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प्रादेशिक

सीएम मोहन यादव ने देर रात बुलाई मीटिंग, पीथमपुर में बवाल पर मंथन

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पीथमपुर। मध्य प्रदेश के पीथमपुर में यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री के रासायनिक कचरे के निष्पादन को लेकर बवाल मचा हुआ है। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के अनुसार सरकार ने वहां कचरा पहुंचा दिया है और अब इसके निष्पादन की तैयारी चल रही है। इस बीच बड़ी संख्या में पीथमपुर के लोग इसका विरोध कर रहे हैं। लोगों का कहना है कि इस कचरे को किसी दूसरी जगह पर जलाया जाना चाहिए। इस बीच मुख्यमंत्री मोहन यादव ने लोगों से अफवाहों पर यकीन न करने की अपील की है और कहा है कि सरकार जो कर रही है, वह सभी के हित में है। इस दौरान उन्होंने इशारों में कांग्रेस नेताओं पर निशाना भी साधा।

उन्होंने कहा कि जनभावनाओं का आदर करते हुए हाईकोर्ट के समक्ष समस्त परिस्थितियों एवं व्यावहारिक कठिनाइयों के बारे में अवगत कराया जाएगा.मैं जनता से अपील करता हूं कि किसी भी अफवाह या भ्रम की खबरों पर विश्वास नहीं करें. मैं और मेरी सरकार आपके साथ है.

दरअसल, शुक्रवार को पीथमपुर में यूनियन कार्बाइड के 337 टन कचरे को नष्ट करने के खिलाफ पीथमपुर बंद की अपील की थी. बंद के बीच प्रदर्शनकारियों ने हाईवे पर जाम लगा दिया, जिसके बाद भीड़ ने पुलिस पर पथराव कर दिया. इसके बाद पुलिस ने स्थिति पर काबू पाने के लिए प्रदर्शनकारियों पर हल्के बल का प्रयोग कर स्थिति पर नियंत्रण पा लिया. हालांकि, इस पूरे घटनाक्रम के दौरान दो लोगों ने खुद को आग के हवाले कर दिया. दोनों को इलाज के लिए अस्पताल में भर्ती कराया गया है.

12 सीलबंद कंटनेर से पहुंचा था कचरा

आपको बता दें कि भोपाल गैस त्रासदी के चालीस साल बाद से बंद पड़ी यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री में निपटान के लिए पड़े लगभग 377 टन खतरनाक कचरे को बुधरात रात पीथमपुर ट्रांसफर किया गया था. ये कचरा 12 सीलबंद कंटेनर ट्रकों में भरकर भोपाल से 250 किमी दूर धार जिले के पीथमपुर औद्योगिक क्षेत्र में ट्रांसफर किया गया था.

वहीं, स्वतंत्र सिंह ने बुधवार सुबह पीटीआई-भाषा को बताया था कि अगर सब कुछ ठीक पाया गया तो कचरे को तीन महीने के भीतर जला दिया जाएगा. अन्यथा इसमें नौ महीने तक का समय लग सकता है.

सिंह ने कहा, शुरुआत में कुछ कचरे को पीथमपुर में कचरा निपटान इकाई में जला दिया जाएगा और अवशेष (राख) की जांच की जाएगी कि क्या कोई हानिकारक तत्व बचा है.

उन्होंने कहा कि कचरे से निकलने वाला धुआं विशेष चार-परत फिल्टर से गुजरेगा ताकि आसपास की हवा प्रदूषित न हो. एक बार जब यह पुष्टि हो जाती है कि जहरीले तत्वों का कोई निशान नहीं बचा है तो राख को दो परत वाली झिल्ली से ढक दिया जाएगा और यह सुनिश्चित करने के लिए दफना दिया जाएगा कि यह किसी भी तरह से मिट्टी और पानी के संपर्क में न आए.

सिंह ने कहा, ‘केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अधिकारियों की देखरेख में विशेषज्ञों की एक टीम इस प्रक्रिया को अंजाम देगी.

