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प्रादेशिक

कश्मीर में बिगड़ सकता है मौसम का मिजाज

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श्रीनगर| जम्मू एवं कश्मीर के ऊपरी इलाकों में शनिवार से बर्फबारी होने की संभावना जताई गई है। मौसम विभाग के अधिकारियों ने शनिवार को यहां कहा कि पश्चिमी विक्षोभ की वजह से शनिवार शाम से क्षेत्र में मौसम का मिजाज बिगड़ सकता है।

स्थानीय मौसम विभाग की निदेशक सोनम लोटस ने  बताया, “शनिवार शाम से चार अप्रैल 2015 के दौरान एक के बाद एक दो पश्चिमी विक्षोभ से जम्मू एवं कश्मीर और उसके आसपास के क्षेत्र प्रभावित हो सकते हैं।”

उन्होंने कहा कि उत्तरी पाकिस्तान और राज्य के आसपास के क्षेत्रों में पश्चिमी विक्षोभ से पश्चिमी हिमालय क्षेत्र के प्रभावित होने की संभावना है। इससे कश्मीर एवं जम्मू क्षेत्रों के ऊंचाई वाले क्षेत्रों में अगले 24 घंटे से लेकर रविवार सुबह तक बर्फबारी होने की भी संभावना है।

मौसम विभाग ने कहा कि 29 मार्च, एक अप्रैल और तीन अप्रैल को इन विक्षोभ से राज्य अधिक प्रभावित होगा।

इस संदर्भ में शनिवार को राज्य प्रशासन ने एक परामर्श जारी किया गया, जिसमें श्रीनगर-जम्मू राजमार्ग पर जा रहे लोगों को प्रतिकूल मौसम स्थितियों की वजह से सावधानी बरतने की सलाह दी गई है।

इस परामर्श में कहा गया, “इन मौसम परिस्थतियों से राज्य के संवेदनशील क्षेत्रों जैसे राष्ट्रीय राजमार्ग पर भूस्खलन और बाढ़ का खतरा हो सकता है।”

इस दौरान प्रतिकूल मौसम की वजह से रेल और हवाई सेवा प्रभावित हो सकती है।

मौसम अधिकारी ने कहा कि अगले दो से तीन दिनों के दौरान राज्य में दिन के समय तापमान में बड़ी गिरावट आएगी, जबकि रात को तापमान में हल्की वृद्धि होगी।

श्रीनगर में शनिवार सुबह हल्की बारिश दर्ज हुई। खराब मौसम परिस्थिति की वजह से रात में तापमान कई डिग्री बढ़ कर 12 डिग्री सेल्सियस रहा।

मौसम अधिकारी ने कहा, “पहलगाम और गुलमर्ग में न्यूनतम तापमान 4.2 डिग्री और 4.8 डिग्री सेल्सियस दर्ज हुआ।”

लद्दाख क्षेत्र के कारगिल और लेह कस्बों में तापमान क्रमश: शून्य से नीचे सात डिग्री और शून्य से नीचे 0.7 डिग्री सेल्सियस चला गया।

जम्मू में रात को न्यूनतम तापमान 17 डिग्री सेल्सियस रहा।

पश्चिमी विक्षोभ भूमध्यसागर में होने वाली एक उष्णकटिबंधीय तूफान प्रणाली है, जिससे भारत, पाकिस्तान, नेपाल और बांग्लादेश में बारिश और बर्फबारी होती है।

 

