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जोश में खोए होश, जीत के उन्माद में समर्थकों ने लगाए पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे
लखीमपुर/धौरहरा-खीरी। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव की तरह नगर निकाय चुनावों में भी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने जोरदार जीत हासिल की है। मतगणना को लेकर प्रशासन ने कड़ी सुरक्षा व्यवस्था का दावा किया था लेकिन कुछ जगहों में मतगणना के दौरान हिंसा भी देखने को मिली है। इतना ही नहीं चुनाव परिणाम आने के बाद विजयी प्रतिभागियों ने जश्न मनाने के चक्कर में खूब बवाल भी काटा है।
कुछ जगहों पर भाजपा और कांग्रेस के समर्थकों के बीच में रार देखने को मिली है। आलम तो यह रहा कि दोनों पक्षों में जमकर पथराव व हवाई फायरिंग तक कर डाली है। हद तो तब हो गई जब एक जगह जीत की खुशी में पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगाये गए। दरअसल राजापुर मंडी में एक भाजपा नेता के साथ बवाल के बाद मतगणना में खलल पड़ गया और वोटों की गिनती रोक दी गई। वहीं धौरहरा में नतीजा आने के बाद कांग्रेस और भाजपा के समर्थक आमने-सामने आ गए और जमकर बवाल काटना शुरू कर दिया। मामला तब और आगे बढ़ गया जब दोनों के समर्थकों ने उपद्रव करना शुरू कर दिया। दोनों ओर से पत्थरबाजी के बाद हवाई फायरिंग भी देखने को मिली।
पूरे इलाके में दहशत का मौहल बन गया। मौके पर पुलिस पहुंची पुलिस ने काफी मेहनत के बाद स्थिति पर काबू किया। मामला शांत हो गया है लेकिन कुछ देर बाद इसी बीच एक समुदाय ने कांग्रेस की जीत पर जश्न मनाने के साथ-साथ आचार संहिता का उल्लंघन किया, बल्कि पाकिस्तान जिन्दाबाद के नारे भी लगा डाले। इस मामले का पूरा वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया है।
इसके बाद पुलिस ने मोर्चा सम्भालते हुए एसडीएम धौरहरा घनश्याम त्रिपाठी, सीओ निष्ठा उपाध्याय, कोतवाल धौरहरा ब्रजेश त्रिपाठी, एसओ ईसानगर प्रमोद कुमार मिश्र ने सख्ती से निपटते हुए स्थिति को काबू में कर लिया। हालांकि क्षेत्राधिकारी ने कुछ भी कहने से मना कर दिया और कहा कि स्थिति में काबू में है। क्षेत्राधिकारी धौरहरा निष्ठा उपाध्याय ने फायरिंग व पथराव की घटना से इंकार किया। उन्होंने पाकिस्तान जिन्दाबाद के नारों को भी झुठला दिया।
बता दें कि निकाय चुनाव में महापौर की कुल 16 सीटों में से 14 भाजपा के पक्ष में, जबकि अलीगढ़ और मेरठ की सीट पर बसपा ने कब्जा जमाया है। सपा और कांग्रेस का खाता नहीं खुल सका है। महापौर के अलावा नगर निगम पार्षदों के 1300 पदों में से अब तक घोषित 1005 परिणामों में भी भाजपा 459, सपा 157, बसपा 126 और कांग्रेस 78 सीटें जीत चुकी हैं।
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हरियाणा में बीजेपी की हैट्रिक, कांग्रेस को भारी पड़ी गुटबाजी
