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आध्यात्म

इस साल कब है धनतेरस? जानिए पूजा का शुभ मुहूर्त, महत्व और विधि

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When is Dhanteras this year?

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नई दिल्ली। हिंदू धर्म के प्रमुख त्योहारों में से एक दीपावली का हर किसी को साल भर इंतजार रहता है। दीपोत्सव का यह पर्व पूरे पांच दिनों तक चलता है, जिसकी शुरुआत धनतेरस से होती है। धनतेरस का पर्व छोटी दिवाली से एक दिन पहले मनाया जाता है।

पंचांग के अनुसार धनतेरस का पर्व कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन मनाया जाता है। इस दिन धन्वंतरि देव, लक्ष्मी जी और कुबेर महाराज की पूजा-अर्चना की जाती है। साथ ही किसी भी वस्तु की खरीदारी के लिए यह दिन उत्तम माना जाता है।

मान्यता है कि धनतेरस के दिन खरीदी गई चल-अचल संपत्ति में तेरह गुणा वृद्धि होती है। यही वजह है कि लोग इस दिन बर्तनों की खरीदारी के अलावा सोने-चांदी की चीजें भी खरीदते हैं।

धनतेरस तिथि

कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन धनतेरस मनाई जाती है। इस साल यह तिथि 10 नवंबर को दोपहर 12 बजकर 35 मिनट से शुरू हो रही है। इस तिथि का समापन अगले दिन 11 नवंबर की दोपहर 01 बजकर 57 मिनट पर होगा। धनतेरस के दिन पूजा प्रदोष काल में होती है, इसलिए धनतेरस 10 नवंबर को मनाई जाएगी।

धनतेरस 2023 पूजा मुहूर्त

इस दिन पूजा का शुभ मुहूर्त शाम 05 बजकर 47 मिनट से रात 07 बजकर 47 मिनट तक है।

धनतेरस पर खरीदारी का शुभ मुहूर्त

धनतेरस पर सोना-चांदी और बर्तन खरीदना शुभ माना जाता है। इस साल 10 नवंबर को धनतेरस के दिन सोना और चांदी खरीदने का सबसे शुभ समय दोपहर 2 बजकर 35 मिनट से 11 नवंबर 2023 की सुबह 6 बजकर 40 मिनट के बीच है। इसके अलावा यदि आप इस समय खरीदारी से चूक जाते हैं, तो 11 नवंबर को सुबह 06 बजकर 40 मिनट से दोपहर 1 बजकर 57 मिनट के बीच सामान खरीद सकते हैं।

धनतेरस की पूजा विधि

धनतेरस के दिन शाम के वक्त यानी प्रदोष के दौरान काल शुभ मुहूर्त में उत्तर की ओर कुबेर और धन्वंतरि देव की प्रतिमा स्थापित करें।

साथ ही मां लक्ष्मी व गणेश जी की भी प्रतिमा या तस्वीर स्थापित करें। फिर दीप प्रज्वलित करें और विधिवत पूजा शुरू करें।

सभी देवों को तिलक लगाएं। इसके बाद पुष्प, फल आदि चीजें अर्पित करें।

कुबेर देवता को सफेद मिष्ठान और धन्वंतरि देव को पीले मिष्ठान का भोग लगाएं।

पूजा के दौरान ‘ऊँ ह्रीं कुबेराय नमः’ इस मंत्र का जाप करते रहें।

भगवान धन्वंतरि को प्रसन्न करने के लिए इस दिन धन्वंतरि स्तोत्र का पाठ जरूर करें।

धनतेरस का महत्व

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार समुद्र मंथन के दौरान कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन भगवान धन्वंतरि अपने हाथों में अमृत का कलश लेकर प्रकट हुए थे। इसलिए इस दिन उनका पूजन किया जाता है।

धनतेरस के दिन धन की देवी लक्ष्मी, धन कोषाध्यक्ष कुबेर और भगवान धन्वंतरि की पूजा की जाती है। मान्यता है कि इस दिन विधि पूर्वक पूजा करने से घर में धन की कमी नहीं होती है।

 

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आध्यात्म

ऐतिहासिक महाकुंभ में ऐसा पहली बार हुआ, अखाड़े ने बनाया श्रील प्रभुपाद को विश्व गुरु

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लखनऊ/प्रयागराज। इस्कॉन और विश्वव्यापी हरे कृष्णा आंदोलन के संस्थापक एवं आचार्य श्री कृष्ण कृपामूर्ति ए.सी. भक्तिवेदांत स्वामी श्रील प्रभुपाद को इस ऐतिहासिक महाकुंभ के पावन अवसर पर अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद ने पहली बार ‘विश्व गुरु’ की उपाधि से सम्मानित किया। विश्व गुरु पट्टाभिषेक कार्यक्रम निरंजनी अखाड़ा के परिसर में नित्यानंद त्रयोदशी के पवन तिथि के अवसर में सम्पन्न हुआ। यह उपाधि श्रील प्रभुपाद को दुनिया भर में लाखों-करोड़ों अनुयायियों को सनातन धर्म से जोड़ने एवं इस्कॉन के प्रति देश-विदेश में उमड़ी श्रद्धा को देखते हुए दी गई।