 

 

 

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उत्तर प्रदेश

यूपी ने बाजी मारी, टीबी नोटिफिकेशन में देश में अव्वल

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लखनऊ: प्रदेश की झोली में एक और उपलब्धि आई है। ट्यूबरक्लोसिस (टीबी) के मरीजों की पहचान व इलाज करने में उत्तर प्रदेश 2024 में भी अव्वल रहा है। प्रदेश को बीते साल साढ़े छह लाख मरीजों के चिन्हिकरण का लक्ष्य मिला था। उसके सापेक्ष 6.73 लाख मरीजों की पहचान की गई। ये रिकार्ड है। 2023 में भी प्रदेश ने साढ़े लाख मरीजों के लक्ष्य का आंकड़ा पार किया था। दूसरे स्थान पर महराष्ट्र व तीसरे स्थान पर बिहार का नाम दर्ज है। इसके बाद मध्यप्रदेश व राजस्थान ने नोटिफिकेशन किया है।

विशेषज्ञों का मानना है कि देश-प्रदेश से टीबी उन्मूलन का एक ही तरीका है कि ज्यादा से ज्यादा मरीजों का चिन्हिकरण व इलाज किया जाए। इसी के मद्देनजर केंद्रीय टीबी डिवीजन ने सभी प्रदेशों को 2024 की शुरुआत में टीबी नोटिफिकेशन का लक्ष्य तय किया था। उत्तर प्रदेश को 6.5 लाख मरीज खोजने का लक्ष्य दिया गया था।

विभागीय आंकड़ों के मुताबिक 31 दिसंबर तक प्रदेश में 6 लाख 73 हजार टीबी मरीजों की पहचान हुई। इन सभी का इलाज शुरू हो चुका है। टीबी नोटिफिकेशन के लक्ष्य को छू पाने में प्राइवेट डाक्टरों की भूमिका भी सराहनीय रही है। प्रदेश में ढाई लाख से ज्यादा मरीजों की पहचान यानी तकरीबन 40 प्रतिशत मरीज प्राइवेट डाक्टरों के माध्यम से पंजीकृत हुए हैं।

उत्तर प्रदेश के बाद महराष्ट्र में सवा दो लाख मरीजों का पंजीकरण हुआ। तीसरे नंबर पर बिहार में दो लाख मरीज चिंहित किए जा सके। मध्य प्रदेश में 1.78 लाख व राजस्थान में 1.70 लाख मरीजों का चिन्हिकरण किया हुआ।

राज्य टीबी अधिकारी डॉ शैलेंद्र भटनागर ने इस उपलब्धि पर खुशी जाहिर करते हुए कहा कि शीर्ष नेतृत्व के मार्गदर्शन में पूरे वर्ष विभिन्न कार्यक्रम जैसे हर माह की 15 तारीख को एकीकृत निक्षय दिवस, एक्टिव केस फाइंडिंग (एसीएफ) अभियान व दस्तक अभियान चलाए गए जिससे हम ज्यादा से ज्यादा टीबी के लक्षण वाले मरीजों को खोज पाए। इस वक्त 100 दिवसीय सघन टीबी अभियान पूरे प्रदेश में चल रहा है जिसके माध्यम से उच्च जोखिम वाले व प्रिजेम्टिव टीबी वाले केसों को खोजने पर पूरे विभाग का ध्यान केंद्रित है।

टीबी का उन्मूलन प्राइवेट डाक्टरों की सहभागिता के बिना नहीं हो सकता। यह एक कड़वा सच है। उत्तर प्रदेश में मथुरा, आगरा, कानपुर, गोरखपुर व झांसी ने इस मामले में बेहतर प्रदर्शन किया है। लखनऊ, मेरठ, मुरादाबाद, बरेली व गाजियाबाद में भी प्राइवेट डाक्टर सक्रियता दिखा रहे हैं लेकिन श्रावस्ती में बीते साल सिर्फ 44 प्राइवेट नोटिफिकेशन हुए हैं।

इसके अलावा महोबा में 255, सोनभद्र में 374, चित्रकूट में 376, हमीरपुर में 380, कन्नौज में 444, सुल्तानपुर में 444, अमेठी में 447, संतरवीदास नगर में 456, चंदौली में 488 और कानपुर देहात में सिर्फ 468 प्राइवेट नोटिफिकेशन हुए हैं। इन जनपदों में प्राइवेट डाक्टरों की प्रतिभागिता बढ़े जाने की जरूरत है।

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