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मुख्य समाचार

‘अलीगढ़’ का समलैंगिक प्रोफेसर आज होता तो उसे मरना नहीं पड़ता : मनोज

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मुंबई, 8 सितम्बर (आईएएनएस)| भारतीय दंड संहिता के ‘अनुच्छेद 377’ को निरस्त कर दिया गया है। फिल्म ‘अलीगढ़’ में मुख्य भूमिका निभा चुके अभिनेता मनोज बाजपेयी समलैंगिकता को अपराध मानने वाले कठोर कानून को सर्वोच्च न्यायालय द्वारा खत्म किए जाने से खुश हैं।

मनोज ने कहा, मैंने ‘अलीगढ़’ में जब समलैंगिक प्रवक्ता रामचंद्र सिरास का किरदार निभाया, तब मैंने जाना कि अकेलापन क्या होता है। मेरे लिए व्यक्ति का अकेलापन उसकी यौन उन्मुक्तता से ज्यादा मायने रखता है। मुझे लगता है कि सर्वोच्च न्यायालय का फैसला देशभर के ऐसे सताए गए और भेदभाव से पीड़ित लोगों की जीत है।

उन्होंने कहा, कमजोर लोगों की मदद के लिए हम सबको सरकार और कानून की जरूरत है। ‘अलीगढ़’ का प्रोफेसर अगर आज होता तो उसे मरना नहीं पड़ता।

अभिनेता ने समलैंगिक प्रोफेसर का किरदार निभाने के दौरान के अपने संघर्ष को याद करते हुए कहा, मैं तब अकेलेपन से परेशान एक आदमी जैसा महसूस करता था, जिसे सेक्स से ज्यादा किसी के साथ की जरूरत थी। एलजीबीटी समुदाय के हमारे सभी साथियों को हमारे समर्थन और मदद की जरूरत है। सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय से समलैंगिक लोगों के लिए स्थिति सामान्य करने की दिशा में एक कदम आगे बढ़ा है। लेकिन उनके अधिकारों के लिए हमें अभी लंबा सफर तय करना है।

कई लोगों के विपरीत, मनोज को यह नहीं लगता कि फिल्म उद्योग में समलैंगिकों के लिए भेदभाव है।

उन्होंने कहा, अन्य क्षेत्रों की तरह यहां भी यह समुदाय है। लेकिन मुझे नहीं लगता कि हमारे फिल्म उद्योग में विशेष रूप से समलैंगिकों से भेदभाव किया जाता है। जब ‘अलीगढ़’ के सामने कई बाधाएं आईं, तो मीडिया ने इसका बचाव किया। यद्यपि ट्रेलर को ‘ए’ प्रमाण पत्र मिला था, जिससे हम इसे टीवी पर नहीं दिखा सकते थे। इसके बावजूद चैनलों ने हमें संगीत और डांस शोज में फिल्म का प्रचार करने के लिए आमंत्रित किया।

मनोज ने कहा, नई फिल्म ‘गली गुलियां’ में मैंने ‘अलीगढ़’ में अकेलेपन के शिकार समलैंगिक व्यक्ति से भी ज्यादा अकेले व्यक्ति का किरदार निभाया है। ऐसी फिल्मों को समर्थन मिलना चाहिए। ऐसे किरदार निभाकर मैं गर्व महसूस करता हूं। ऐसी फिल्मों के लिए थिएटरों की कमी और फिल्म के लिए उपयुक्त समय नहीं दिए जाने से मुझे गुस्सा आता है।

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नेशनल

क्या रद्द होगी राहुल गांधी की भारतीय नागरिकता ?

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नई दिल्ली। राहुल गांधी के पास ब्रिटेन की भी नागरिकता है और इसलिए उनकी भारतीय नागरिकता रद्द कर दी जानी चाहिए.’ एस विग्नेश शिशिर ने यह दावा करते हुए एक जनहित याचिका दायर की है, जिस पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने केंद्रीय गृह मंत्रालय को फैसला करने का निर्देश दिया. इस दौरान केंद्र सरकार की तरफ से पेश डिप्टी सॉलिसिटर जनरल ने कहा, ‘याचिकाकर्ता की तरफ से कुछ दस्तावेज गृह मंत्रालय को मिले हैं और वह इस पर विचार कर रहा है कि राहुल गांधी की नागरिकता रद्द की जानी चाहिए या नहीं.’

जस्टिस एआर मसूदी और सुभाष विद्यार्थी की डिविजन बेंच ने अपर सॉलिसिटर जनरल एसबी पांडेय को निर्देश दिया कि वो तीन हफ्ते के अंदर इस बारे में गृह मंत्रालय से निर्देश प्राप्त करें और अगली तारीख पर इसका जवाब पेश करें. इस मामले की सुनवाई अब 19 दिसबंर को रखी गई है.

मामले की पूरी जानकारी

राहुल गांधी की नागरिकता से जुड़ा विवाद तब शुरू हुआ जब लखनऊ हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की गई, जिसमें आरोप लगाया गया कि राहुल गांधी के पास ब्रिटिश नागरिकता है। याचिकाकर्ता एस विग्नेश शिशिर ने दावा किया कि उन्होंने गहन जांच के बाद यह निष्कर्ष निकाला है कि राहुल गांधी के पास यूके की नागरिकता है। शिशिर ने यह भी कहा कि उनके पास कुछ गोपनीय जानकारी है, जिससे यह साबित होता है कि राहुल गांधी का विदेशी नागरिकता प्राप्त करना कानून के तहत भारतीय नागरिकता को रद्द करने का कारण हो सकता है।

पहले इस मामले में शिशिर की याचिका को जुलाई 2024 में खारिज कर दिया गया था, लेकिन इसके बाद शिशिर ने केंद्रीय गृह मंत्रालय के पास शिकायत की थी, जिसमें कोई एक्शन नहीं लिया गया। फिर से इस मामले को अदालत में लाया गया और अब गृह मंत्रालय से राहुल गांधी की नागरिकता पर स्पष्टीकरण मांगा गया है।

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