अवसर को कमजोर करता है।
उन्होंने कहा, 2015 में सर्वोच्च न्यायालय में एक याचिका दायर की गई थी, जिसमें अदालत से आग्रह किया गया था कि हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं में न्यायालय जनता की बात सुने और अपने फैसले सुनाए, पर तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश टी.एस. ठाकुर की पीठ ने कहा कि ‘कोर्ट लैंग्वेज इज इंग्लिश’ और याचिका खारिज कर दी गई।
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क्या रद्द होगी राहुल गांधी की भारतीय नागरिकता ?
नई दिल्ली। राहुल गांधी के पास ब्रिटेन की भी नागरिकता है और इसलिए उनकी भारतीय नागरिकता रद्द कर दी जानी चाहिए.’ एस विग्नेश शिशिर ने यह दावा करते हुए एक जनहित याचिका दायर की है, जिस पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने केंद्रीय गृह मंत्रालय को फैसला करने का निर्देश दिया. इस दौरान केंद्र सरकार की तरफ से पेश डिप्टी सॉलिसिटर जनरल ने कहा, ‘याचिकाकर्ता की तरफ से कुछ दस्तावेज गृह मंत्रालय को मिले हैं और वह इस पर विचार कर रहा है कि राहुल गांधी की नागरिकता रद्द की जानी चाहिए या नहीं.’
जस्टिस एआर मसूदी और सुभाष विद्यार्थी की डिविजन बेंच ने अपर सॉलिसिटर जनरल एसबी पांडेय को निर्देश दिया कि वो तीन हफ्ते के अंदर इस बारे में गृह मंत्रालय से निर्देश प्राप्त करें और अगली तारीख पर इसका जवाब पेश करें. इस मामले की सुनवाई अब 19 दिसबंर को रखी गई है.
मामले की पूरी जानकारी
राहुल गांधी की नागरिकता से जुड़ा विवाद तब शुरू हुआ जब लखनऊ हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की गई, जिसमें आरोप लगाया गया कि राहुल गांधी के पास ब्रिटिश नागरिकता है। याचिकाकर्ता एस विग्नेश शिशिर ने दावा किया कि उन्होंने गहन जांच के बाद यह निष्कर्ष निकाला है कि राहुल गांधी के पास यूके की नागरिकता है। शिशिर ने यह भी कहा कि उनके पास कुछ गोपनीय जानकारी है, जिससे यह साबित होता है कि राहुल गांधी का विदेशी नागरिकता प्राप्त करना कानून के तहत भारतीय नागरिकता को रद्द करने का कारण हो सकता है।
पहले इस मामले में शिशिर की याचिका को जुलाई 2024 में खारिज कर दिया गया था, लेकिन इसके बाद शिशिर ने केंद्रीय गृह मंत्रालय के पास शिकायत की थी, जिसमें कोई एक्शन नहीं लिया गया। फिर से इस मामले को अदालत में लाया गया और अब गृह मंत्रालय से राहुल गांधी की नागरिकता पर स्पष्टीकरण मांगा गया है।
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