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न्याय, समता के लिए प्रगतिशील विधिक शिक्षा जरूरी : प्रधान न्यायाधीश

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नई दिल्ली, 1 सितम्बर (आईएएनएस)| सर्वोच्च न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा ने शनिवार को कहा कि भारत जैसे विकासशील देश में जहां समान अवसर में भी दोहरापन और विभाजन है वहां प्रगतिशील विधिक शिक्षा अत्यंत आवश्यक है, ताकि लोगों को न्याय और समानता का लक्ष्य प्राप्त हो। प्रधान न्यायाधीश यहां 10वें विधिक शिक्षक दिवस समारोह के अवसर पर ‘राष्ट्र निर्माण में विधिक संस्थानों की भूमिका’ विषय पर आयोजित संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि विधिक शिक्षा संस्थानों को छात्रों में कानून में निहित सामाजिक, नैतिक और राजनीतिक नजरिया विकसित करने पर ध्यान देना चाहिए।

प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा ने कहा कि कानून का कार्यान्वयन देश की विधिक शिक्षा की गुणवत्ता पर निर्भर करता है। उन्होंने कहा कि विधिक शिक्षा एक विज्ञान है जिससे कानून के छात्रों में परिपक्वता और समाज को समझने की चेतना पैदा होती।

संगोष्ठी का आयोजन सोसायटी ऑफ इंडियन लॉ फर्म्स (एसआईएलएफ) और मेनन इंस्टीट्यूट ऑफ लीगल एडवोकेसी ट्रेनिंग (एमआईएलटी) की ओर से किया गया था।

प्रधान न्यायाधीश ने कहा, पाठ्यक्रम इस प्रकार तैयार किया जाना चाहिए कि छात्रों को सिर्फ सैद्धांतिक शिक्षा न दी जाए, बल्कि उनको व्यावहारिक कौशल प्रशिक्षण भी मिले।

उन्होंने विधिक शिक्षा पाठ्यक्रम में कल्पित अदालती बहस प्रतियोगिता, प्रशिक्षण, कल्पित संसदीय बहस, मॉक ट्रायल को शामिल करने पर बल दिया। उन्होंने विधिक शिक्षण संस्थानों से विधिक शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार लाने की अपील की।

प्रधान न्यायाधीश ने राष्ट्रीय विधिक विश्विविद्यालयों की कार्यप्रणाली की सराहना की और कहा कि संस्थान देश में विधिक शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार लाने में काफी सफल रहा है।

उन्होंने कहा कि शिक्षक दिवस समारोह भारत के पूर्व राष्ट्रपति और भारत रत्न डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के दर्शन, विचार और कार्यो को याद करने का अवसर है। उन्होंने दुनिया को बताया कि राष्ट्र निर्माण का कार्य अच्छे शिक्षकों से आरंभ होता है जो गुणवत्तापूर्ण ज्ञान प्रदान करते हैं।

उन्होंने डॉ. राधाकृष्णन की एक सूक्ति का उल्लेख किया जिसमें उन्होंने कहा है-जीवन का आनंद व प्रसन्नता, ज्ञान और विज्ञान के आधार पर ही संभव होता है।

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नेशनल

क्या रद्द होगी राहुल गांधी की भारतीय नागरिकता ?

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नई दिल्ली। राहुल गांधी के पास ब्रिटेन की भी नागरिकता है और इसलिए उनकी भारतीय नागरिकता रद्द कर दी जानी चाहिए.’ एस विग्नेश शिशिर ने यह दावा करते हुए एक जनहित याचिका दायर की है, जिस पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने केंद्रीय गृह मंत्रालय को फैसला करने का निर्देश दिया. इस दौरान केंद्र सरकार की तरफ से पेश डिप्टी सॉलिसिटर जनरल ने कहा, ‘याचिकाकर्ता की तरफ से कुछ दस्तावेज गृह मंत्रालय को मिले हैं और वह इस पर विचार कर रहा है कि राहुल गांधी की नागरिकता रद्द की जानी चाहिए या नहीं.’

जस्टिस एआर मसूदी और सुभाष विद्यार्थी की डिविजन बेंच ने अपर सॉलिसिटर जनरल एसबी पांडेय को निर्देश दिया कि वो तीन हफ्ते के अंदर इस बारे में गृह मंत्रालय से निर्देश प्राप्त करें और अगली तारीख पर इसका जवाब पेश करें. इस मामले की सुनवाई अब 19 दिसबंर को रखी गई है.

मामले की पूरी जानकारी

राहुल गांधी की नागरिकता से जुड़ा विवाद तब शुरू हुआ जब लखनऊ हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की गई, जिसमें आरोप लगाया गया कि राहुल गांधी के पास ब्रिटिश नागरिकता है। याचिकाकर्ता एस विग्नेश शिशिर ने दावा किया कि उन्होंने गहन जांच के बाद यह निष्कर्ष निकाला है कि राहुल गांधी के पास यूके की नागरिकता है। शिशिर ने यह भी कहा कि उनके पास कुछ गोपनीय जानकारी है, जिससे यह साबित होता है कि राहुल गांधी का विदेशी नागरिकता प्राप्त करना कानून के तहत भारतीय नागरिकता को रद्द करने का कारण हो सकता है।

पहले इस मामले में शिशिर की याचिका को जुलाई 2024 में खारिज कर दिया गया था, लेकिन इसके बाद शिशिर ने केंद्रीय गृह मंत्रालय के पास शिकायत की थी, जिसमें कोई एक्शन नहीं लिया गया। फिर से इस मामले को अदालत में लाया गया और अब गृह मंत्रालय से राहुल गांधी की नागरिकता पर स्पष्टीकरण मांगा गया है।

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