सुबह 8 बजे जब EVM खुलीं तो काँग्रेस कार्यकर्ताओं का जोश हाई था .. जैसे जैसे घड़ी की सुई आगे बढ़ती गई कार्यकर्ताओं का जोश नाच गाने और लड्डू बांटने में तब्दील हो गया.. लेकिन ये क्या अचानक से वक्त बदल गया हालात बदल गए और देखते देखते जज़्बात ठंडे पड़ गए .. हरियाणा में जो काँग्रेस रुझानों में पूर्ण बहुमत में दिख रही थी वो अर्श से फर्श पर आ गई और जो बीजेपी फर्श पर पड़ी थी वो अर्श पर पहुँच गई. अब जोश वही था लेकिन हालात और जज़्बात अपनी जगह बदल चुके थे.. अब ढोल की गूंज बीजेपी ऑफिस पहुँच चुकी थी और लड्डू बीजेपी कार्यकर्ताओं का मुंह मीठा कर रहे थे .लोकसभा चुनाव की तरह हरियाणा के नतीजों ने भी चुनावी पंडितों को मुंह छिपाने के लिए मजबूर कर दिया.. सारे पोल धाराशाई हो गए.. बीजेपी का कमल पूरे बहुमत के साथ खिल गया.. काँग्रेस के मुख्यालय 24 अकबर रोड के जिस कमरे में कौन बनेगा हरियाणा का मुख्यमंत्री पर चर्चा हो रही थी वहाँ का माहौल गमगीन हो गया और इस बात पर चर्चा होने लगी इस हार का बलि का बकरा कौन बनेगा.. 10 साल की एंटी इनकंबेंसी को बीजेपी की रणनीति ने प्रो इनकंबेंसी में बदल कर तीसरी बार सत्ता में वापसी कर ली. जान लेते हैं वो कौन सी वजहें थीं जिसने हरियाणा में कांग्रेस की नैया डुबाने का काम किया है.
गुटबाजी कांग्रेस को भारी पड़ी
हरियाणा चुनाव प्रचार के दौरान सबसे ज्यादा चर्चा कांग्रेस के अंदर चल रही गुटबाजी की होती रही. कुमारी शैलजा और हुड्डा के साथ एक खेमा रणदीप सिंह सुरजेवाला का भी था. ऊपर के नेताओं के बीच की इस खींचतान ने संगठन को नुकसान पहुंचाने का काम किया और कार्यकर्ताओं के अंदर भी असमंजस की स्थिति बनी रही. तमाम कोशिशों के बाद भी कांग्रेस आलाकमान प्रदेश में खेमेबाजी पर लगाम लगाने में नाकामयाब रहा और पार्टी जीती हुई लड़ाई हार गई।
एंटी इनकंबेंसी को भुनाने में रही नाकामयाब
काँग्रेस अपनी अंदरूनी खींचतान से ही नहीं उबर पाई जिससे चुनाव प्रचार के दौरान काँग्रेस बीजेपी की गलतियों को भुनाने में नाकामयाब रही . हालांकि कांग्रेस के पास 10 साल की एंटी इनकंबेंसी, मुख्यमंत्री बदलने जैसे मुद्दे थे. पहलवानों का प्रदर्शन और अग्निवीर योजना से लेकर किसान आंदोलन जैसे बड़े मुद्दों को प्रचार के दौरान ठीक से हवा नहीं दी जा सकी. लिहाजा पार्टी का पूरा ध्यान खेमेबाजी पर लगाम लगाने में ही रहा और इसका बीजेपी ने पूरा फायदा उठाया.
केजरीवाल की बेल ने बिगाड़ा खेल
चुनाव से ठीक पहले आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविन्द केजरीवाल जेल से बाहर आए तो गठबंधन के लिहाज से काफी देर हो चुकी थी .. केजरीवाल खुलकर हरियाणा के चुनावी मैदान में उतार चुके थे लेकिन आम आदमी पार्टी के साथ अगर काँग्रेस का गठबंधन होता तो शायद तस्वीर अलग होती.
टिकट बंटवारे में दिखी गुटबाजी
टिकट बंटवारे में गुटबाजी और भाई भतीजाबाद को अलग रखकर सिर्फ विनिंग उम्मीदवारों को ही प्राथमिकता दी जाती, तो भी नतीजे उलट सकते थे. आम आदमी पार्टी को भले ही किसी सीट पर जीत न मिली हो, लेकिन करीबी मुकाबले वाली सीटों पर उसने कांग्रेस को ही नुकसान पहुंचाने का काम किया है…
एस एन द्विवेदी के साथ शिखा मेहरोत्रा की रिपोर्ट
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