उत्तराखंड
जंगलों को सुलगने से बचाने में क्यों कछुआ चाल चल रहा उत्तराखंड वन विभाग
पहाड़ों को हमेशा से शांति का प्रतीक माना गया है, लेकिन पिछले कई वर्षों सें हिमालयी क्षेत्रों में बढ़ते तापमान और वन विभाग की सुस्ती से पर्वतीय जंगलों में आग लगने के कई मामले सामने आए हैं। इस वर्ष जम्मू-कश्मीर, हिमाचल और उत्तराखंड के जंगलों में जनवरी से ही आग की घटनाएं देखी गईं। इन घटनाओं ने शांत रहने वाले पहाड़ों का रौद्ररूप भी दिखाया है।
जंगलों के लग रही आग की प्रमुख वजह बताते हुए प्रमुख वन संरक्षक (प्रशासन) वन विभाग, उत्तराखंड रंजना काला बताती हैं, ” फरवरी 15 से जून में बारिश आने तक जंगलों में आग लगने के मामले ज़्यादा देखने को मिलते हैं, इसका मुख्य कारण है जंगलों में बड़ी मात्रा चीड़ की पत्तियों का गिरना। चीड़ की पत्तियां अधिक ज्वलनशील होती हैं, इससे तापमान बढ़ने पर जंगल में फैली चीड़ की पत्तियों में आग लगने से बड़ी घटना होने का खतरा रहता है।”
उत्तराखंड में 40,000 हेक्टेयर भूमि पर अकेले चीड़ के जंगल हैं। मार्च से लेकर जून तक चीड़ के पेड़ से नुकीली पत्तियां (पिरुल) गिरती हैं। उत्तराखंड वन विभाग के अनुसार पिछले दस साल में राज्य में करीब 3,000 हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र में फैले वन जले हैं। करीब एक लाख हेक्टेयर क्षेत्र में फैले वन प्रभाग के 14,000 हेक्टेयर हिस्से में अकेले चीड़ के जंगल हैं।
उत्तराखंड वन विभाग के पास दमकल कर्मचारियों की कमी भी पहाड़ों पर आग लगने का एक बड़ा कारण है। कर्मचारियों की कमी के कारण दमकल दल को मुख्य घटना क्षेत्र तक पहुंचाने में समय लग जाता है, इससे जंगलों में वनाग्नि से काफी नुकसान हो जाता है।इस वर्ष उत्तराखंड में हज़ार हेक्टेयर तक जंगल जल चुके हैं।
” सरकार से मिल रहे बजट से अधिक वन दमकल कर्मचारियों को तैनाती नहीं मिल सकती है, इसलिए विभाग अधिकतर दमकल कर्मचारियों को मानदेय पर पीक टाइम ( फरवरी से जून तक ) में टेम्प्रेरी बेसिस पर रखा जाता है।” प्रमुख वन संरक्षक रंजना काला ने बताया। वो आगे बताती हैं कि जब भी किसी जंगल में आग लगती है, तो उसकी सूचना हमारे डाटाबेस पर तुरंत आ जाती है। यह जानकारी मिलने के बाद हम उस जिले के संबंधित मास्टर कंट्रोल रुम तक इसकी सूचना पहुंचा देते हैं। सूचना मिलने के बाद वन विभाग के कर्मचारी आग को बुझाने निकलते हैं। इसमें स्थानीय ग्रामीणों की भी मदद ली जाती है।
अमेरिकन स्पेस एजेंसी नासा ने पिछले दिनों भारत की एक ऐसी सैटेलाइट इमेज जारी की, जो हैरान करने वाली थी। इस तस्वीर में देश के वों हिस्से दिखाए गए थे, जहां इस समय आग लगी हुई है। दो मार्च को खींची हुई इस तस्वीर में उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र और दक्षिणी भारत के कुछ राज्य दिखाए गए हैं। इनमें लगी आग लाल रंग की बिंदियों के रूप में दिखाई दे रही है। नासा की ओर से भेजी गई तस्वीर में आप जलते हुए उत्तराखंड के जंगलों के हिस्से को साफ तौर पर देख सकते हैं।
