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मदर टेरेसा की उत्तराधिकारी सिस्टर निर्मला नहीं रहीं, पीएम मोदी ने जताया शोक
कोलकाता। समाज सेवी संस्था मिशनरीज ऑफ चैरिटी की सुपीरियर जनरल और मदर टेरेसा की उत्तराधिकारी सिस्टर निर्मला का मंगलवार को निधन हो गया। वह 81 साल की थीं। कैथोलिक धार्मिक आदेश के वैश्विक मुख्यालय ‘मदर हाउस’ के सूत्रों की ओर से यह जानकारी दी गई। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सिस्टर निर्मला के निधन पर शोक जताते हुए कहा, “उनका जीवन समाजसेवा और गरीब एवं बेसहारा लोगों की देखभाल के लिए समर्पित था।”
मिशनरीज ऑफ चैरिटी की संस्थापक मदर टेरेसा के मार्च 1997 में सुपीरियर जनरल का पद छोड़ने के बाद सिस्टर निर्मला ने यह पदभार संभाला था। मदर टेरेसा का निधन पांच सितंबर, 1997 को हुआ था। सिस्टर निर्मला 24 मार्च, 2009 तक संस्था की संचालक रही थीं। उनके बाद सिस्टर प्रेमा ने संस्था के संचालन की जिम्मेदारी संभाली। मदर हाउस के एक सूत्र ने बताया, “वह (सिस्टर निर्मला) कुछ समय से बीमार थीं। सियालदह स्थित कांवेंट में रात 12.05 बजे उन्होंने आखिरी सांस ली।”
कोलकाता के आर्चबिशप थॉमस डीसूजा ने बताया कि सिस्टर निर्मला के अंतिम संस्कार की प्रार्थना सभा मदर हाउस में बुधवार शाम चार बजे आयोजित की जाएगी। प्रार्थना सभा के बाद उनको सेंट जॉन कब्रिस्तान में दफनाया जाएगा। मोदी ने एक बयान में कहा, “सिस्टर निर्मला का जीवन समाज सेवा और गरीब एवं बेसहारा लोगों की देखभाल के लिए समर्पित था। उनके निधन से दुखी हूं। ईश्वर उनकी आत्मा को शांति दें।” मोदी ने कहा, “सिस्टर निर्मला के निधन पर मेरी संवेदनाएं मिशनरीज ऑफ चैरिटी परिवार के साथ हैं।”
झारखंड की राजधानी रांची में एक ब्राह्मण परिवार में 1934 में जन्मी निर्मला जोशी ने 17 साल की उम्र में ईसाई धर्म अपना लिया था और मदर टेरेसा के समाज सेवा के कार्यो से प्रभावित होकर मिशनरीज ऑफ चैरिटी का हिस्सा बनी थीं। सिस्टर निर्मला को देश सेवा के कार्य के लिए 2009 में देश के दूसरे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म विभूषण से नवाजा गया था।
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने सिस्टर निर्मला के निधन पर शोक जताया। उन्होंने ट्विटर पर लिखा, “सिस्टर निर्मला के निधन की खबर से दुखी हूं। उन्होंने मदर टेरेसा के बाद मिशनरीज ऑफ चैरिटी का संचालन संभाला था। कोलकाता और पूरी दुनिया उन्हें हमेशा याद करेगी।”
नेशनल
हरियाणा में बीजेपी की हैट्रिक, कांग्रेस को भारी पड़ी गुटबाजी