नेशनल

हरियाणा में बीजेपी की हैट्रिक, कांग्रेस को भारी पड़ी गुटबाजी

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सुबह 8 बजे जब EVM खुलीं तो काँग्रेस कार्यकर्ताओं का जोश हाई था .. जैसे जैसे घड़ी की सुई आगे बढ़ती गई कार्यकर्ताओं का जोश नाच गाने और लड्डू बांटने में तब्दील हो गया.. लेकिन ये क्या अचानक से वक्त बदल गया हालात बदल गए और देखते देखते जज़्बात ठंडे पड़ गए .. हरियाणा में जो काँग्रेस रुझानों में पूर्ण बहुमत में दिख रही थी वो अर्श से फर्श पर आ गई और जो बीजेपी फर्श पर पड़ी थी वो अर्श पर पहुँच गई. अब जोश वही था लेकिन हालात और जज़्बात अपनी जगह बदल चुके थे.. अब ढोल की गूंज बीजेपी ऑफिस पहुँच चुकी थी और लड्डू बीजेपी कार्यकर्ताओं का मुंह मीठा कर रहे थे .लोकसभा चुनाव की तरह हरियाणा के नतीजों ने भी चुनावी पंडितों को मुंह छिपाने के लिए मजबूर कर दिया.. सारे  पोल धाराशाई हो गए.. बीजेपी का कमल पूरे बहुमत के साथ खिल गया.. काँग्रेस के मुख्यालय 24 अकबर रोड के जिस कमरे में कौन बनेगा हरियाणा का मुख्यमंत्री पर चर्चा हो रही थी वहाँ का माहौल गमगीन हो गया और इस बात पर चर्चा होने लगी इस हार का बलि का बकरा कौन बनेगा.. 10 साल की एंटी इनकंबेंसी को बीजेपी की रणनीति ने प्रो इनकंबेंसी में बदल कर तीसरी बार सत्ता में वापसी कर ली. जान लेते हैं वो कौन सी वजहें थीं जिसने हरियाणा में कांग्रेस की नैया डुबाने का काम किया है.

गुटबाजी कांग्रेस को भारी पड़ी

हरियाणा चुनाव प्रचार के दौरान सबसे ज्यादा चर्चा कांग्रेस के अंदर चल रही गुटबाजी की होती रही. कुमारी शैलजा और हुड्डा के साथ एक खेमा रणदीप सिंह सुरजेवाला का भी था. ऊपर के नेताओं के बीच की इस खींचतान ने संगठन को नुकसान पहुंचाने का काम किया और कार्यकर्ताओं के अंदर भी असमंजस की स्थिति बनी रही. तमाम कोशिशों के बाद भी कांग्रेस आलाकमान प्रदेश में खेमेबाजी पर लगाम लगाने में नाकामयाब रहा और पार्टी जीती हुई लड़ाई हार गई।

एंटी इनकंबेंसी को भुनाने में रही नाकामयाब

काँग्रेस अपनी अंदरूनी खींचतान से ही नहीं उबर पाई जिससे चुनाव प्रचार के दौरान काँग्रेस बीजेपी की गलतियों को भुनाने में नाकामयाब रही . हालांकि कांग्रेस के पास 10 साल की एंटी इनकंबेंसी,  मुख्यमंत्री बदलने जैसे मुद्दे थे. पहलवानों का प्रदर्शन और अग्निवीर योजना से लेकर किसान आंदोलन जैसे बड़े मुद्दों को प्रचार के दौरान ठीक से हवा नहीं दी जा सकी. लिहाजा पार्टी का पूरा ध्यान खेमेबाजी पर लगाम लगाने में ही रहा और इसका बीजेपी ने पूरा फायदा उठाया.

केजरीवाल की बेल ने बिगाड़ा खेल

चुनाव से ठीक पहले आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविन्द केजरीवाल जेल से बाहर आए तो गठबंधन के लिहाज से काफी देर हो चुकी थी .. केजरीवाल खुलकर हरियाणा के चुनावी मैदान में उतार चुके थे लेकिन आम आदमी पार्टी के साथ अगर काँग्रेस का गठबंधन होता तो शायद तस्वीर अलग होती.

टिकट बंटवारे में दिखी गुटबाजी

टिकट बंटवारे में गुटबाजी और भाई भतीजाबाद को अलग रखकर सिर्फ विनिंग उम्मीदवारों को ही प्राथमिकता दी जाती, तो भी नतीजे उलट सकते थे. आम आदमी पार्टी को भले ही किसी सीट पर जीत न मिली हो, लेकिन करीबी मुकाबले वाली सीटों पर उसने कांग्रेस को ही नुकसान पहुंचाने का काम किया है…

एस एन द्विवेदी के साथ शिखा मेहरोत्रा की रिपोर्ट

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