उत्तराखंड के जंगलों में वनाग्नि सुरक्षा और आपदा प्रबंधन पर काम कर रहे वन विभाग के प्रमुख अधिकारी बीपी गुप्ता बताते हैं,” उत्तराखंड में वनाग्नि से निपटने के लिए 1,437 डीवीज़न कंट्रोल सेंटर हैं, इसमें से हर सेंटर पर करीब पांच-पांच कर्मचारी तैनात किए गए हैं। इस साल हमने सरकार से वनाग्नि सुरक्षा के लिए 60 करोड़ रुपए का बजट मांगा था, लेकिन हमें सिर्फ नौ करोड़ रुपए धनराशि ही प्राप्त हुई है।” वो आगे बताते हैं कि बजट की कमी के कारण जंगलों में लगने वाली आग को तेज़ी बुझाने में परेशानी होती है।
वन विभाग उत्तराखंड के मुताबिक इस वर्ष राज्य में 26 स्थानों में वनाग्नि के अलर्ट मिले हैं। इनमें से सबसे अधिक मामले पौड़ी-गढ़वाल क्षेत्र के हैं। इस क्षेत्र में चीड़ के जंगल भी सबसे अधिक हैं।
पिछले हफ्ते बुधवार को उत्तराखंड के गढ़वाल के कनेरी क्षेत्र के जंगलों में आग फैल गई। यह आग तेज़ी से फैलती गई और बढ़कर डिडोली, और नंदप्रयाग के जंगलों तक फैल गई। जलते हुए जंगलों में आग पर काबू पाने के लिए गोपेश्वर रेंज वन अधिकारी आरती मैठाणी के नेतृत्व में 14 सदस्यीय टीम मौके पर आग बुझाने पहुंची लेकिन तब तक जंगल का अधिकांश हिस्सा जल चुका था।
उत्तराखंड
शीतकाल की शुरू होते ही केदारनाथ धाम के कपाट बंद
उत्तराखंड। केदारनाथ धाम में भाई दूज के अवसर पर श्रद्धालुओं के लिए शीतकाल का आगमन हो चुका है। बाबा केदार के कपाट रविवार सुबह 8.30 बजे विधि-विधान के साथ बंद कर दिए गए। इसके साथ ही इस साल चार धाम यात्रा ठहर जाएगी। ठंड के इस मौसम में श्रद्धालु अब अगले वर्ष की प्रतीक्षा करेंगे, जब कपाट फिर से खोलेंगे। मंदिर के पट बंद होने के बाद बाबा की डोली शीतकालीन गद्दीस्थल की ओर रवाना हो गई है।इसके तहत बाबा केदार के ज्योतिर्लिंग को समाधिरूप देकर शीतकाल के लिए कपाट बंद किए गए। कपाट बंद होते ही बाबा केदार की चल उत्सव विग्रह डोली ने अपने शीतकालीन गद्दीस्थल, ओंकारेश्वर मंदिर, उखीमठ के लिए प्रस्थान किया।
बता दें कि हर साल शीतकाल की शुरू होते ही केदारनाथ धाम के कपाट बंद कर दिया जाते हैं. इसके बाद बाबा केदारनाथ की डोली शीतकालीन गद्दीस्थल ओंकारेश्वर मंदिर ऊखीमठ के लिए रवाना होती है. अगले 6 महीने तक बाबा केदार की पूजा-अर्चना शीतकालीन गद्दीस्थल ओंकारेश्वर मंदिर ऊखीमठ में ही होती है.
उत्तरकाशी ज़िले में स्थिति उत्तराखंड के चार धामों में से एक गंगोत्री में मां गंगा की पूजा होती है। यहीं से आगे गोमुख है, जहां से गंगा का उदगम है। सबसे पहले गंगोत्री के कपाट बंद हुए हैं। अब आज केदारनाथ के साथ-साथ यमुनोत्री के कपाट बंद होंगे। उसके बाद आखिर में बदरीनाथ धाम के कपाट बंद किए जाएंगे।
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