निरंजनी पीठाधीश्वर श्री श्री 1008 स्वामी कैलाशनंद गिरी महाराज, श्रीमहंत रवींद्र पूरी जी महाराज अध्यक्ष अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद, आचार्य महामंडलेश्वर अवधूत अरुण गिरी जी श्री आवाहन अखाड़ा पीठाधीश, अखाड़ों के महामण्डलेश्वरगण, सचिव गण, श्रीमहंतगण एवं हजारों भक्तों की उपस्थिति में हुआ। हरे कृष्ण मूवमेंट और इस्कॉन बंगलौर के अध्यक्ष श्री मधु पंडित दास जी और वृन्दावन चंद्रोदय मंदिर के अध्यक्ष चंचलापति दास जी के पावन सानिध्य में स्वामी प्रभुपाद को यह सम्मान प्रदान किया गया। धन्यवाद प्रस्ताव भरतर्षभ दास ने की।
अखाड़ा परिषद ने इस अवसर पर कहा कि “हम सभी अत्यंत हर्ष एवं प्रसन्नता की अनुभूति कर रहे हैं कि परमपूज्य पाद श्रील प्रभुपाद जी को ‘विश्व गुरु’ की उपाधि दी गई। उनका योगदान सनातन धर्म के प्रसार में अद्वितीय है, और उनकी शिक्षाओं से लाखों लोगों का जीवन बदल चुका है।”

इस पावन अवसर पर श्री पंचायती निरंजनी अखाड़े के महामंडलेश्वर कैलाशानंद गिरी जी महाराज ने कहा कि पावन त्रिवेणी के संगम तट पर चल रहे विशाल, भव्य स्वच्छ और दिव्य महाकुंभ के पावन पर्व पर हमें आज उस महापुरुष के सानिध्य में बैठने का अवसर मिला। “यह उपाधि 1968 के कुछ दिनों बाद ही मिल जाना चाहिए था, लेकिन आज इस त्रिवेणी के पावन तट पर हम सभ को इस शुभ कार्य करने का श्रेय मिलना था।”

अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष रविन्द्र पुरी जी महाराज ने कहा कि श्रील प्रभुपाद महाराज जी के लिए यह विश्व गुरु की यह पदवी, सूर्य को दीया दिखाने के बराबर है। श्रील प्रभुपाद महाराज ने श्रीमद्भगवद्गीता और श्रीमद्भागवतम पर शानदार कार्य किया। आवाहन पीठाधीश्वर आचार्य महामंडलेश्वर श्री श्री 1008 अनंत श्री विभूषित अवधूत बाबा अरुण गिरी जी महाराज ने कहा कि लोग मुझे अवधूत कहते हैं लेकिन मैं स्वामी श्रील प्रभुपाद महाराज जी को अद्भुत कहता हूं। इस पावन अवसर पर स्वामी प्रभुपाद के अनुयायी दो-दो वृक्ष लगाने का संकल्प लें, तभी राधा रानी की प्राप्ति होगी।

वैश्विक हरे कृष्ण आंदोलन के चेयरमैन और संरक्षक, अक्षय पात्र फाउंडेशन के संस्थापक और चेयरमैन, वृंदावन चंद्रोदय मंदिर के चेयरमैन और इस्कॉन बैंगलोर के अध्यक्ष श्री मधु पंडित दास ने इस्कॉन और हरे कृष्ण आंदोलन के सभी अनुयायी की ओर से आचार्य श्रील प्रभुपाद को विश्व गुरु से अलंकृत कर सम्मानित करने का निश्चय करने के लिए अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के प्रति अपनी कृज्ञता व्यक्त करते हैं। उन्होंने कहा कि निरंजनी अखाड़े के महामंडलेश्वर कैलाशानंद गिरी का मुझपर विशेष प्रेम है, तभी यह सब संभव हो रहा है। उन्होंने श्रील प्रभुपाद के जीवन पर प्रकाश डालते हुए कहा कि श्रील प्रभुपाद ने संपूर्ण विश्व में सनातन धर्म को प्रसार कर ने के लिये बहुत सारे तपस्या की है।

श्रील प्रभुपाद एक छोटा परिचय

त्रिदंडी संन्यासी और गोस्वामी श्री श्रीमद ए. सी. भक्तिवेदांत स्वामी श्रील प्रभुपाद ब्रह्म-मध्व -गौड़ीय वैष्णव परम्परा के 32वें आचार्य हैं, जिन्होंने 70 वर्ष की आयु में श्री चैतन्य महाप्रभु और वृंदावन के 6 गोस्वामी की शिक्षाओं और हरि नाम संकीर्तन की महिमा को सफलतापूर्वक दुनिया भर में फैलाया और हजारों लोगों ने अपने जीवन को बदलकर सनातन धर्म के दर्शन और संस्कृति को अपनाया। श्रीमद्भगवद्गीता और श्रीमद्भागवतम पर उनके लेखन को दुनिया भर में 80 से अधिक भाषाओं में लाखों लोगों में वितरित किया गया है, और आज भी दुनिया भर में लाखों लोगों को सनातन धर्म अपनाने के लिए प्रेरित कर रहा है। दुनिया भर में सनातन धर्म के प्रसार में उनका योगदान अद्वितीय है।

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