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अन्तर्राष्ट्रीय

फेडरल रिजर्व के अध्यक्ष के लिए जेरोम पॉवेल को सीनेट समिति की मंजूरी

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वाशिंगनट, 6 दिसंबर (आईएएनएस)| अमेरिका की एक बैंकिंग सीनेट समिति ने मंगलवार को फेडरल रिजर्व के अगले अध्यक्ष के लिए जेरोम पॉवेल के नामांकन को मंजूरी दी। इसके साथ ही जेरोम के नामांकन पर वोटिंग के लिए उसे पूर्ण सीनेट के पास भेजा गया है।

समाचार एजेंसी सिन्हुआ के मुताबिक, समिति ने पॉवेल के नामांकन को मंजूरी दी। पॉवेल के पक्ष में 22 जबकि विपक्ष में एक वोट पड़ा।

पॉवेल के खिलाफ वोट करने वाली सीनेटर एलिजाबेथ वॉरेन ने चिंता जताते हुए कहा कि यदि पॉवेल फेडरल रिजर्व के अगले अध्यक्ष बन जाते हैं तो वह वित्तीय विनियमों में ढील दे सकते हैं।

हालांकि, अभी तक पूर्ण सीनेट में पॉवेल के नामांकन पर वोटिंग के लिए निश्चित तारीख निर्धारित नहीं हुई है।

पॉवेल फिलहाल फेडरल रिजर्व के बोर्ड ऑफ गवर्नर्स के सदस्य हैं, जिन्हें जेनेट येलेन के स्थान पर राष्ट्रपति ट्रंप ने नवंबर में नामांकित किया था।

जेनेट येलेन फिलहाल फेडरल रिजर्व की अध्यक्ष हैं, जिनका कार्यकाल फरवरी 2018 में समाप्त हो रहा है।

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अन्तर्राष्ट्रीय

इच्छामृत्यु को कानूनी दर्जा देने के लिए ब्रिटिश संसद में बिल पास, पूरी तरह समझे कानून

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ब्रिटेन। इच्छामृत्यु को लेकर कई देशों में वाद-विवाद है, भारत में इच्छामृत्यु संबंधी कानून सक्रिय और निष्क्रिय इच्छामृत्यु के बीच अंतर करता है। देश में (India) घातक यौगिकों के प्रशासन सहित सक्रिय इच्छामृत्यु के रूप अभी भी अवैध हैं। लेकिन एक वक्त पर भारत पर राज करने वाले ब्रिटेन (Britain) ने इच्छामृत्यु को कानूनी दर्जा देने के लिए ब्रिटिश संसद में बिल पास कर दिया है। ब्रिटेन का ये विधेयक गंभीर रूप से बीमार लोगों, जिनकी जीवन प्रत्याशा 6 महीने से कम है, वे अपनी इच्छा से खुद का जीवन खत्म कर सकते हैं। ये पूरी तरह से कानूनी होगा।

क्या होगा कानून

इस विधेयक के मुताबिक इसे लागू करने के लिए दो स्वतंत्र डॉक्टर्स और एक हाईकोर्ट के जज की सहमति भी जरूरी होगी। हालांकि मरीज को इच्छामृत्यु के इस फैसले के लिए मानसिक रूप से पहले सक्षम माना जाना चाहिए और ये सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि वो किसी दबाव में तो नहीं। इसके अलावा मरीज को 2 बार अपनी मरने की इच्छा भी जतानी होगी। जिसके बीच कम से कम 7 दिनों का अंतर होना चाहिए।

विधेयक पर तीखी बहस

ब्रिटेन की संसद में इस बिधेयक को लेकर तो बहस हुई ही साथ ही अब जनता भी दो धड़ों में बंटी हुई दिखाई दे रही है। संसद में इस बिल के समर्थकों ने इसे मरीज का दर्द खत्म करने और गरिमा के साथ मौते देने का विकल्प बताया तो विरोधी पक्ष ने इसे कमजोर और बीमार लोगों के लिए जोखिम भरा बताया और इसके दुरुपयोग की संभावना जताई। बता दें कि ये विधेयक भले ही संसद से पास हो गया हो लेकिन इसे कानून बनने के लिए और भी समीक्षा प्रक्रियाओं से गुजरना होगा। इसके बाद ही कानून का रूप ले पाएगा। अब विपक्ष समेत आधी जनता के विरोध को देखते हुए जानकारों का मानना है कि शायद ही ये विधेयक इतनी आसानी से कानून का रूप ले पाएगा। ​

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