सुबह 8 बजे जब EVM खुलीं तो काँग्रेस कार्यकर्ताओं का जोश हाई था .. जैसे जैसे घड़ी की सुई आगे बढ़ती गई कार्यकर्ताओं का जोश नाच गाने और लड्डू बांटने में तब्दील हो गया.. लेकिन ये क्या अचानक से वक्त बदल गया हालात बदल गए और देखते देखते जज़्बात ठंडे पड़ गए .. हरियाणा में जो काँग्रेस रुझानों में पूर्ण बहुमत में दिख रही थी वो अर्श से फर्श पर आ गई और जो बीजेपी फर्श पर पड़ी थी वो अर्श पर पहुँच गई. अब जोश वही था लेकिन हालात और जज़्बात अपनी जगह बदल चुके थे.. अब ढोल की गूंज बीजेपी ऑफिस पहुँच चुकी थी और लड्डू बीजेपी कार्यकर्ताओं का मुंह मीठा कर रहे थे .लोकसभा चुनाव की तरह हरियाणा के नतीजों ने भी चुनावी पंडितों को मुंह छिपाने के लिए मजबूर कर दिया.. सारे पोल धाराशाई हो गए.. बीजेपी का कमल पूरे बहुमत के साथ खिल गया.. काँग्रेस के मुख्यालय 24 अकबर रोड के जिस कमरे में कौन बनेगा हरियाणा का मुख्यमंत्री पर चर्चा हो रही थी वहाँ का माहौल गमगीन हो गया और इस बात पर चर्चा होने लगी इस हार का बलि का बकरा कौन बनेगा.. 10 साल की एंटी इनकंबेंसी को बीजेपी की रणनीति ने प्रो इनकंबेंसी में बदल कर तीसरी बार सत्ता में वापसी कर ली. जान लेते हैं वो कौन सी वजहें थीं जिसने हरियाणा में कांग्रेस की नैया डुबाने का काम किया है.
गुटबाजी कांग्रेस को भारी पड़ी
हरियाणा चुनाव प्रचार के दौरान सबसे ज्यादा चर्चा कांग्रेस के अंदर चल रही गुटबाजी की होती रही. कुमारी शैलजा और हुड्डा के साथ एक खेमा रणदीप सिंह सुरजेवाला का भी था. ऊपर के नेताओं के बीच की इस खींचतान ने संगठन को नुकसान पहुंचाने का काम किया और कार्यकर्ताओं के अंदर भी असमंजस की स्थिति बनी रही. तमाम कोशिशों के बाद भी कांग्रेस आलाकमान प्रदेश में खेमेबाजी पर लगाम लगाने में नाकामयाब रहा और पार्टी जीती हुई लड़ाई हार गई।
एंटी इनकंबेंसी को भुनाने में रही नाकामयाब
काँग्रेस अपनी अंदरूनी खींचतान से ही नहीं उबर पाई जिससे चुनाव प्रचार के दौरान काँग्रेस बीजेपी की गलतियों को भुनाने में नाकामयाब रही . हालांकि कांग्रेस के पास 10 साल की एंटी इनकंबेंसी, मुख्यमंत्री बदलने जैसे मुद्दे थे. पहलवानों का प्रदर्शन और अग्निवीर योजना से लेकर किसान आंदोलन जैसे बड़े मुद्दों को प्रचार के दौरान ठीक से हवा नहीं दी जा सकी. लिहाजा पार्टी का पूरा ध्यान खेमेबाजी पर लगाम लगाने में ही रहा और इसका बीजेपी ने पूरा फायदा उठाया.
केजरीवाल की बेल ने बिगाड़ा खेल
चुनाव से ठीक पहले आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविन्द केजरीवाल जेल से बाहर आए तो गठबंधन के लिहाज से काफी देर हो चुकी थी .. केजरीवाल खुलकर हरियाणा के चुनावी मैदान में उतार चुके थे लेकिन आम आदमी पार्टी के साथ अगर काँग्रेस का गठबंधन होता तो शायद तस्वीर अलग होती.
टिकट बंटवारे में दिखी गुटबाजी
टिकट बंटवारे में गुटबाजी और भाई भतीजाबाद को अलग रखकर सिर्फ विनिंग उम्मीदवारों को ही प्राथमिकता दी जाती, तो भी नतीजे उलट सकते थे. आम आदमी पार्टी को भले ही किसी सीट पर जीत न मिली हो, लेकिन करीबी मुकाबले वाली सीटों पर उसने कांग्रेस को ही नुकसान पहुंचाने का काम किया है…
एस एन द्विवेदी के साथ शिखा मेहरोत्रा की रिपोर्ट
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