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अर्थव्‍यवस्‍था को पटरी से उतारने में लगा विपक्ष

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लोकतंत्र में मजबूत विपक्ष, अर्थशास्त्री पीएम, यूपीए सरकार, मनमोहन सिंह, विकास दर 5 से छह प्रतिशत, रेटिंग एजेंसियों, भारतीय अर्थव्यसवस्थार, नकारात्मलक अंक, 10 प्रतिशत विकास दर, नरेंद्र मोदी भारत के प्रधानमंत्री, सरकार की नीतिगत जड़ता

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लोकतंत्र में मजबूत विपक्ष हमेशा फलदायी होता है लेकिन इसके उलट मजबूर विपक्ष देश की व्‍यवस्‍थाओं के लिए घातक भी हो सकता है। वर्तमान में केंद्रीय भारतीय विपक्षी दलों का यही हाल है। जब यूपीए सरकार ने मनमोहन सिंह के नेतृत्‍व में दूसरी बार केंद्र की सत्‍ता संभाली उस समय यही लगा था कि एक अर्थशास्‍त्री पीएम के होने से देश की अर्थव्‍यवस्‍था को पंख लग जाएंगे यह आशावाद इसलिए भी था क्‍योंकि भारत में उदारीकरण के जन्‍मदाता मनमोहन सिंह ही माने जाते हैं। 1991 में नरसिंहराव सरकार में वित्‍त मंत्री रहते उन्‍होंने उदारीकरण का जो रास्‍ता अपनाया था कमोबेश उसी पर बाद की सभी सरकारें चलीं लेकिन यूपीए2 में हुए भयंकर घोटालों ने देश की आर्थिक स्थिति को रसातल में पहुंचा दिया।

यूपीए2 के शासन काल में विकास दर 5 से छह प्रतिशत के बीच झूलती रही कई वित्‍तमंत्री बदलने के बाद भी स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ विश्‍व की लगभग सभी रेटिंग एजेंसियों ने भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था को नकारात्‍मक अंक दिए। मोदी सरकार को सत्‍ता संभाले अभी एक वर्ष भी ठीक तरह से नहीं हुआ है और विकास दर 7.5 प्रतिशत से ज्‍यादा पहुंच गई है। रेटिंग एजेंसियों ने भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था को विश्‍व की सबसे तेज अर्थव्‍यवस्‍था का दर्जा दिया है। 80रूपये तक पहुंच चुके डालर के दाम आज फिर 60 से 65 के बीच हैं। आज हम 10 प्रतिशत विकास दर के सपने देखने लगे हैं और ऐसा लगता है प्राप्‍त भी कर लेंगे।

आखिर ऐसा क्‍यों हुआ? वही देश, वही व्‍यवस्‍थाएं, वही तंत्र, सब कुछ वही तो फिर यह बदलाव क्‍यों और कैसे हुआ? जवाब सिर्फ यही नहीं कि नरेंद्र मोदी भारत के प्रधानमंत्री बन गए, जवाब यह भी है कि सरकार की नीतिगत जड़ता समाप्‍त हुई जो पिछले दस सालों में यूपीए को लग गई थी।

ऐसा नहीं है कि आर्थिक मोर्चे पर सबकुछ पूरी तरह से ठीक ही हो गया है अभी बहुत कुछ करने की जरूरत है लेकिन विपक्ष खासकर कांग्रेस द्वारा राज्‍यसभा में सरकार के बहुमत न होने का फायदा उठाकर पटरी पर आती भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था की राह में जानबूझकर रोड़े अटकाए जा रहे हैं। लैंड बिल, जीएसटी बिल आदि कुछ ऐसे बिल हैं जिनके लागू होते ही भारतीय अर्थव्‍यव्‍स्‍था की गति वर्तमान से बहुत तेज हो जाएगी।

