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उत्तराखंडः बहुमत सिद्ध करने के लिए आंकड़ों का खेल
देहरादून। दो लोगों अथवा समूहों के बीच विरोधाभास को 36 का आंकड़ा कहा जाता है इसलिए कोई नहीं चाहता कि उसका किसी के साथ 36 का आंकड़ा हो, लेकिन उत्तराखंड के ताजा राजनीतिक हालातों में पूरी जंग ही 36 का आंकड़ा हासिल करने को लेकर है। कांग्रेस और भाजपा के बीच राजनैतिक तौर पर 36 का आंकड़ा है और दोनों ही दल विधानसभा में 36 का आंकड़ा छूना चाहते हैं। दरअसल, 70 सदस्यों की उत्तराखंड विधानसभा में बहुमत हासिल करने के लिए 36 विधायकों का समर्थन आवश्यक है। यह ऐसा जादुई अंक है, जिसे छूकर सत्ता सुख हासिल किया जा सकता है। ज्ञात हो कि 18 मार्च को विधानसभा में कांग्रेस के नौ बागी विधायकों ने हंगामा कर दिया था। इन विधायकों और भाजपा का कहना है कि हरीश रावत सरकार अल्पमत में है। सियासी ड्रामे के बीच ही 27 मार्च को उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया गया था।
उत्तराखण्ड का संकट
हाईकोर्ट ने 29 मार्च को आदेश दिया कि बहुमत का फैसला सदन के फ्लोर पर ही होगा और इसके लिए 31 मार्च की तारीख तय कर दी गई। हाईकोर्ट के फैसले के बाद फिर से 36 का आंकड़ा अहम बन गया है। बागी विधायकों की सदस्यता बरकरार रहती है तो सरकार बचाने के लिए हरीश रावत को 36 विधायक चाहिए, वहीं, भाजपा और बागी नहीं चाहते कि हरीश रावत के पास 36 का आंकड़ा हो। भाजपा और बागी 36 का यह आंकड़ा छूकर सत्ता का सपना संजोए बैठे हैं। अब देखना यह होगा कि अशुभ माना जाने वाला 36 का आंकड़ा किसके लिए शुभ होता है। दूसरी ओर भाजपा के पास सदन में 27 विधायकों का समर्थन है और 9 बागी भी उसके साथ हैं। भाजपा के दावे के मुताबिक उसके पास कुल 36 विधायकों का समर्थन हासिल है। लेकिन हाईकोर्ट के निर्णय की स्थिति में अब इसमें भी एक पेंच आ गया है। यानी सभी 9 बागी विधायकों को 31 मार्च को विश्वासमत के दौरान वोटिंग की अनुमति तो हाईकोर्ट ने दे दी है, लेकिन उनके मत को बंद लिफाफे में 1 अप्रैल को हाईकोर्ट में रखा जाएगा।
गौरतलब है कि दलबदल के तहत सभी 9 बागियों पर कार्रवाई कर स्पीकर ने उन्हें अयोग्य घोषित कर दिया था। बागियों ने स्पीकर के फैसले को मंगलवार को ही हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। सभी बागियों का मामला हाईकोर्ट में विचाराधीन है, लेकिन कोर्ट ने बागियों को तात्कालिक राहत देते हए विश्वासमत के दौरान मत देने का अधिकार दिया है। लेकिन बागियों का मत, विश्वास मत में काउंट होगा या नहीं, यह उनकी सदस्यता पर आने वाले कोर्ट के फैसले पर निर्भर करेगा।
अंबिका सोनी मंथन करने देहरादून पहुंची
बहुमत परीक्षण का ही सबब है कि बुधवार को कांग्रेस प्रदेश प्रभारी अंबिका सोनी भी देहरादून पहुंच रही हैं। सूत्रों का कहना है कि पार्टी प्रभारी किसी भी सूरत में कांग्रेस के बागी विधायकों से बात करने के मूड में नहीं है। उच्च न्यायालय की ओर से 31 को बहुमत परीक्षण का आदेश होने के बाद अब कांग्रेस में सियासी पारा एकदम उछाल पर है। पार्टी प्रभारी अंबिका सोनी बुधवार को दोपहर करीब साढ़े 12 बजे देहरादून के जौलीग्रांट एयरपोर्ट पहुंची। जहां से वह बीजापुर गेस्ट हाउस पहुंची। अंबिका सोनी दोपहर साढ़े तीन बजे कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और विधायकों संग बैठक करेंगी। इससे पहले वह उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत से मिलेंगी। अंबिका सोनी कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और विधायकों से बहुमत परीक्षण को लेकर मंथन करेंगी।
उधर, मंगलवार को पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत और कांग्रेस के अन्य नेताओं के साथ कांग्रेस के विधायकों की भी देर शाम इंदिरा हृदयेश के आवास पर बैठक हुई और इसमें बहुमत परीक्षण को लेकर बातचीत हुई। नौ बागी विधायकों के अंकगणित को भी टटोला गया। यह भी स्वीकार किया गया कि स्टिंग से पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत की छवि को नुकसान पहुंचा है। मंगलवार को आए हाईकोर्ट के निर्णय के बाद यह भी कहा जा रहा है कि इससे कांग्रेस को बहुत हद तक संभलने का मौका भी मिला है। ऐसे में ‘चेंज ऑफ गार्ड’ की भी चर्चा रही। इसमें इंदिरा हृदयेश का नाम लिया जाता रहा पर इसकी पुष्टि नहीं की गई।
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बदल गई उपचुनावों की तारीख! यूपी, केरल और पंजाब में बदलाव पर ये बोला चुनाव आयोग
नई दिल्ली। विभिन्न उत्सवों के कारण केरल, पंजाब और उत्तर प्रदेश में विधानसभा क्षेत्रों में उपचुनाव 13 नवंबर की जगह 20 नवंबर को होंगे। कांग्रेस, भाजपा, बसपा, रालोद और अन्य राष्ट्रीय और राज्य दलों के अनुरोध पर चुनाव आयोग ने ये फैसला लिया है।
विभिन्न उत्सवों की वजह से कम मतदान की किसी भी संभावना को खारिज करने के लिए, चुनाव आयोग ने ये फैसला लिया है। ऐसे में ये साफ है कि अब यूपी, पंजाब और केरल में उपचुनाव 13 नवंबर की जगह 20 नवंबर को होंगे।
चुनाव आयोग के मुताबिक राष्ट्रीय और राज्य स्तर की पार्टियों की ओर से उनसे मांग की गई थी कि 13 नवंबर को होने वाले विधानसभा उपचुनाव की तारीख में बदलाव किया जाए, क्योंकि उस दिन धार्मिक, सामाजिक कार्यक्रम हैं। जिसके चलते चुनाव संपन्न करवाने में दिक्कत आएगी और उसका असर मतदान प्रतिशत पर भी पड़ेगा।
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