उत्तराखंड
क्या कोलकत्ता फ्लाईओवर हादसे से सबक लेगा प्रशासन
सुनील परमार
देहरादून। कोलकत्ता के गणेश टाकीज के निकट निर्माणाधीन पुल के गिरने से दो दर्जन से भी अधिक लोगों की जान जा चुकी है और इसके अलावा सौ से भी अधिक लोग घायल हुए हैं। इस हादसे के बाद देहरादून के निवासियों के माथे पर भी चिन्ता की सलवटें पड़ गई हैं। स्थानीय निवासियों को चिन्ता सता रही है कि यदि इन पुलों की गुणवत्ता भी कमजोर हुई तो क्या होगा? देहरादून में पिछले तीन वर्षों से तीन फ्लाईओवरों का निर्माण कार्य कछुआ गति से चल रहा है। आज की खबर इस संबंध में पहले भी खबर देता रहा है कि तीन फ्लाईओवरों का निर्माण समयसीमा से कई बार आगे चला गया है और अब भी इसमें महीनों और लग सकते हैं। सबसे अहम बात यह है कि लगभग डेढ़ सौ करोड़ रुपये की लागत से निर्मित हो रहे इन पुलों की गुणवत्ता को लेकर अब भी सवाल उठ रहे हैं।
दून में भी बन रहे तीन फ्लाईओवर की गुणवत्ता पर हैं सवाल
निर्माणदायी संस्था यूपीसीएल ने इन पुलों को बीते वर्ष में निर्मित करना था लेकिन समयसीमा के एक साल बाद भी पुल तैयार नहीं हुए हैं। बल्लीवाला और बल्लूपुर में लगभग चार-पांच माह का समय लग सकता है जबकि आईएसबीटी पुल का निर्माण कार्य भी तीन माह से पहले पूरा होने के आसार नहीं हैं, जबकि इसकी समय सीमा जुलाई 2015 थी। जीएमएस रोड के विजय पार्क निवासी एनएस चैहान का कहना है कि कोलकत्ता पुल हादसे से यहां के सभी निवासी सहमे हुए हैं। वैसे भी उत्तराखंड में सड़कों की क्वालिटी को लेकर हमेशा सवाल उठते रहे हैं। टर्नर रोड निवासी संजय बिष्ट बताते हैं कि आईएसबीटी के पुल निर्माण में देरी से यहां के निवासियों का जीना हराम हो गया है।
तीनों पुल घनी आबादी वाले इलाकों में निर्मित हो रहे
इन पुलों का निर्माण यातायात के बोझ को कम करने के लिए किया जाना था लेकिन ये यातायात का बोझ बढ़ा रहे हैं। भ्रष्टाचार की आशंका से भी इनकार नहीं किया जा सकता है। तीनों ही निर्माणाधीन पुलों के बहुत नजदीक आबादी रहती है और 24 घंटे यातायात जाम भी। ऐसे में यदि कोई अनहोनी होती है तो फिर यहां भी बड़ी संख्या में लोग हताहत होंगे। उधर, लोनिवि के अफसरों का कहना है कि पुलों का निर्माण पूरी गुणवत्ता के साथ हो रहा है। उनका तर्क है कि पुल पर लगने वाला सभी मटिरियल नेशनल एक्रीडेएशन बोर्ड फाॅर टेस्टिंग एंड काॅलीब्रेशन लेबोरिटी (एनएबीएल) की अनुमति के बाद ही पुल में इस्तेमाल किया जा रहा है। इस कारण कोलकत्ता की तर्ज पर कोई हादसा होने की आशंका नहीं है।
उत्तराखंड
शीतकाल की शुरू होते ही केदारनाथ धाम के कपाट बंद
उत्तराखंड। केदारनाथ धाम में भाई दूज के अवसर पर श्रद्धालुओं के लिए शीतकाल का आगमन हो चुका है। बाबा केदार के कपाट रविवार सुबह 8.30 बजे विधि-विधान के साथ बंद कर दिए गए। इसके साथ ही इस साल चार धाम यात्रा ठहर जाएगी। ठंड के इस मौसम में श्रद्धालु अब अगले वर्ष की प्रतीक्षा करेंगे, जब कपाट फिर से खोलेंगे। मंदिर के पट बंद होने के बाद बाबा की डोली शीतकालीन गद्दीस्थल की ओर रवाना हो गई है।इसके तहत बाबा केदार के ज्योतिर्लिंग को समाधिरूप देकर शीतकाल के लिए कपाट बंद किए गए। कपाट बंद होते ही बाबा केदार की चल उत्सव विग्रह डोली ने अपने शीतकालीन गद्दीस्थल, ओंकारेश्वर मंदिर, उखीमठ के लिए प्रस्थान किया।
बता दें कि हर साल शीतकाल की शुरू होते ही केदारनाथ धाम के कपाट बंद कर दिया जाते हैं. इसके बाद बाबा केदारनाथ की डोली शीतकालीन गद्दीस्थल ओंकारेश्वर मंदिर ऊखीमठ के लिए रवाना होती है. अगले 6 महीने तक बाबा केदार की पूजा-अर्चना शीतकालीन गद्दीस्थल ओंकारेश्वर मंदिर ऊखीमठ में ही होती है.
उत्तरकाशी ज़िले में स्थिति उत्तराखंड के चार धामों में से एक गंगोत्री में मां गंगा की पूजा होती है। यहीं से आगे गोमुख है, जहां से गंगा का उदगम है। सबसे पहले गंगोत्री के कपाट बंद हुए हैं। अब आज केदारनाथ के साथ-साथ यमुनोत्री के कपाट बंद होंगे। उसके बाद आखिर में बदरीनाथ धाम के कपाट बंद किए जाएंगे।
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