2014 के चुनावों ने कांग्रेस को सन्निपात की स्थिति में पहुंचा दिया तो उसके लिए क्‍या नरेंद्र मोदी दोषी हैं? कांग्रेस को आत्‍ममंथन करना चाहिए कि उसकी कौन सी गलती ने भारतीय जनता को उनसे दूर कर दिया। बजाय इस आत्‍ममंथन के वो भारत के विकास की राह रोके खड़े हैं। कांग्रेस द्वारा 2013 में पेश किए गए लैंड बिल उनके तमाम मंत्रिमंडलीय सहयोगियों के साथ-साथ कई कांग्रेसी मुख्‍यमंत्रियों ने भी नकार दिया था। आज उसी बिल का महिमामंडन करते कांग्रेस के युवराज नहीं थक रहे हैं। उन्‍हें यह भी बताना चाहिए कि यदि वह बिल इतना ही अच्‍छा था तो उसे वह पास क्‍यों नहीं करवा पाए? अपने ही मंत्रियों व मुख्‍यमंत्रियो में एकराय क्‍यों नहीं बना पाए?

अपनी खोई हुई राजनीतिक जमीन को प्राप्‍त करने की कोशिश हर राजनैतिक दल को करनी चाहिए लेकिन यह कोशिश देश के विकास की कीमत पर नहीं हो सकती। कांग्रेस सहित समूचे विपक्ष को सकारात्‍मक विपक्ष की भूमिका निभानी चाहिए क्‍योंकि देश की जनता सब देख रही है। भारत में अब ऐसा नहीं हो सकता कि सरकारें कुछ भी करती रहें और जनता को कुछ पता ही न चले। भारतीय जनमानस और भारतीय मीडिया इतनी जागरूक हो चुकी है कि कोई सरकार जनता को बहुत दिनों तक धोखा नहीं दे सकती। और फिर पांच साल बाद तो लोकतंत्र का पर्व फिर आएगा ही गलत करने वालों को जनता सबक सिखाएगी जरूर।

 

नेशनल

जम्मू-कश्मीर: आतंकियों ने सेना के दो जवानों का किया अपहरण, एक भागने में कामयाब, दूसरे का गोलियों से छलनी शव मिला

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नई दिल्ली। जम्मू-कश्मीर के अनंतनाग के जंगली इलाके में आतंकियों ने सेना के 2 जवानों का अपहरण कर लिया। हालांकि, एक जवान आतंकियों के चंगुल से छूटकर वापस आने में कामयाब हो गया है, लेकिन दूसरे की बेरहमी से ह्त्या कर दी गई है। उसका गोलियों से छलनी शव बरामद हुआ है।

प्रारंभिक जानकारी के अनुसार दोनों जवान प्रादेशिक सेना की 161वीं इकाई के हैं। 8 अक्टूबर को शुरू किए गए आतंकवाद विरोधी अभियान के दौरान जंगली इलाके से उन्हें अगवा किया गया। इनमें से एक जवान भागने में सफल रहा। उसे दो गोली लगी है। बुधवार सुबह दूसरे जवान का शव मिला। उसके शरीर पर गोलियों के कई निशान हैं।

घायल जवान को इलाज के लिए अस्पताल में भर्ती कराया गया है। उसकी स्थिति स्टेबल है। आतंकियों की तलाश के लिए पूरे इलाके की घेराबंदी की गई है। बड़े स्तर पर सर्च ऑपरेशन चलाया जा रहा है।

बता दें कि यह घटना ऐसे समय पर हुई है जब 8 अक्टूबर को ही जम्मू-कश्मीर में मतगणना संपन्न हुई है और अब यहां नई सरकार बनने जा रही है। नेशनल कांफ्रेंस-कांग्रेस गठबंधन यहां सरकार बनाने जा रही है। अब राज्य सरकार के साथ ही केंद्र सरकार की भी चुनौती बढ़ जाएगी। सफल चुनाव आयोजन से पाकिस्तान और पाक परस्त संगठन खार खाए बैठे हैं। इसके बाद अब यहां आतंकी गतिविधियों में भारी इजाफा होने की आशंका है।

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