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मुख्य समाचार

कावंड़ियों के उत्पात पर सर्वोच्च न्यायालय ने चिंता जताई

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नई दिल्ली, 10 अगस्त (आईएएनएस)| कांवड़ियों के उत्पात के खिलाफ आम जनता के गुस्से ने सर्वोच्च न्यायालय में भी दस्तक दी। न्यायालय ने विरोध प्रदर्शन और धार्मिक समूहों के उत्पात और कानून तोड़ने की घटनाओं पर गहरी चिंता व्यक्त की है। प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति ए.एम. खानविलकर और न्यायमूर्ति डी.वाई. चंद्रचूड़ की पीठ ने मामले पर चिंता जताई। महान्यायवादी के.के. वेणुगोपाल ने कांवड़ियों द्वारा गत दो दिनों में किए गए उत्पात के बारे में उल्लेख किया, जिसमें हमला करने की घटनाएं और वाहनों को पटलने के हिंसक कार्य शामिल हैं।

वेणुगोपाल ने कहा कि इस गुंडागर्दी पर तबतक रोक नहीं लगाया जा सकता, जबतक जिला पुलिस अधीक्षक(एसपी) को निजी या सरकारी संपत्ति को जानबूझकर बर्बाद करने के प्रयास से निपटने के लिए व्यक्तिगत तौर पर जवाबदेह नहीं बनाया जाएगा।

वेणुगोपाल कांवड़ियों की हरकतों का उल्लेख कर रहे थे, तभी न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा कि इलाहाबाद को वाराणसी से जोड़ने वाले राष्ट्रीय राजमार्ग को इन शिव भक्तों ने बाधित कर दिया था।

घटना पर चिंता व्यक्त करते हुए, प्रधान न्यायाधीश ने कहा, जो दूसरे की संपत्ति जलाते हैं, वे अपने घरों को क्यों नहीं जलाते। आप अपने घर जलाएं।

शीर्ष न्यायालय के 2009 के दिशानिर्देश के अनुसार विरोध प्रदर्शन के दौरान सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने के लिए प्रदशर्नकारी के नेता को जवाबदेह बनाने के आदेश दिए गए थे।

इस आदेश की ओर इशारा करते हुए प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा ने कहा कि उन्होंने गौरक्षक समूहों द्वारा लिंचिंग की घटना से निपटने के लिए दिशानिर्देश जारी किए हैं और किसी के भी द्वारा तोड़-फोड़ की घटना के लिए भी ऐसे ही दिशानिर्देश लागू होंगे।

अदालत ने कहा कि वह भीड़ या जिस भी प्रतीक के हैं, उनसे निपटने के लिए ऐसे ही दिशानिर्देश जारी किए जाएंगे।

फैसले को सुरक्षित रखते हुए, अदालत ने याचिकाकर्ता कोडुनगल्लौर फिल्म सोसायटी और महान्यायवादी से इन घटनाओं से निपटने के लिए दिशानिर्देश के लिए सुझाव मांगे।

अदालत में जिन घटनाओं का जिक्र हुआ, उनमें मुंबई में मराठा आंदोलन, एससी/एसटी अधिनियम को कमजोर करने के आदेश के खिलाफ एससी/एसटी समूहों द्वारा हिंसा, ‘पद्मावत’ की रिलीज के समय करणी सेना के प्रदर्शन शामिल हैं।

महान्यायवादी ने कहा, भारत में हर सप्ताह कुछ न कुछ बड़ी घटनाएं होती हैं। इन घटनाओं को अंजाम देने वालों के खिलाफ कोई भी कार्रवाई नहीं होती।

उन्होंने कहा कि क्या कोई भी सभ्य समाज इन चीजों को सहन करेगा। जिन्होंने इस तरह का डर फैलाया है, उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई है।

याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील पी.वी. दिनेश ने कहा, कुछ भी नहीं हो रहा है, इसलिए यह इस तरह की छवि बन रही है कि यहां पूरी तरह से अराजकता है। आम लोगों का कहना है कि देश में कहीं भी कानून-व्यवस्था नहीं है।

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नेशनल

क्या रद्द होगी राहुल गांधी की भारतीय नागरिकता ?

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नई दिल्ली। राहुल गांधी के पास ब्रिटेन की भी नागरिकता है और इसलिए उनकी भारतीय नागरिकता रद्द कर दी जानी चाहिए.’ एस विग्नेश शिशिर ने यह दावा करते हुए एक जनहित याचिका दायर की है, जिस पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने केंद्रीय गृह मंत्रालय को फैसला करने का निर्देश दिया. इस दौरान केंद्र सरकार की तरफ से पेश डिप्टी सॉलिसिटर जनरल ने कहा, ‘याचिकाकर्ता की तरफ से कुछ दस्तावेज गृह मंत्रालय को मिले हैं और वह इस पर विचार कर रहा है कि राहुल गांधी की नागरिकता रद्द की जानी चाहिए या नहीं.’

जस्टिस एआर मसूदी और सुभाष विद्यार्थी की डिविजन बेंच ने अपर सॉलिसिटर जनरल एसबी पांडेय को निर्देश दिया कि वो तीन हफ्ते के अंदर इस बारे में गृह मंत्रालय से निर्देश प्राप्त करें और अगली तारीख पर इसका जवाब पेश करें. इस मामले की सुनवाई अब 19 दिसबंर को रखी गई है.

मामले की पूरी जानकारी

राहुल गांधी की नागरिकता से जुड़ा विवाद तब शुरू हुआ जब लखनऊ हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की गई, जिसमें आरोप लगाया गया कि राहुल गांधी के पास ब्रिटिश नागरिकता है। याचिकाकर्ता एस विग्नेश शिशिर ने दावा किया कि उन्होंने गहन जांच के बाद यह निष्कर्ष निकाला है कि राहुल गांधी के पास यूके की नागरिकता है। शिशिर ने यह भी कहा कि उनके पास कुछ गोपनीय जानकारी है, जिससे यह साबित होता है कि राहुल गांधी का विदेशी नागरिकता प्राप्त करना कानून के तहत भारतीय नागरिकता को रद्द करने का कारण हो सकता है।

पहले इस मामले में शिशिर की याचिका को जुलाई 2024 में खारिज कर दिया गया था, लेकिन इसके बाद शिशिर ने केंद्रीय गृह मंत्रालय के पास शिकायत की थी, जिसमें कोई एक्शन नहीं लिया गया। फिर से इस मामले को अदालत में लाया गया और अब गृह मंत्रालय से राहुल गांधी की नागरिकता पर स्पष्टीकरण मांगा गया है।

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