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उत्तराखंड

सत्ता का संघर्ष अब जनता की अदालत में

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सत्ता का संघर्ष, जनता की अदालत में, मुख्यमंत्री हरीश रावत, कांग्रेस के नौ विधायकों द्वारा विद्रोह, विनियोग विधेयक को गलत ढंग से पारित

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सत्ता का संघर्ष, जनता की अदालत में, मुख्यमंत्री हरीश रावत, कांग्रेस के नौ विधायकों द्वारा विद्रोह, विनियोग विधेयक को गलत ढंग से पारित

देहरादून। डेढ़ दशक पूर्व वजूद में आए उत्तराखंड राज्य में सत्ता का संघर्ष नित नये नये रंग दिखा रहा है। जनता की बात करने वाले नेताओं ने अपना निशाना सिर्फ कुर्सी पर साधा हुआ है। यही वजह है कि 18 मार्च को कांग्रेस के नौ विधायकों द्वारा विद्रोह से शुरु हुई लड़ाई अब हाईकोर्ट होते हुए सीधे जनता की अदालत में पहुंच गई है। बजट के विरोध में मतदान करने का दावा करने वाले बागी विधायकों ने जब सदन में मोर्चा खोला तो उस समय मुख्यमंत्री हरीश रावत के नेतृत्व में कांग्रेस ने भाजपा और बागी विधायकों की रणनीति को जमीन दिखाने का तानाबाना बुना। कार्यवाही के आगे बढ़ने के साथ ही बागी विधायकों ने राज्यपाल के समक्ष गुहार लगाई।

बताया गया कि विनियोग विधेयक को गलत ढंग से पारित किया गया। भाजपा ने इस मुद्दे पर राष्ट्रपति भवन में गुहार लगाई और मांग की कि उत्तराखंड में रावत सरकार अल्पमत में है, लिहाजा सरकार को भंग किया जाना चाहिए। इस बीच कांग्रेस आलाकमान ने राष्ट्रपति से मुलाकात कर रावत के बहुमत में होने का दावा किया। राज्यपाल ने केन्द्र सरकार और राष्ट्रपति को उत्तराखंड के तत्कालिक हालात को लेकर रिपोर्ट भेजी तथा रावत सरकार को 28 मार्च तक बहुमत सिद्ध करने का वक्त दे दिया। इस पर भाजपा ने ऐतराज किया कि रावत को बहुमत सिद्ध करने के लिए अधिक वक्त दिया जा रहा है।

कांग्रेस की शिकायत पर विधानसभा अध्यक्ष कुंजवाल ने बागी विधायकों को नोटिस जारी कर 26 मार्च तक जवाब दाखिल करने का समय दिया। पहले तो बागी विधायकों ने नोटिस की वैधता पर सवाल उठाये परन्तु एक बागी विधायक सुबोध उनियाल ने जवाब दाखिल करते हुए इस मामले में पर्याप्त समय देने का आग्रह किया गया। दूसरी ओर एक निजी चैनल पर मुख्यमंत्री हरीश रावत का विधायकों की खरीद फरोख्त करने वाला स्टिंग आपरेशन चला तो सियासी पारा आसमान पर पहुंच गया। रातोंरात राज्य में राष्ट्रति शासन लागू कर दिया गया और कुंजवाल ने बागी नौ विधायकों की सदस्यता समाप्त कर दी।

बदले राजनैतिक परिदृश्य में 71 सदस्यीय विधानसभा में एक-एक विधायक की अहमियत बहुत बढ़ गई है। कांग्रेस और भाजपा, दोनों को ही अपने-अपने किले में सेंधमारी की आशंका सता रही है। बगावत के बाद कांग्रेस में 28 विधायक रह गए है। इनके अलावा छह विधायक पीडीएफ के हैं जो कि कांग्रेस के साथ हैं। भाजपा के एक निलंबित विधायक भी कांग्रेस खेमें में हैं। अर्थात कांग्रेस के पास सब मिलाकर 35 विधायक हैं जो कि बहुमत 36 के आंकड़े से एक कम है। यदि बागियों की सदस्यता बहाल हो जाती है तो भाजपा के पास 27 अपने विधायकों के साथ साथ यह आंकड़ा 36 का पहुंच जाता है। इसके अतिरिक्त भाजपा सतपाल महाराज के निकट समझे जाने वाले लगभग आधा दर्जन विधायकों को अपने पाले में खींचने की भी कोशिश कर सकती है। यदि ऐसा होता है तो भाजपा आंकड़ों के खेल में कांगे्रस को मात दे सकती है।

 

 

उत्तराखंड

शीतकाल की शुरू होते ही केदारनाथ धाम के कपाट बंद

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उत्तराखंड। केदारनाथ धाम में भाई दूज के अवसर पर श्रद्धालुओं के लिए शीतकाल का आगमन हो चुका है। बाबा केदार के कपाट रविवार सुबह 8.30 बजे विधि-विधान के साथ बंद कर दिए गए। इसके साथ ही इस साल चार धाम यात्रा ठहर जाएगी। ठंड के इस मौसम में श्रद्धालु अब अगले वर्ष की प्रतीक्षा करेंगे, जब कपाट फिर से खोलेंगे। मंदिर के पट बंद होने के बाद बाबा की डोली शीतकालीन गद्दीस्थल की ओर रवाना हो गई है।इसके तहत बाबा केदार के ज्योतिर्लिंग को समाधिरूप देकर शीतकाल के लिए कपाट बंद किए गए। कपाट बंद होते ही बाबा केदार की चल उत्सव विग्रह डोली ने अपने शीतकालीन गद्दीस्थल, ओंकारेश्वर मंदिर, उखीमठ के लिए प्रस्थान किया।

बता दें कि हर साल शीतकाल की शुरू होते ही केदारनाथ धाम के कपाट बंद कर दिया जाते हैं. इसके बाद बाबा केदारनाथ की डोली शीतकालीन गद्दीस्थल ओंकारेश्वर मंदिर ऊखीमठ के लिए रवाना होती है. अगले 6 महीने तक बाबा केदार की पूजा-अर्चना शीतकालीन गद्दीस्थल ओंकारेश्वर मंदिर ऊखीमठ में ही होती है.

उत्तरकाशी ज़िले में स्थिति उत्तराखंड के चार धामों में से एक गंगोत्री में मां गंगा की पूजा होती है। यहीं से आगे गोमुख है, जहां से गंगा का उदगम है। सबसे पहले गंगोत्री के कपाट बंद हुए हैं। अब आज केदारनाथ के साथ-साथ यमुनोत्री के कपाट बंद होंगे। उसके बाद आखिर में बदरीनाथ धाम के कपाट बंद किए जाएंगे।

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